हर व्यक्ति को अपनानी चाहिए ‘रामायण’ की ये ख़ास बातें, जीवन हो जाएगा सफ़ल
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम एक श्रेष्ठ पति, पिता और पुत्र होने के साथ ही एक श्रेष्ठ राजा भी थे. भगवान श्री राम ने मानव को जीवन जीने की कला सिखाई है. पुरुषों में सबसे उत्तम भगवान राम को माना गया है. भगवान विष्णु के अवतार के रूप में धरा पर कर श्री राम ने जग कल्याण का कार्य किया है.
भगवान राम की महिमा का बखान करना किसी के लिए भी बहुत मुश्किल है. श्री राम के पूरे चरित्र का वर्णन पवित्र ‘रामचरितमानस’ और रामायण में देखने एवं सुनने को मिलता है. भगवान राम के चरित्र से प्रेरणा लेकर कार्य करने से जीवन में आने वाली वाधाओं को दूर करने में मदद मिलती है.
आज श्री राम द्वारा बताई और अपनाई गई कुछ ऐसी बातों के बारे में हम आपको जानकारी देने जा रहे हैं, जिनको ध्यान में रखते हुए और उन पर अमल करते हुए आप कार्य करते हैं तो आप एक बेहतर जीवन के हकदार बन सकते हैं. तो चलिए भगवान श्री राम की आपको कुछ विशेष बातों से अवगत कराते हैं…
धैर्यता और गंभीरता…
यह दोनों ही गुण किसी भी व्यक्ति में अति आवश्यक है. एक और जहां श्री राम ने अपने जीवनकाल में धैर्य से काम लिया तो वहीं दूसरी और उन्होंने गंभीरता को भी अपनाया. बताया जाता है कि, सुख और दुख में संयम और धैर्य बनाए रखना छाईए. जो व्यक्ति ऐसा कर लेता है वह कभी भी पीड़ा के अधीन नहीं होता है. जबकि समय-समय पर और आवश्यकता के अनुसार आपको गंभीर भी होना चाहिए. गंभीरता किसी के भी व्यक्तित्व में निखार लाने का काम करती है.
निडर रहे…
कहा जाता है कि डर के आगे जीत है. असल ज़िंदगी में यह सही भी है. रामायण में भी इस बात का उल्लेख है कि, मानव को कभी भी डरना नहीं चाहिए. उसे सदा निडर बने रहना चाहिए. जो व्यक्ति डरता है वह सफ़लता से कोसों दूर रहता है, वहीं सफ़लता निडर व्यक्ति को ही प्राप्त होती है. अतः मुसीबतों में मुसीबतों का सामना करें न कि उनसे डरकर अपने कदम पीछे हटा लें. डर पर विजय पाना मतलब सफ़लता प्राप्त करना है.
ज्ञान और परिश्रम से बढ़ाए आत्मविश्वास…
जो व्यक्ति आत्मविश्वास से परिपूर्ण होता है उसे निश्चित अपने हर काम में सफ़लता मिलती है. चाहे कोई भी काम हो मनुष्य को उसे अंजाम देने के लिए आत्मविश्वास होना चाहिए. रामायण कहती है कि ज्ञान और परिश्रम से आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है.
माता-पिता की आज्ञा मानें…
रामायण का मुख़्य बिंदु तो यही था कि श्री राम ने माता-पिता की आज्ञा का पालन किया था. माता-पिता के वचन को निभाते हुए भगवान श्री राम ने वन गमन का निर्णय लिया. श्री राम का राजतिलक होना था, उन्हें अवध नगरी की गद्दी सौंपी जानी थी, लेकिन तब ही माता कैकयी ने राजा दशरथ से अपने वचन मांग लिए और इस तरह से श्री राम को 14 बरस का वनवास हो गया. अवध की गद्दी पर बैठने वाले श्री राम को सब कुछ त्याग कर वन के लिए जाना पड़ा. अतः रामायण से हमें यह सीख मिलती है कि, परिस्थिति कैसी भी हो माता-पिता की आज्ञा का पालन बच्चों को करना चाहिए.