इस वजह से मनाया जाता है महाकुंभ का मेला, पढ़ें इससे जुड़ी पौराणिक कथा
महाकुंभ मेला इस बार हरिद्वार में लग रहा है। मान्यता है कि कुंभ मेले के दौरान पवित्र नदी में स्नान करने से पापों से मुक्ति मिल जाती है और दुखों का नाश हो जाता है। महाकुंभ मेला क्यों मनाया जाता है, इससे कई पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं। एक कथा इंद्र से जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार एक बार इंद्र देव ने दुर्वासा द्वारा दी गई दिव्य माला का अपमान किया था। इंद्र ने इस माला को ऐरावत के मस्तक पर रख दिया और ऐरावत ने उसे नीचे खींच कर पैरों से कुचल दिया। इस बात से गुस्सा होकर दुर्वासा ने इंद्र को लक्ष्मीहीन होने का श्राप दे दिया।
महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण इंद्र दैत्यों के राजा बलि से युद्ध में हार गए और राजा बलि ने तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। निराश होकर इंद्र देव ब्रह्माजी के पास गए। ब्रह्माजी इंद्र देव को साथ लेकर श्रीहरि के आश्रम गए। श्रीहरि ने इंद्र से कहा कि आप सभी देवतागण दैत्यों से सुलह कर लें और उनका सहयोग पाकर मंदराचल को मथानी तथा वासुकि नाग को रस्सी बनाकर क्षीरसागर का मंथन करें। समुद्र मंथन से जो अमृत प्राप्त होगा उसे पिलाकर मैं आप सभी देवताओं को अमर कर दूंगा।
इंद्र दैत्यों के राजा बलि के पास गए और उनके समक्ष समुद्र मंथन का प्रस्ताव रखा। अमृत के लालच में आकर दैत्य, देवता साथ मिल गए। देवताओं और दैत्यों ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर मंदराचल पर्वत को उठाकर समुद्र तट पर लेकर गए और मंदराचल को मथानी एवं वासुकि नाग की रस्सी बनाकर समुद्र मंथन करने लगे। तत्पश्चात समुद्र मंथन से लक्ष्मी, कौस्तुभ, पारिजात, सुरा, धन्वंतरि, चन्द्रमा, पुष्पक, ऐरावत, पाञ्चजन्य, शंख, रम्भा, कामधेनु, उच्चै:श्रवा और अंत में अमृत कुंभ निकला। जिसे लेकर धन्वंतरिजी आए। उनके हाथों से अमृत कलश छीनकर दैत्य भाग गए। जिससे सभी देवता परेशान हो गए। तब श्रीहरि यानी विष्णु जी ने सुंदर नारी मोहिनी का रूप धारण किया और देवता और दानवों के बीच पहुंच गए। मोहित होकर दानवों ने अमृत का कलश इन्हें सौंप दिया।
कहा जाता है कि अमृतपान से वंचित असुरों ने कुंभ को नागलोक में छिपा दिया था। जहां से गरुड़ ने उसका उद्धार किया। क्षीरसागर तक पहुंचने से पूर्व जिन स्थानों पर उन्होंने कलश रखा, वहां ही कुंभ का मेला लगता है।