क्या आज भी जीवित हैं अश्वत्थामा, अपने घाव के साथ भटक रहे हैं जंगलों में
अश्वत्थामा को एक महान योद्धा के तौर पर जाना जाता है और कहा जाता है कि ये आज भी जीवित हैं और जंगलों में भटक रहें हैं। महाभारत युद्ध में इन्होंने बेहद ही अहम भूमिका निभाई थी और इन्होंने कौरवों की ओर से ये युद्ध लड़ा था। ये द्रोणाचार्य के पुत्र थे और इनकी माता का नाम कृपी था। अश्वत्थामा (ashwathama) का जीवन परिचय व इनसे जुड़ी रोचक जानकारी इस लेख के माध्यम से आज हम आपको देने वाले हैं।
अश्वत्थामा का जन्म
कहा जाता है कि अश्वत्थामा के माथे पर जन्म से ही मणि थी। ये काफी चमत्कारी मणि था और इसके कारण इनको कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता था। इनके जन्म के दौरान आकाशवाणी हुई था कि ये बालक अश्वत्थामा के नाम से प्रसिद्ध होगा। अश्वत्थामा ने पिता द्रोणाचार्य से धनुर्विद्या और दिव्यास्त्र का ज्ञान ले रखा था। कहा जाता है कि द्रोणाचार्य ने अपने पुत्र को नारायणास्त्र का ज्ञान भी दिया था। नारायणास्त्र का ज्ञान द्रोणाचार्य के अलावा सिर्फ अश्वत्थामा को ही था।
महाभारत युद्ध अश्वत्थामा (ashwathama) और द्रोणाचार्य ने पांडवों के विरुद्ध लड़ा था। द्रोणाचार्य कौरवों के सेनापति थे। द्रोणाचार्य और अश्वत्थामा को इस युद्ध में हाराना आसान नहीं था। लेकिन श्रीकृष्ण की नीतियों के आगे ये हार गए। श्रीकृष्ण ने युद्ध के दौरान छल से द्रोणाचार्य का वध करवा दिया था। पिता की मृत्यु की खबर जब अश्वत्थामा (ashwathama) को मिली तो उन्होंने पांडव वंश के वध करने की प्रतिज्ञा ले ली थी।
अश्वत्थामा ने पांडव वंश को खत्म करने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया था। अश्वत्थामा ने द्रोपदी के पांचों पुत्र और अभिमन्यु पुत्र परीक्षित जो उत्तरा के गर्भ में था उसका वध ब्रह्मास्त्र से करने की कोशिश की थी। हालांकि भगवान श्री कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे बालक की रक्षा की थी। लेकिन द्रोपदी के पुत्र मारे गए थे। तब श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा (ashwathama) के मस्तक पर लगे मणि को निकाल लिया था और उन्हें युगों-युगों तक भटकते रहने का श्राप दे दिया। कहा जाता है तब से आज तक अश्वत्थामा भटक रहें हैं।
अश्वत्थामा से जुड़ी कहानियां
शिव महापुराण और भविष्य पुराण में भी अश्वत्थामा का जिक्र मिलता है। इनके अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं। भविष्य पुराण के अनुसार जब भगवान विष्णु कल्कि अवतार में जन्म लेंगे तब अश्वत्थामा के साथ मिल कर धर्म युद्ध लड़ेंगे। शिव महापुराण के अनुसार ये जीवित हैं और गंगा के किनारे किसी अज्ञात स्थान पर पर रह रहें हैं।
आर्यभट्ट के अनुसार 3137 ईपू में महाभारत का युद्ध हुआ था। पिछले लगभग 5000 वर्षों से अश्वत्थामा (ashwathama) भटक रहे हैं। लेकिन 2000 वर्ष पूर्व ही अश्वत्थामा श्राप से मुक्त हो चुके हैं और इनके जिंदा होने की संभावना नहीं है।
पृथ्वीराज चौहान को मिले थे अश्वत्थामा
एक बार पृथ्वीराज चौहान जंगल गए थे, उस दौरान उन्हें एक बूढ़ा साधु मिला था। जिसके माथे पर घाव था और घाव के कारण उसे दर्द हो रहा था। पृथ्वीराज ने साधु की ओर मदद का हाथ बढ़ाया था और उनसे कहा था कि आपका ये घाव आयुर्वेद ज्ञान से सही हो जाएगा। पृथ्वीराज ने आयुर्वेद औषधियों से घाव ठीक करने की कोशिश की लेकिन वो ठीक नहीं हुआ। तब पृथ्वीराज ने साधु से पूछा आप कौन हैं और ये घाव कैसे हुआ। क्या आप अश्वत्थामा (ashwathama) हैं? साधु ने कहा हाँ मैं अश्वत्थामा हूं। इसके बाद अश्वत्थामा ने पृथ्वीराज को शब्दभेदी बाण चलाने की विधि बताई थी।
इसके अलावा मध्य प्रदेश के बुरहानपुर के लोगों का माना है कि वहां पर स्थित असीरगढ़ किले में मौजूद शिवमंदिर रोज अश्वत्थामा (ashwathama) आते हैं और पूजा करतें हैं। गांव के लोगों को रोज शिवलिंग पर फूल एवं गुलाल चढ़ा मिलता है। जबकि कुछ लोगों का माना है कि विंध्यांचल की पहाड़ियों में ये आज भी तपस्या कर रहे हैं।