इस जगह हुआ था शिव-पार्वती का विवाह, आज भी सात फेरे लेने वाले कुंड में जलती है अग्नि
महादेव और मां पार्वती के विवाह से काफी रोचक कहानी जुड़ी हुई है। जिसका उल्लेख शास्त्रों में मिलता है। शास्त्रों के अनुसार इन दोनों का विवाह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हुआ था। मां पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए काफी घोर तपस्या की थी और इसी तपस्या के कारण शिव जी पार्वती के साथ विवाह करने को राजी हुए थे। दरअसल देवी पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी और सभी देवी देवता भी यही चाहते थे। लेकिन भोलेनाथ शादी के लिए राजी नहीं थे।
एक दिन देवताओं ने देवी पार्वती से विवाह का प्रस्ताव लेकर कन्दर्प को भगवान शिव के पास भेजा। जिसे शिव ने ठुकरा दिया और उसे अपनी तीसरी आंख से भस्म कर दिया। जब ये बात पार्वती मां को पता चली तो उन्होंने शिव को अपना वर बनाने के लिए कठोर तपस्या करना का फैसला किया। मां पार्वती ने शिव जी को अपना पति बनाने के लिए काफी घोर तपस्या शुरू कर दी। इस दौरान शिव जी ने पार्वती मां की कई परीक्षाएं भी ली। जिन्हें मां पार्वती ने आसानी से पार कर लिया।
कहा जाता है कि मां जब शिव जी को पाने के लिए घोर तपस्या कर रही थी। तभी शिव जी एक सुंदर राजकुमार के रूप में उनसे मिलने के लिए आए। लेकिन पार्वती मां ने उनपर ध्यान तक नहीं दिया और अपनी तपस्या में लगी रही। पार्वती मां की ये तपस्या देख शिव जी उनसे विवाह करने को राजी हो गए। जिसके बाद धूमधाम से इनका विवाह करवाया गया। इस विवाह में देवी-देवता भी शामिल हुए।
जिस जगह इनका विवाह हुआ था उस जगह को आज त्रिर्युगी नारायण के नाम से जाना जाता है जो कि रुद्रप्रयाग एक गांव है। इस जगह पर काफी सारे मंदिर मौजूद हैं और दूर-दूर से लोग इन मंदिरों को देखने के लिए आते हैं। त्रिर्युगी नारायण में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का मंदिर। जिसे इनका विवाह स्थल माना जाता है।
त्रिर्युगी नारायण में एक ब्रह्मकुंड और विष्णुकुंड भी हैं। शास्त्रों के अनुसार शिव-पार्वती के विवाह में ब्रह्माजी पुरोहित बनें थे और शादी से पहले ब्रह्माजी ने ब्रह्मकुंड में स्नान किया था। इसी तरह से शिव-पार्वती के विवाह में भगवान विष्णु ने भाई के रूप में सभी रीति-रिवाजों को पूरा किया था। शादी से पहले जहां विष्णुजी ने स्नान किया था वो विष्णुकुंड है। जबकि शादी में आए अन्य देवी देवता ने रुद्रकुंड स्नान किया था और उसके बाद शादी में शामिल हुए थे।
भगवान शिव और माता पार्वती ने जिस जगह बैठकर विवाह किया था वो जगह त्रिर्युगी मंदिर में मौजूद है। इसी स्थान पर ब्रह्माजी ने शिव-पार्वती का विवाह संपन्न करवाया था। भगवान शिव को विवाह के समय एक गाय दी गई थी। जिसे मंदिर के स्तंभ पर बांधा गया था। ये गाय जिस स्तंभ पर बंधी थी वो स्तंभ आज भी मौजूद है। इसके अलावा पास में ही एक गौर कुंड भी है। कहा जाता है कि इस जगह माता पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। आज भी इस कुंड का पानी काफी गर्म है।
मंदिर के प्रांगण में जहां भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, वहां आज भी अग्नि जलती रहती है। इस अग्नि के चारों ओर ही माता पार्वती और शिव जी ने सात फेरे लिए थे। इस मंदिर में आने वाले लोग अपने साथ अग्नि कुंड की राख ले जाते हैं। मान्यता है कि इस राख को घर में रखने से पति व पत्नी के रिश्ते में प्यार बना रहता है।
इसके अलावा जिन लोगों का विवाह होने में देरी हो रही है अगर वो ये राख घर ले जाते हैं, तो उनका विवाह जल्द हो जाता है। इसके अलावा जिन लोगों को संतान नहीं है अगर वो यहां आकर पूजा करते हैं, तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो जाती है। हर साल सितंबर के माह में बावन द्वादशी की शुभ तिथि पर यहां खास मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में कई संख्या में लोग शामिल होने को आते हैं।
शिवरात्रि के दौरान भी लगता है मेला
इस जगह पर शिवरात्रि के अवसर पर भी मेला लगाया जाता है। इस दौरान मंदिर में खासा बिगड़ देखने को मिलती है। दूर-दूर से लोग यहां आकर पूजा करते हैं। शास्त्रों के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही शिव और पार्वती मां का विवाह हुआ था।