आखिर वेद ही तो है, सनातन धर्म का आधार
वेदों को सनातन धर्म का आधार माना जाता हैं। यह शब्द संस्कृत भाषा के ‘विद्’ धातु से बना है। इन्हें हिंदू धर्म का सबसे पवित्र धर्म ग्रंथ माना गया है। इनमें वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई है।
वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित अभिलेख है। वेदों की 28 हजार पांडुलिपियां महाराष्ट्र राज्य में पुणे के ‘भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट’ में रखी हुई है। इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियां बहुत ही महत्वपूर्ण है जिन्हें यूनेस्को ने विश्व विरासत सूची में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है।
वेद को ‘श्रुति’ भी कहा जाता है। ‘श्रु’ धातु से ‘श्रुति शब्द बना है। ‘श्रु’ सुनना। कहते हैं कि इसके मंत्रों को ईश्वर (ब्रह्मा) ने प्राचीन तपस्वियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था जब वे गहरी तपस्या में लीन थे। सर्वप्रथम ईश्वर ने चार ऋषियों को इसका ज्ञान दिया-अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य।
वेद प्राचीन भारत के साहित्य है जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रंथ भी है। भारतीय संस्कृति में सनातन धर्म के मूल और सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं जिन्हें ईश्वर की वाणी समझा जाता है।
वेद वैदिक काल में वाचिक परम्परा की अनुपम कृति है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी पिछले सात हजार ईस्वी पूर्व से चली आ रही है। विद्वानों ने संहिता,ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद इन चारों के संयोग को समग्र वेद कहा है। ये चार भाग सम्मिलित रूप से श्रुति कह जाते हैं। बाकी ग्रंथ स्मृति के अंतर्गत आते हैं।
वैदिक काल-
प्रोफेसर विंटरनिट्ज मानते है कि वैदिक साहित्य का रचनाकाल 2000-2500 ईसा पूर्व हुआ था। दरअसल वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई। विद्यवानों ने वेदों के रचनाकाल की शुरूआत 4500 ई.पू.से मानी है। अर्थात यह धीरे-धीरे रचे गए और अतंत: माना यह जाता है कि पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया-ऋग्वेद, यजुर्वेद, व सामवेद जिसे वेदत्रयी कहाजाता था। मान्यता अनुसार वेद का विभाजन भगवान राम के जन्म के पूर्व पुरूरवा ऋषि के समय में हुआ था। बाद में अथर्ववेद का संकलन ऋषि अथर्वा द्वारा किया गया।
दूसरी ओर कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान कृष्ण के समय द्वापर युग की समाप्ति के बाद महर्षि वेदव्यास ने वेद को चार प्रभागों में सम्पादित करके व्यवस्थित किया। इन चारों प्रभागों की शिक्षा चार शिष्यों पैल, बैशम्यायन, जैमिनी और सुमन्तु को दी। उस क्रम में ऋग्वेद- पैल, यजुर्वेद- वैशम्पायन, सामवेद-जैमिनी को तथा अथर्ववेद-सुमन्तु को सौंपा गया। इस मान से लिखित रूप से आज से 6508 वर्ष पूर्व पुराने हैं वेद। यह भी तथ्य नहीं नकारा जा सकता कि भगवान कृष्ण के आज से 5112 वर्ष पूर्व होने के तथ्य ढूंढ लिए गए है।
वेद के चार विभाग है- ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद औरअथर्ववेद । ऋग- स्थिति,यजु-रूपांतरण,साम-गतिशील और अथर्व-जड़। ऋग को धर्म,यजु को मोक्ष,साम को काम और अथर्व को अर्थ भी कहाजाता है। इन्हीं के आधार पर धर्मशास्त्र,अर्थशास्त्र,कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई।
श्रुतिस्मृतिपुराणानां विरोधो यत्र दृश्यते। तत्र श्रौतं प्रमाणसुन्तु तयोद्वैधे स्मृतिर्त्वरा। ।।
भावार्थ:- अर्थात जहां कही भी वेदों और दूसरे ग्रंथों में विरोध दिखता हो, वहां वेद की बात ही मान्य होगी। – महर्षि वेदव्यास
प्रकाश से अधिक गतिशील तत्व अभी खोजा नहीं गया है और न ही मन की गति को मापा गया है। ऋषि-मुनियों ने मन से भी अधिक गतिमान किंतु अविचल का साक्षत्कार किया और उसे ‘वेद वाक्य’ या ब्रह्म वाक्य’ बना दिया।