ये लोग होते हैं ब्लैक फंगस के सबसे आसान शिकार, जाने इससे बचने का तरीका
कोरोना वायरस के कहर के बीच म्यूकरमायकोसिस (Mucormycosis) नामक संक्रमण ने नाक में दम कर रखा है। म्यूकरमायकोसिस को आम बोलचाल की भाषा में ब्लैक फंगस (Black Fungus) भी कहते हैं। यह सामान्यतः दिमाग, फेफड़े और स्किन पर हमला करती है, लेकिन कोरोना काल में इसका संक्रमण आंखों पर भी होने लगा है। आलम ये होता है कि मरीजों की आंखों की रौशनी जाने लगी है। कई बार जान बचाने के लिए मरीज की आंख तक निकालनी पड़ जाती है। कुछ मामलों में नाक की हड्डी और जबड़े भी गलने लगते हैं।
ब्लैक फंगस से इन लोगों को है ज्यादा खतरा
ब्लैक फंगस में मृत्यु दर 50 फीसदी तक होती है। ये उन्हें अधिक प्रभावित करती है जिन्हें पहले से कई प्रकार की बीमारियां जैसे डायबिटीज (Diabetes) इत्यादि है। वहीं कोरोना का इलाज करवाने के समय जब मरीज आईसीयू में भर्ती (ICU stay) रहता है और उसे स्टेरॉयड्स दिए जाते हैं तो उसके शरीर की किटाणुओं से लड़ने की क्षमता अस्थायी रूप से खत्म हो जाती है। इस दौरान ये ब्लैक फंगस आप पर अटैक कर देती है।
ब्लैक फंगस से कैसे बचे?
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) द्वारा जारी एडवाइजरी के अनुसार स्टेरॉयड्स (Steroids) का उपयोग कम और डॉक्टर की सलाह से ही करें। डायबिटीज को कंट्रोल में रखने की कोशिश करें। इम्यून सिस्टम को प्रभावित करने वाली दवाइयाँ कम लें। हाइपरग्लाइसीमिया (Hyperglycemia) मतलब खून में ग्लूकोज की अधिक मात्रा को नियंत्रण में रखने का प्रयास करें।
डायबिटीज के मरीज और कोविड-19 (Covid-19) बीमारी के बाद अस्पताल से डिस्चार्ज हुए मरीज अपना ब्लड ग्लूकोज समय समय पर चेक करते रहें। ऑक्सीजन थेरेपी (Oxygen therapy) का इस्तेमाल करने के दौरान ह्यूमिडिफायर में साफ और कीटाणुरहित पानी का उपयोग करें। अपने मन से कोई भी एंटीबायोटिक या एंटी फंगल दवाइयां न लें।
यदि आपको ब्लैक फंगस से जुड़े कोई भी संकेत दिखे तो उन्हें नजरअंदाज न करें। कोरोना से उबरने के बाद यदि नाक बंद होती है तो ये बैक्टीरियल साइनुसाइटिस के अलावा ब्लैक फंगस भी हो सकती है। ऐसे में जांच करवा लें। यदि ब्लैक फंगस का संक्रमण टेस्ट में आ जाए तो इसका इलाज जरूर करवाएं। याद रहे ब्लैक फंगस यदि शुरुआत में ही पता चल जाए तो इसका इलाज हो सकता है। इसलिए इस बीमारी में ढील-पोल न करें। एक्टिव रहें और हर लक्षण पर नजर रखें।
ब्लैक फंगस नाक के माध्यम से आंखों तक जाती है। यदि इसका इलाज न हुआ तो ये दिमाग पर भी हमला कर सकती है जो कि जानलेवा साबित होता है।