दिलचस्प

शर्मनाक !! तो इसलिए सियाचिन में बिना लड़े शहीद हो गए एक हज़ार भारतीय फौजी!

सोचिए की अगर आप युद्ध के बीच में खड़े हैं और आपने कवच पहन रखा है तो आप दोहरे जोश से लड़ सकते हैं। लेकिन, अगर आपको ये पता चले कि आपका कवच तो घटिया है। ये कवच दुश्मन के वार रोक नहीं सकेगा। आपको आने वाली आफत से बचा नहीं सकेगा तो आप क्या करेंगे? आरोप लग रहे हैं कि दुनिया की सबसे ऊंची युद्धभूमि पर, शून्य से 70 डिग्री नीचे तक चले जाने वाले तापमान में सरहद की रखवाली कर रहे देश के रखवालों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है।

कहा जा रहा है कि सियाचिन में पाकिस्तान और चीन की शैतानी घुसपैठ पर नजर रखने के अलावा बेहद खराब मौसम से लड़ने वाले देश के वीर सपूतों के कवच- जीवनरक्षक कवच की क्वालिटी खराब है। आरोप लग रहे हैं कि ये जवान बर्फ के इस रेगिस्तान में जिंदा रहने केलिए जो स्नो सूट पहनते हैं वो न तीखी हवा रोक पाता है, न पानी। कहा ये भी जा रहा है कि ये स्नो सूट -15 डिग्री तापमान पर ही जवाब दे जाता है। सियाचिन में पिछले बीस सालों में भयानक सर्दी के चलते होने वाली बीमारियों से एक हजार फौजी शहीद हो चुके हैं।

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सियाचिन में चौबीसों घंटे यही सवाल हवा में तैरता और फिर -40 डिग्री तापमान में बर्फ बन जाता है। सवाल ये कि 18,875 फीट ऊंचे इस ग्लेशियर में जिंदा रहना ज्यादा मुश्किल है या फिर दुश्मन से जंग लड़ना? शायद इसी सवाल से जूझते हुए पिछले बीस सालों में भारतीय फौज के एक हजार सपूत शहीद हो चुके हैं। हकीकत ये है कि यहां पाकिस्तान से भी बड़ा दुश्मन बर्फ, ठंड, बीमारियां और खराब मौसम है फिर भी हर फौजी की जुबान पर सबसे पहले मादरे वतन ही आता है।

हालात ये है कि यहां इतनी ऊंचाई और सर्दी में हथियार जाम हो जाते हैं। शरीर के अंग सुन्न पड़ने लगते हैं, बर्फ के तूफान के बीच पलकें भी जमने लगती हैं

फिर भी हर फौजी यही कहता है कि दुश्मन को एक इंच जमीन भी न लेने देंगे, लेकिन इस खौफनाक जंगी मैदान में जिंदा रहने के लिए फौजियों का जीवनरक्षक है उनका कवच – उनके सीने पर चढ़ा वो स्नो सूट जो उन्हें गर्म रखता है, जो बाहर की ठंड, पानी और तेजी से गिरते तापमान से उन्हें बचाए रखता है।

ऐसा कवच जो बर्फ के पहाड़ों के खिसकने से पैदा हुए तूफान में उन्हें जिंदगी की मोहलत देता है। ऐसा ही सूट पहने थे लांस नायक हनुमंथप्पा – जब तूफान के बीच वो अपने साथियों के साथ बर्फ के नीचे दब गए।  बाकी तो बन न सके लेकिन हनुमंथप्पा कई दिन बाद भी जिंदा निकाले गए, लेकिन वो भी बच न सके।

ये बातें वाकई चौंकाने वाली हैं। जो जवान देश की रक्षा के लिए अपनी जान हथेली पर रख सियाचिन जैसी पोस्ट पर तैनात हैं, क्या हमें उनकी परवाह नहीं है, क्या हम उन्हें घटिया क्वालिटी के स्नो सूट पहनने पर मजबूर कर रहे हैं? जबकि यही उनका कवच है, यही उनका प्राणरक्षक है, यही उनका जीवन रक्षक है, लेकिन नेटवर्क 18 के पास मौजूद ईमेल्स, चिट्ठियां और रिपोर्ट चीख चीख कर खून खौलाने वाली ऐसी ही गवाही दे रही हैं। एक चिट्ठी से ये संगीन आरोप लगते हैं। इस चिट्ठी के मुताबिक–

तारीख – 24 अगस्त 2015, ये चिट्ठी श्रीलंका की रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड के एक पूर्व कर्मचारी ने लिखी है। ये कंपनी ब्रिटेन के कारोबारी समूह आईमेल का हिस्सा है। ये वो कंपनी है, जिसे 2012 में भारतीय फौज को तीन लेयर वाले स्नो सूट सप्लाई करने का ऑर्डर मिला था। ये चिट्ठी रक्षा मंत्रालय के हर आला अफसर और बाबू को भेजी गई थी। इस चिट्ठी के कुछ लफ्जों में आपको शायद नजर आए सियाचिन में -40 डिग्री से -70 डिग्री के तापमान पर देश की रखवाली करते हर फौजी का चेहरा। चिट्ठी में आरोप है कि श्रीलंका की रेनवियर कंपनी ने भारत सरकार को 20 लाख डॉलर से भी ज्यादा का चूना लगाया है। 20 लाख डॉलर यानी करीब 13 करोड़ 20 लाख रुपये। आरोंपों के मुताबिक वो स्नो सूट तीन-तीन खामियों से भरा हुआ है यानि ये स्नो सूट फौजियों का जीवन रक्षक नहीं है।

पहला आरोप-  विंडप्रूफ नहीं: स्नो सूट के दूसरे लेयर में इस्तेमाल किया गया हरा कपड़ा विंडप्रूफ नहीं है यानि तेज हवा को वो रोक नहीं सकेगा और हवा तीर की तरह फौजी के शरीर में चुभेगी।

दूसरा आरोप- वॉटरप्रूफ नहीं:  स्नो सूट के दूसरे लेयर में इस्तेमाल किया गया हरा कपड़ा वॉटरप्रूफ भी नहीं है यानि स्नो सूट फौजियों को गलती हुई बर्फ से बचा नहीं सकेगा, बर्फ का पानी भीतर घुस जाएगा, और फौजी को बेतरह सर्दी लगेगी।

तीसरा आरोप –  सिर्फ -15 डिग्री में कारगर:  स्नो सूट में जो कपड़ा इतेमला किया गया है वो यूरोप में अधिकतम -15 डिग्री तापमान सह सकता है, यही कंपनी इसी स्नो सूट को दूसरे नाम से यूरोप में बेच रही है यानि यूरोप की सर्दी में तो ये चल सकता है, लेकिन सियाचिन की -40 से लेकर -70 डिग्री तापमान के बीच ये बेकार हो जाएगा, न बदन को गर्म रख सकेगा न बाहर की सर्दी को भीतर आने से रोक ही पाएगा।

हैरत की बात ये है कि सियाचिन में किसी भी भारतीय फौजी के लिए सबसे बड़ी चुनौती शरीर को गर्म रखना होती है। शरीर गर्म न रहने पर ही हायपोथर्मिया के शिकार हो जाते हैं, जिसमें शरीर के अंग नीले पड़ जाते हैं, कई बार उन्हें काटन भी पड़ जाता है या फिर भयंकर सर्दी के असर से मौत तक हो जाती है। और तो और रेनवियर कंपनी का ये गुमनाम पूर्व मुलाजिम एक और संगीन इल्जाम भी लगा रहा है। उसका दावा है कि कंपनी ने फौजियों के स्नो सूट को लेकर झूठ पर झूठ बोले हैं।

आरोप के मुताबिक स्नो सूट का ठेका हासिल करते वक्त उसमें जिस कपड़े का इस्तेमाल किया गया था और ठेका मिलने के बाद भारतीय फौज को दिए गए स्नो सूट का कपड़ा एक जैसा नहीं है। तो क्या ये चिट्ठी एक बड़े फर्जीवाड़े की ओर इशारा कर रही है, वादा एक अच्छे स्नो सूट का था, लेकिन सप्लाई दी गई घटिया स्नो सूट की, तो क्या वाकई श्रीलंका की इस कंपनी ने भारतीय फौजियों की जान से भयंकर खिलवाड़ किया?

तो क्या वाकई में सियाचिन में पाकिस्तानी घुसपैठ पर चौबीसों घंटे नजर रखने वाले भारतीय फौजी अक्सर सर्दी में ठिठुर जाते हैं? क्या वाकई बर्फ और बर्फ का पानी उनके कपड़ों के भीतर तक घुस कर उन्हें बेदम और बीमार बना रहा है? क्या सियाचिन में पारा -15 डिग्री से और नीचे गिरते ही उनकी पोशाक उन्हें सर्दी से बचाने में नाकाम हो जा रही है? इन सवालों के मंथन के बीच आरोपों की चिट्ठी में श्रीलंका में भारतीय हाई कमीशन का कोई अज्ञात अफसर भी शामिल हो गया।

सवाल उठने लाजमी थे कि क्या वाकई श्रीलंका की रेनवियर प्राइवेट लिमिटेड के पूर्व कर्मचारी से मिलने भारतीय उच्चायुक्त का कोई अफसर आया था? भारत सरकार को श्रीलंका की एक कंपनी छल रही है, ये आरोप जानने के बाद भारतीय उच्चायोग ने आखिर क्या सक्रियता दिखाई? रक्षा मंत्री ने आखिर इस गंभीर शिकायत पर क्या कार्रवाई की? क्या रक्षा मंत्रालय के बाबुओं ने इतने संगीन इल्जाम लगाने वाले श्रीलंकाई व्यक्ति तक पहुंचने की कोशिश की, इस घटना पर कोई प्रतिक्रिया दी?

हैरत ये है कि श्रीलंका के इस विसलब्लोअर यानि सच सामन लाने की कोशिश करने वाले प्रहरी को सिर्फ मायूसी ही मिली। वो इंसान जो सियाचिन में तैनात भारतीय फौजियों के जीवनरक्षक कवच में धांधली के संगीन इल्जाम लगा रहा था उसे श्रीलंका में जान का खतरा तक पैदा हो गया। और जब उसने देखा कि संतरी से लेकर मंत्री सब खामोश हैं तो उसने अंतिम अस्त्र दागा। उसने भारतीय फौजियों के प्राण बचाने की गुहार लगाते हुए खुद प्रधानमंत्री को चिठी लिख मारी।

तारीख – 23 जनवरी 2016,  प्रधानमंत्री से भी उसने (विसल ब्लोअर) वही गुहार लगाई। कृपया श्रीलंका की कंपनी की ओर से भारतीय फौज को दिए गए स्नो सूट की किसी भी अंतरराष्ट्रीय लैब में जांच करवा लें। पांच महीने बाद प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जवाब आया।

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