शिवरात्रि के दिन शिवलिंग को बस अर्पित कर दें ये दो चीजें, हो जाएगी हर कामना पूर्ण
भगवान शिव को प्रसन्न करना बेहद ही सरल है और मात्र बेलपत्र और जल चढ़ाकर इनकी कृपा पाई जा सकती है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए महाशिवरात्रि का दिन सबसे उत्तम होता है और जो भक्त इस दिन शिवलिंग की पूजा करते हैं और इन्हें बेलपत्र और जल अर्पित करते हैं। उनपर सदा भगवान शिव की कृपा बनीं रहती है। इस वर्ष महाशिवरात्रि 11 मार्च को आ रही है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, महाशिवरात्रि पर्व माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। जबकि दक्षिण भारतीय पंचांग के अनुसार ये पर्व माघ माह के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस साल ये दोनों तिथियां एक ही दिन पड़ रही हैं। साथ में ही इस बार महाशिवरात्रि पर शिव योग के साथ घनिष्ठा नक्षत्र होंगे और चंद्रमा मकर राशि में विराजमान रहेंगे। यानी महाशिवरात्रि कई शुभ संयोग के साथ आ रही है।
महाशिवरात्रि 2021 शुभ मुहूर्त
निशीथ काल पूजा मुहूर्त 11 मार्च को 24:06:41 से 24:55:14 तक रहेगा। यानी इसकी अवधि 48 मिनट की है। जबकि महाशिवरात्रि पारणा मुहूर्त 06:36:06 से शुरू हो जाएगा जो कि 15:04:32 तक रहेगा।
जरूर अर्पित करें जल व बेलपत्र
भोलनाथ को प्रसन्न करने के लिए उन्हें आप जल और बेलपत्र जरूर अर्पित करें। दरअसल शिवलिंग पर जल अर्पित करने से एक कथा जुड़ी हुई है। जिसके अनुसार समुद्र मंथन के समय कालकूट नामक विष निकला था जो कि देवताओं के हिस्से में आया था। देवताओं को इस विष से बचाने के लिए शिव जी ने स्वयं इसे पी लिया था और इसे अपने कंठ पर ही रखा था। जिससे शिव जी का कंठ नीला पड़ गया था। इसलिए महादेव को ‘नीलकंठ’ भी कहा जाता है। वहीं इस विष के कारण शिव जी का शरीर तपने लगा था। शिव जी के शरीर को ठंडा रखने के लिए देवताओं ने इनके मस्तिष्क पर जल डालना शुरू कर दिया और ठंडी तासीर होने की वजह से उन्हें बेलपत्र भी चढ़ाए।
ऐसे हुई बेल की उत्पत्ति
बेलपत्र वृक्ष की उत्पत्ति का जिक्र ‘स्कंदपुराण’ में मिलता है। कथा के अनुसार एक बार देवी पार्वती ने अपने ललाट से पसीना पौंछकर जमीन पर फेंक दिया था। जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं और इस पर्वत पर पहले बेल वृक्ष की उत्पत्ति हुई। शास्त्रों में इस वृक्ष के बारे में लिखा गया है कि इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तने में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी का वास होता है।
इस तरह से किया जाता है अर्पित
- भगवान शिव को बेलपत्र अर्पित करते हुए कई तरह की बातों का ध्यान रखना होता है। हमेशा उल्टा बेलपत्र यानी चिकनी सतह की तरफ वाला वाला भाग ही शिवलिंग पर रखना चाहिए।
- बेलपत्र को हमेशा अनामिका, अंगूठे और मध्यमा अंगुली की मदद से चढ़ाएं।
- बेलपत्र की तीन पत्तियों वाला गुच्छा ही अर्पित करें। माना जाता है कि इसके मूलभाग में सभी तीर्थों का वास होता है। इसके साथ ही जो बेलपत्र आप चढ़ाएं वो एकदम साफ हो। बेलपत्र कहीं से भी गंदा वो टूटा हुआ न हो।
- बेलपत्र कभी अशुद्ध नहीं होता। पहले से चढ़ाया हुआ बेलपत्र भी फिर से धोकर चढ़ाया जा सकता है।
- मान्यता है कि जिस घर में बेल का वृक्ष होता है वहां धन की कमी कभी नहीं होती है।
- जो भक्त भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाते हैं। उनके सारे दुख दूर हो जाते हैं और भोलेनाथ सारी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं।
- चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या, संक्रांति के समय और सोमवार को बेल पत्र नहीं तोड़ना चाहिए।
- बेलपत्र के पेड़ को आप घर के आंगन में भी लगा सकते हैं।
जो लोग भोलेनाथ को बेलपत्र व जल अर्पित करते हैं। उनपर शिव जी की कृपा सदा के लिए बन जाती है। बेलपत्र शिव जी को चढ़ाने से दरिद्रता दूर होती है और व्यक्ति सौभाग्यशाली बनता है। इतना ही नहीं जिन लोगों का विवाह नहीं हो रहा होता है, अगर वो शिव जी को बेलपत्र और जल चढ़ाते हैं। तो विवाह जल्द ही जो जाता है और सच्चा जीवन साथी मिलता है। कई लोग महाशिवरात्रि का व्रत भी रखते हैं और इस दिन केवल फल और दूध का ही सेवन करते हैं। इसलिए आप चाहें तो महाशिवरात्रि का व्रत भी रख सकते हैं।