ऑस्कर में इरफ़ान खान को दी गई श्रद्धांजलि, कहा था- पिता के कारण ही मौत के डर को हटा पाया
बॉलीवुड के दिग्गज़ और दिवंगत अभिनेता इरफ़ान खान को 93वें ऑस्कर अवॉर्ड्स के समारोह के दौरान श्रद्धांजलि अर्पित की गयी. उनके साथ ही और भी कई दिवंगत कलाकारों को 93वें ऑस्कर अवॉर्ड्स में याद किया गया है. बता दें कि, इरफ़ान खान ने हॉलीवुड की ‘लाइफ ऑफ पाय’, ‘जुरासिक वर्ल्ड’, ‘इनफर्नो’ और कई अन्य फिल्मों में काम किया था.
बॉलीवुड की दुनिया में तो इरफ़ान एक चर्चित नाम है, वहीं उन्होंने अपने नाम का डंका हॉलीवुड की दुनिया में भी बजाया है. बीते साल इरफ़ान हम सभी को छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए चले गए थे. इरफ़ान खान के डायलॉग और अभिनय के लोग कायल थे. आज आपको हम इरफ़ान की उस स्पीच के बारे में बता रहे हैं जो उन्होंने 2014 में ‘आईफा’ के मंच पर दी थी. इसमें उन्होंने अपने परिवार के बारे में भी बात की थी.
इरफान ने आगे कहा था कि, ‘रिस्क क्या है…मेरे लिए रिस्क का मतलब सपने देखना है और उनमें पूरा यकीन करना है. मैं जिस परिवार से हूं उसमें कोई क्रिएटिव बैकग्राउंड नहीं था, ना ही मेरा परिवार व्यापारी था. मैं पशोपेश में था. इसी माहौल में मैंने कुछ फिल्में देखी और प्रभावित हो गया. एक्टर बनने का सपना देख लिया. ये मेरे जीवन का सबसे बड़ी रिस्क था. ग्रेजुएशन हो चुका था और मेरे करीबी लोग कह रहे थे कि थिएटर करो लेकिन एक नौकरी भी होना चाहिए. मैंने उनकी बात नहीं मानी. मैं सिर्फ अपने सपने में कूदना चाहता था और मैं सपनों के पीछे हो लिया.’
इरफ़ान आगे कहते हैं कि, ‘जिंदगी में कुछ ऐसे मौके भी आते हैं जब आपको कदम पीछे हटाने होते हैं, उनके लिए भी हमेशा तैयार रहना चाहिए. यहां रिस्क के मायने बदल जाते हैं. एक वक्त था जब मैं क्रिकेट खेलता था. मेरा सेलेक्शन सीके नायडू टूर्नामेंट के लिए हुआ था. 26 साथी चुने गए थे जिन्हें एक कैम्प में जाना था. उस कैम्प में जाने के लिए मैं एक मामूली रकम का इंतजाम नहीं कर पाया. यह वो लम्हा था जब मैंने विचार शुरू किया कि मुझे खेल जारी रखना चाहिए या नहीं. मैंने फैसला लिया कि खेल छोड़ देना चाहिए क्योंकि मुझे इसमें किसी ना किसी सहयोग की जरूरत होगी. मैं नहीं जानता था कि आगे क्या करूंगा फिर भी मैंने क्रिकेट को छोड़ दिया.
‘दिवंगत एक्टर ने आगे कहा कि, जिंदगी आपको सिखाती है. किसी की राय से थोड़ा-बहुत समझ सकते हैं लेकिन सीख नहीं सकते. तमाम किताबें है, तमाम तरह के जानकार हैं जो आपके जीवन को पटरी पर ला सकते हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है. आप जो खुद-ब-खुद सीखते हैं वो उससे बड़ी सीख किसी और से नहीं पा सकते. मैंने खुद देखा कि मेरे पिता ने मौत को कितनी आसानी से लिया, इससे ही मैं मौत के अपने डर को हटा पाया.
जिस दिन वो नहीं रहे, उस दिन सुबह से वो बड़े आराम से थे, मुझे वो पूरा दिन याद है. लोग उन्हें कह रहे थे कि अस्पताल चलें, लेकिन हालातों के कारण उन्होंने अस्पताल जाना नहीं चुना था. उन्होंने चुन लिया था कि अब इसे जारी रखने का मतलब नहीं है, इसलिए दुनिया से विदा होना बेहतर है. मुझे मौत का डर बचपन से रहा, मैंं सोचता था कि कैसे ये सब छूटेगा, जिंदगी की उलझनें, वगैरह. लेकिन जितनी आसानी से मेरे पिता ने फैसला लिया, उससे मैंने मौत को आसानी से लेना सीखा. मौत का डर मुझसे कुछ तरह दूर हुआ.’
अपनी बात जारी रखते हुए इरफ़ान ने आगे कहा था कि, ‘सिस्टम में बदलाव एक से नहीं होगा, सबकी कोशिश से होगा. जब तक जनता को सवाल पूछना नहीं आएगा, बदलाव नहीं होगा. जब तक लोग सिस्टम में शामिल नहीं होंगे, सिस्टम भी लोगों को नहीं पूछेगा. ऐसे में सिस्टम केवल उनका गुलाम बनकर रहेगा जो उसे चला रहे हैं.’