पश्चिम बंगाल में सिर्फ़ राजनीतिक हिंसा नहीं होती, बल्कि वर्ग विशेष को भी बनाया जाता निशाना
ममता जी! दो लाख रुपए से किसी की जान वापस नहीं लाई जा सकती, इसलिए हिंसा रोकिए।
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की भारी जीत के बाद राजनीतिक हिंसा के साथ खूनी खेल शुरू हो गया है। राज्य में कई जगहों पर हिंसक घटनाएं हो रही। अतीत के पन्ने पलटने लगेंगे तो बंगाल में यह कोई नई बात नहीं। दशकों से बंगाल की नीयत में हिंसा लिखी हुई है। चुनावी नतीज़े आने के बाद हुई राजनीतिक हिंसा पर नज़र डालें तो 5 मई तक क़रीब 17 लोगों की मौत हो चुकी है।
पश्चिम बंगाल में चुनावी नतीज़े आने के बाद राजनीतिक हिंसा को देखें तो एक मामला दक्षिण 24 परगना जिले से आया है। जहां चुनाव परिणामों के बाद हिंसा और तोड़फोड़ देखी गई। कलतला हाट बाजार इलाके में बीजेपी नेता सौमित्र अटा के घर पर हमला बोला गया। आरोप है कि टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने यह हमला किया। इस हमले की सीसीटीवी फुटेज भी सामने आई है, जिसमें देखा गया कि वहां कुछ लोग बाइक और साइकिलों पर सवार होकर आते हैं और जिसके बाद वह घरों पर पथराव शुरू कर देते हैं। साथ ही वहां खड़ी गाड़ियों में तोड़फोड़ करने लग जाते हैं।
वहीं एक अन्य मामला उत्तर दिनाजपुर के चोपरा से निकलकर सामने आया। यहां बीजेपी के कार्यकर्ता के घर में आग लगा दी गई। यहां दुःखद बात यह है कि जो कुछ भी बंगाल में हो रहा है, वह सिर्फ राजनीतिक द्वेष की भावना से किया जा रहा है। चुनावों के वक्त भी जगह जगह हिंसा देखी गई और अब नतीजों के बाद भी बंगाल जल रहा है।
भले ही क़रीब 17 राजनीतिक हत्याओं के बाद पश्चिम बंगाल की नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख रुपये मुआवजा देने की बात कर रही हो, लेकिन क्या 2 लाख रुपए से किसी परिवार की खुशियां वापस आ सकती? यह ममता सरकार को समझना होगा। इतना ही नहीं ममता बनर्जी ने इन हत्याओं के लिए जिम्मेदार चुनाव आयोग को बताया, क्योंकि कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी चुनाव आयोग के पास थी। चलिए मान लिया इस दौरान चुनाव आयोग के जिम्मे क़ानून व्यवस्था थी। लेकिन उन हिंसा और हत्याओं का क्या? जो उनके बीते कार्यकाल के दौरान सूबे में हुई।
ममता बनर्जी का पिछला कार्यकाल उठाकर देख लीजिए तो आएं दिन संविधान की दुहाई देने वाली ममता सरकार में सिर्फ़ राजनीतिक हिंसा नहीं होती थी। इसके अलावा वर्ग-विशेष के लोग भी हिंसा का शिकार होते रहें। ममता सरकार के कार्यकाल में 13 दिसंबर 2016 में मालदा जिले में मिलाद-उन-नबी के अगले दिन कुछ मुस्लिम युवकों ने हिन्दुओं के घरों और दुकानों में आग लगा दी। फ़िर 12 अक्टूबर 2016 को हिंसा की शुरुआत पश्चिम बंगाल के उत्तरी 24 परगना ज़िले से हुई, जहां कथित तौर पर मुहर्रम के जुलूस के दौरान भड़की हिंसा में हिंदुओं के घरों को जला दिया गया और यह हिंसा पांच ओर ज़िलों में फैल गई।
3 जनवरी 2016 को बंगाल की एनएच- 34 पर तकरीबन 2.5 लाख मुस्लिम इकट्ठा हुए। जिन्होंने कालियाचक पुलिस स्टेशन पर हमला कर दिया और पूरे इलाके में दर्जनों गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया। इसके बाद पश्चिम बंगाल के कैनिंग जिला में 19 फरवरी, 2013 में दंगा भड़का क्योंकि ये लोग अलग इस्लामी राज्य की मांग कर रहे थे। इस दंगे में 200 से ज्यादा हिंदुओं के घरों को सुनियोजित तरीके लूटा गया और बड़ी संख्या में मंदिरों को नुकसान पहुंचाया गया। यहां तक पुलिस ने हिंदुओं की मदद के लिए फोन नही उठाए। ये चंद उदाहरण है जो ममता सरकार में हुआ है। ऐसे में अगर कंगना रनौत जैसी अभिनेत्री पश्चिम बंगाल की तुलना कश्मीर से कर रही। तो उसमें ग़लत क्या है?
ममता बनर्जी की पहचान एक मोदी विरोधी नेता की है। वहां तक ठीक है, लेकिन राज्य की जनता और विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ताओं की मौत तो संवैधानिक व्यवस्था के हिसाब से जायज़ नहीं उसको रोकने के लिए ममता सरकार कोई क़दम उठाती क्यों नज़र नहीं आती? यह बड़ा सवाल है। इसके अलावा कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दल ममता सरकार में होती हिंसा पर सवाल नहीं करते। जो उनकी मानसिकता और पार्टी की नीयत पर सवाल खड़ें करती है? क्या आज देश में सिर्फ़ मोदी विरोध ही एक एजेंडा बचा है। ऐसे में यह बड़ा सवाल बन जाता है।