पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार पर मंथन करेगी कांग्रेस, लेकिन अध्यक्ष पद के लिए नहीं!
विधानसभा चुनावों में हार की वज़ह से नाराज़ है सोनिया गांधी
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चिंता ज़ाहिर की है। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोनिया गांधी ने कहा, “चुनाव में गम्भीर हार से सबक लेने की जरूरत है। यह कहना काफ़ी नहीं होगा कि हम बहुत निराश हैं। नतीज़े स्पष्ट करते हैं कि कांग्रेस में स्थितियां सुधारने की ज़रूरत है।”
इसके अलावा उन्होंने कहा कि “मैं हार के हर पहलू पर गौर करने के लिए एक छोटे समूह का गठन करना चाहती हूं। हमें समझना होगा कि हम केरल और असम में मौजूदा सरकारों को हटाने में क्यों विफल रहे। बंगाल में हमारा खाता तक क्यों नहीं खुला। इन सवालों के कुछ असहज सबक होंगे। अगर हम वास्तविकता का सामना नहीं करेंगे, तथ्यों को सही ढंग से नहीं देखेंगे तो सही सबक नहीं ले सकेंगे।”
गौरतलब हो पश्चिम बंगाल, असम, केरल, पुडुचेरी और तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। भले ही तमिलनाडु में डीएमके की अगुवाई वाला कांग्रेस गठबंधन जीता हो, लेकिन बाक़ी के चार राज्यों में कांग्रेस की स्थिति काफ़ी दयनीय रही। बता दें कि राज्य दर राज्य पांच विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को प्राप्त सीटों की संख्या देखें तो पुडुचेरी की कुल 30 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को सिर्फ़ दो सीट पर ही विजय मिली। जबकि जिस असम में कांग्रेस सरकार बनाने का सपना देख रही थी वहां उसे सिर्फ 29 सीटों के साथ सन्तोष करना पड़ा।
वही केरल की 140 सीटों में से कांग्रेस के खाते में सिर्फ 21 सीट आई। जो क्षेत्रीय दलों से भी काफ़ी कम है। केरल वही राज्य है जहां की वायनाड सीट से राहुल गांधी सांसद है। इसके अलावा तमिलनाडु में भले डीएमके गठबंधन ने जीत हासिल की, लेकिन कांग्रेस को 234 सीटों में से 18 सीटें ही मिली। वहीं जिस पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की जीत पर राहुल गांधी ट्वीट करते हुए उन्हें बधाई देते नज़र आए वहां कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला।
इन सबसे इतर कांग्रेस पार्टी ने एक बार फ़िर अध्यक्ष पद के चुनाव को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। ऐसे में कुल-मिलाकर देखा जाएं तो लोकतांत्रिक देश की सबसे पुरानी पार्टी की दुर्गति का कारण कहीं न कहीं पार्टी के कुछ सदस्य ही हैं। पार्टी नेहरू-गांधी परिवार के नेतृत्व से बाहर निकलना नहीं चाहती और सिर्फ़ नरेंद्र मोदी का विरोध करके सत्ता में वापसी हो नहीं सकती, क्योंकि अब जनता भी समझदार हो गई है। ऐसे थोड़े न कहते हैं, कि “यह पब्लिक है, सब जानती है।”