Breaking newsPolitics

भारत ने कोरोना काल मे सभी की मदद की, अब उसे लौटाने का वक्त- जर्मन राजदूत

जर्मनी ने भारत को सौंपा चार लाख लीटर ऑक्सीजन का उत्पादन प्लांट

भारत सदैव से “वसुधैव कुटुम्बकम” की राह पर चलने वाला देश रहा है। इसी के तहत जब पूरी दुनिया कोरोना के कहर से जूझ रही थी। तब भारत ने उनकी मदद की। एक रिपोर्ट की मानें तो भारत ने दुनिया को कोरोना के संक्रमण से बचाने के लिए 11 मार्च 2021 तक लगभग 583 लाख वैक्सीन के डोज़ दिए। भारत ने जिन देशों में वैक्सीन पहुंचाई , उनमें बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, भूटान, मालदीव, श्रीलंका, बहरीन, साउथ अफ्रीका, ओमान, इजिप्ट, कुवैत, अफगानिस्तान जैसे कई अन्य देश भी शामिल हैं। खास बात ये है कि 583 लाख वैक्सीन की डोज में से कुछ वैक्सीन मैत्री के तहत फ्री में भी उपलब्ध कराई गई। भारत ने “वैक्सीन मैत्री” के तहत 79.75 लाख वैक्सीन डोज विभिन्न देशों को मुफ़्त में बांटी।

ऐसे में अगर अब भारत संकट की घड़ी से गुज़र रहा। कोरोना की दूसरी लहर का सबसे अधिक प्रभाव भारत पर ही पड़ रहा। फ़िर हमारे देश की मदद करना भी अन्य देशों का कर्त्तव्य बनता। वैसे भी कोरोना कोई सामान्य बीमारी या आपदा तो नहीं? कोरोना एक वैश्विक महामारी है। जिसकी वज़ह से मानवीय सभ्यता कहीं न कहीं दांव पर है। ऐसे में वैश्विक एकजुटता ज़रूरी है। अच्छी बात यह भी है कि वैश्विक स्तर पर लगभग सभी देश एक-दूसरे की मदद कर भी रहें हैं, लेकिन कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी समाज हमारे देश में है। जो आपदा में भी राजनीतिक अवसर तलाश रहा। यह बुद्धिजीवी समाज सिर्फ़ केंद्र की मोदी सरकार को पानी पी-पीकर कोसने में लगा रहता।

हालिया दौर को ही ले लीजिए। अब जब कोरोना से निपटने के लिए विश्व समुदाय भारत की मदद कर रहा। तो उसमें भी तथाकथित बुद्धिजीवी समाज को दिक़्क़त है। अब ऐसे लोग पूछ रहें कहाँ गया मोदी का “आत्मनिर्भर भारत?” क्या मोदी सरकार ने देश की हालत इतनी ख़स्ता कर दी कि विदेशी मदद को हाथ फैलाना पड़े। लेकिन ऐसे सवाल खड़ें करने के दौरान ये तथाकथित वामी बुद्धिजीवी यह भूल जाते कि वह मोदी सरकार ही है। जिसने शक्तिशाली राष्ट्रों की मदद वैक्सीन देकर की। ऐसे में अगर अब मदद लेने की आवश्यकता आन पड़ी। फ़िर उसे लेने में हर्ज कैसा?

वैसे भी कोरोना वायरस कोई छोटी-मोटी समस्या तो नहीं। विपक्षी दल आज के दौर में तर्क दे रहें कि मोदी सरकार ने वर्षों पुरानी परंपरा तोड़ दी। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने 1991 में उत्तरकाशी भूकंप, 1993 में लातूर भूकंप, 2001 में गुजरात भूकंप, 2000 में बंगाल चक्रवात और 2004 में बिहार बाढ़ के बाद किसी भी तरह की विदेशी मदद नहीं ली। ऐसे में विपक्ष आएं दिन सवाल करता आख़िर अब मोदी सरकार विदेशी मदद क्यों ले रही। ऐसे में एक सवाल उस विपक्ष से ही जो विदेशी मदद पर केंद्र की सरकार को घेर रही। क्या बीते एक-दो दशकों में ऐसी कोई समस्या आई है, जितनी बड़ी समस्या आज कोरोना के रूप में सामने है?

ऐसे में विपक्ष हो या तथाकथित बुद्धिजीवी समाज। उसे सवाल करने से पहले आत्म मंथन करना चाहिए। हर परिस्थिति एक नहीं होती। इसके अलावा भारत ने मदद दी है तो विदेशी देश भी कोरोना से लड़ने में भारत का साथ दे रहें। वैसे भी अब तो जर्मन राजदूत ने कहा दिया है कि “कोरोना संकट के दौरान भारत ने दुनिया को बहुत कुछ दिया। अब उस मदद को लौटाने का वक्त है।” ऐसे में क्या अब तथाकथित बुद्धिजीवी और विपक्षी दल मोदी सरकार पर अनर्गल प्रलाप करने से बाज़ आएंगे यह देखने वाली बात होगी।


आपको बता दें कि जर्मनी ने भारत एक ऑक्सीजन प्लांट भेजा है, जो रोजाना चार लाख लीटर ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकता है। जर्मन दूतावास के अनुसार, “भारत कोविड 19 की लड़ाई लड़ रहा है। दूसरी लहर के कारण हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। इस बीच भारत और उसके नागरिकों की मदद के लिए दुनियाभर के देश आगे आ रहे है।” हर विषम स्थिति में साथ निभाने के अपने वादे को ध्यान में रखते हुए यूरोपियन यूनियन, जर्मनी और जर्मन फेडरल राज्य भारत की इस आपात स्थिति में मदद के लिए आगे आए हैं। भारत और जर्मनी के बीच गहरी दोस्ती हैं। जर्मनी इस कठिन दौर में भारत के साथ खड़ा है। इसके चलते जर्मनी भारत को ऑक्सीजन प्लांट के साथ कई स्वास्थ्य उपकरण मुहैया करवा रहा है।

Back to top button