कोरोना वायरस की दूसरी लहर का प्रकोप थमने का नाम नहीं ले रहा है। इसे रोकने के लिए देश में कोरोना वैक्सीनेशन (Corona Vaccination) का प्रोग्राम शुरू हो गया है। 1 मई से 18 वर्ष के ऊपर के लोग भी कोरोना वैक्सीन लगवा सकते हैं। लेकिन इसे लेकर कुछ सवाल भी है जो लोगों के मन में मंडरा रहे हैं। इनमें एक सबसे अहम सवाल ये है कि वैक्सीन लगने के बाद इस टीके का असर कितने दिनों तक रहेगा? चलिए जानते हैं कि एक्सपर्ट्स इस बारे में क्या कहते हैं।
एक्सपर्ट्स की माने तो वैक्सीन कोरोना वायरस से बचने का सबसे बेस्ट ऑप्शन है। ये आपके इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है जिससे आपके बीमार होने के चांस कम हो जाते हैं। लेकिन यहां गौर करने वाली बात ये है कि वैक्सीन का असर हमेशा के लिए नहीं रहता है। यह सिर्फ एक निश्चित अवधि तक ही असरदार रहती है।
अमेरिकी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (Disease Control and Prevention) द्वारा 4000 स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स पर आफ्टर र वैक्सीनेशन एक शऊध किया गया। इस स्टडी में उन्होंने पाया कि फाइजर-बायोएनटेक (Pfizer-BioNTech) की वैक्सीन 6 महीने तक असरदार रहती है। इसके बाद ये आपको कोरोना से शायद ही बचा पाएगी। वहीं कुछ अन्य वैक्सीन 6 महीने से सालभर तक भी असरदार रहती है।
वहीं मॉडर्ना (Moderna) वैक्सीन के दोनों डोज लेने पर यह 6 महीने तक कारगर रहती है। मॉडर्ना वैक्सीन से तैयार हुई एंटी-बॉडीज 6 महीने तक बॉडी में रहती है। लेकिन ये किसी व्यक्ति का बीमार होना उसकी एंटी-बॉडीज के साथ साथ उसके इम्यून सिस्टम पर भी डिपेंड करता है। मतलब आपकी इम्यूनिटी जितनी मजबूत होगी कोरोना का खतरा उतना ही कम होगा।
यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैक्सीन एक्सपर्ट बताते हैं कि वर्तमान में जितनी भी वैक्सीन उपलब्ध हैं उनका असर कम से कम एक साल तक ही रहता अहै। इसलिए भविष्य में यदि कोरोना के नए वैरिएंट्स आते हैं तो ये चिंता का विषय बन जाता है। अगर वायरस के म्यूटेंट बदलते हैं तो हमे वैक्सीन को फिर स अपडेट करना होगा।
एक बात और बताते चलें कि इम्यून सिस्टम को जरूरत से ज्यादा मजबूत बनाना भी नुकसानदायक हो सकता है। ऐसा होने पर शरीर का इम्यून सिस्टम बीमारी से लड़ने की बजाय हमारे शरीर को ही डैमेज करने लगता है। इस स्थिति को साइटोकाइन स्टॉर्म कहा जाता है। इसमें इम्यून सेल फेफड़ों के नजदीक जमा होकर उस पर हमला बोल देते हैं। इतना ही नहीं इसमें खून की नसें फट जाती है और खून के थक्के भी बनने लगते हैं। वैसे तो जांच और इलाज से इस स्थिति को कंट्रोल किया जा सकता है लेकिन कोविड-19 के मरीजों के केस में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।