गरूड़ध्वज पर सवार होकर भगवान श्री कृष्ण स्वर्ग से आए थे धरती, पढ़ें इनके जीवन से जुड़े 6 रहस्य
भगवान श्रीकृष्ण की वजह से ही पांडव महाभारत युद्ध में कौरवों को हरा पाए थे। इस युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों का साथ दिया था और ये युद्ध पांडवों ने जीता था। भगवान श्रीकृष्ण की चालाकी के कारण कौरव विशाल सेना होने के बावजूद इस युद्ध में पराजय रहे। आज हम आपको भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई कुछ बाते बताने जा रहे हैं। जिनके बारे में शायद ही आपको जानकारी होगी।
कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण 64 कलाओं में दक्ष थे। ये एक सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने के साथ-साथ द्वंद्व युद्ध में भी माहिर थे। इनके पास कई अस्त्र और शस्त्र थे। जिनकी मदद से ये आसानी से किसी को भी हरा सकते थे। हालांकि इन्होंने कभी भी इनका प्रयोग नहीं किया।
श्रीकृष्ण ने ही कलारिपट्टू नामक युद्ध कला को ईजाद की थी। जिसे आज दुनिया में मार्शल आर्ट कहते हैं।
इनके धनुष का नाम ‘सारंग’ था। उनके खड्ग का नाम ‘नंदक’, गदा का नाम ‘कौमौदकी’ और शंख का नाम ‘पाञ्चजन्य’ था, जो गुलाबी रंग का था।
महाभरत युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण के पास 2 रथ हुआ करते थे। जो कि दिव्य रथ माने जाते थे। इनके पहले रथ का नाम गरूड़ध्वज था। जबकि दूसरे का नाम जैत्र था। श्रीमद्भागवत महापुराण इन रथों का उल्लेख मिलता है। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार गरूड़ध्वज के सारथी का नाम दारुक था और उनके अश्वों का नाम शैव्य, सुग्रीव, मेघपुष्प था।
गरूड़ध्वज रथ बहुत ही बड़ा था और काफी तेज गति से चलता था। कहा जाता है कि इस रथ पर कृष्ण जी ने रुक्मिणी का हरण किया था। आंधी के वेग के समान मंदिर के पास जैसे ही ये रथ रुका श्रीकृष्ण ने राजकुमारी रुक्मिणी को तुरंत ही रथ पर बैठा दिया और रथ के अश्व पूरे वेग से दौड़ चले।
ग्रंथों के अनुसार श्रीकृष्ण ये रथ स्वर्ग से लेकर आए थे। बिहार के राजगीर में आज भी वो जगहों मौजूद हैं। जहां पर कृष्ण के रथ के निशान है। इसे लेकर एक कहानी प्रचालित है कि श्री कृष्ण महाभारत काल के दौरान अपना रथ लेकर स्वर्ग से यहां उतरे थे। जिसकी वजह से इस जगह पर दूर-दूर से लोग आते हैं।