बायोग्राफी

आर्यभट्ट का जीवन परिचय | Aryabhatta Biography, History in Hindi

आर्यभट्ट को महान गणितज्ञ, ज्योतिषविद और खगोलशास्त्री के तौर पर पूरे विश्व में जाना जाता है। इन्होंने ‘कॉपरनिकस’ से लगभग 1 हजार साल पहले ही इस चीज की खोज कर ली थी कि पृथ्वी गोल है और सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती हैं। आर्यभट्ट (Aryabhatta) ने ही त्रिकोणमिती के Sin और Cosine की भी खोज की थी। साथ में ही गणितीय भाग में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति के बारे में भी इन्होंने ही बताया था। आज हम आपको आर्यभट्ट का जीवन परिचय (aryabhatta biography in hindi) देने जा रहे हैं। तो आइए सबसे पहले जानते हैं इनके जन्म से जुड़ी जानकारी-

आर्यभट्ट का जीवनी (aryabhatta biography in hindi)

नाम (Name)-                       आर्यभट्ट
जन्म (Birth)-                         दिसंबर, ई.स.476
मृत्यु (Death)-                       दिसंबर, ई.स. 550 [74 वर्ष ]
जन्म स्थान (Birth Place)-         अश्मक, महाराष्ट्र, भारत
कार्यक्षेत्र (Profession)-            गणितज्ञ, ज्योतिषविद एवं खगोलशास्त्री
कार्यस्थल (Work Place)-         नालंदा विश्वविद्यालय
रचनायें –                               आर्यभटीय, आर्यभट्ट सिद्धांत
योगदान –                              पाई एवं शून्य की खोज

आर्यभट्ट का जन्म (Aryabhatta Birth)

इनके जन्म को लेकर स्पष्ट जानकारी नहीं है। कुछ इतिहासकारों का माना था कि इनका जन्म बिहार के कुसुमपुर वर्तमान नाम पटना में शक संवत् 398 हुआ था। जबकि कुछ का माना था कि आर्यभट्ट का जन्म (Aryabhatta Birth) महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। दरअसल आर्यभट्ट के जन्म (Aryabhatta Birth) के वर्ष का आर्यभटीय में जिक्र किया गया है। लेकिन फिर भी इनके जन्म स्थान को लेकर हमेशा विवाद रहा है। कुछ मानते हैं कि इनका जन्म नर्मदा और गोदावरी नदी के मध्य वाले क्षेत्र में हुआ था। जबकि एक ताजा अध्ययन में केरल के चाम्रवत्तम को इनका जन्म स्थान माना गया है।

हालांकि आर्यभट्ट का जन्म 476 ई. को कुसुमपुर दक्षिण में हुआ था। ये अब सिद्ध हो चुका है।

आर्यभट्ट का शिक्षा (Aryabhatta Education)

आर्यभट्ट ने उच्च शिक्षा कुसुमपुरा (पटना) के नालन्दा विश्वविद्यालय से हासिल की थी। आर्यभट्ट जीनालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे। आर्यभट्ट ने चार ग्रंथ दशगीतिका, आर्यभटीय, तंत्र और आर्यभट्ट सिद्धांत की रचना की है। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना 499 में की थी। इस ग्रंथ की रचना के समय इनकी आयु 23 साल की थी।

आर्यभट्ट सिद्धांत में केवल 34 श्लोक ही हैं। आर्यभटीय में लिखे श्लोक को चार भाग गीतिकपाद, गणितपाद, कालक्रियापाद और गोलपाद में विभाजित किया गया है। गीतिकपाद में 13 श्लोक है। इसमें ब्रह्माण्ड विज्ञान, ज्योतिष, त्रिकोणमिती और ग्रहों के परिभ्रमण बताया गया है। गणितपाद में 33 श्लोक है। इन श्लोकों में अंकगणित, बीजगणित और रेखागणित की जानकारी है। कालक्रियापाद में 25 श्लोक है। इन श्लोकों में ग्रहों की गति और ग्रहों की स्थिति की जानकारी दी गई है। गोलपाद में 50 श्लोक है। इन श्लोकों में पृथ्वी के आकार, दिन और रात के कारण, ग्रहों सूर्य से दूरी, सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की जानकारी दी गई है।

आर्यभट्ट द्वारा की गई महत्वपूर्ण खोजें –

1.इन्होंने गणित में पाई (π) मान को बताया था और खगोलविज्ञान में उदाहरण के साथ बताया की पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। निकोलस कोपरनिकस ने जो खोज 1473 से 1543 ई. में की थी। उसे इन्होंने हजार वर्ष पहले ही खोज लिया था। गोलपाद में लिखा है कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है।

2.इन्होंने पृथ्वी की परिधि की लंबाई 39,968.05 किलोमीटर बताई थी। जो असल लंबाई 40,075.01 किलोमीटर से 0.2 प्रतीशत कम है। इन्होंने पृथ्वी के घूमने की गति का मापन भी किया था और बताया था कि पृथ्वी 23 घंटे 56 मिनट और 4.1 सेकंड में चक्कर लगाती है। जो आज के समय से 3 मिनट 20 सेकंड कम है।

3.आर्यभट्ट ने खोज की थी कि एक साल की लंबाई 365.25868 दिन होता है। जो कि आज के हिसाब से 365.25636 है।

4. चन्द्रमा को पृथ्वी के चक्कर लगाने में 27.32167 दिन लग जाते हैं, इसकी खोज भी इन्होंने की थी। जो कि आज के हिसाब से 27.32166 दिन है।

5. सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण लगने का समय और ग्रहण कितने समय का होगा, इसका पता लगाने के लिए इनके द्वारा फार्मूला दिया गया था।

6.इन्होंने ही बताया था कि सौर मंडल के केंद्र में सूर्य है, और सूर्य सौर मंडल के बाकी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करती है। साथ ही सूर्य से सौर मंडल बाकी ग्रहों की दूरी के बारे में बताया है।

7.आर्यभट्ट ने शून्य का आविष्कार किया है।

आर्यभट्ट की मृत्यु (Aryabhatta Death)

आर्यभट्ट के परिवार के बारे में जानकारी ज्यादा उपलब्ध नही हैं। इन्होंने अपना पूरा जीवन गणित और खगोलविज्ञानको समर्पित किया था। वहीं इन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस ई.स. 550 (74 वर्ष) में ली थी।

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