Spiritual

19 फरवरी को है अचला सप्तमी का व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त व व्रत कथा

हर साल माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अचला सप्तमी आती है। अचला सप्तमी के दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है व व्रत रखा जाता है। इस साल अचला सप्तमी का व्रत 19 फरवरी को आ रहा है। भविष्य पुराण के अनुसार अचला सप्तमी के दिन ही भगवान सूर्य का जन्म हुआ था और इस दिन जो लोग व्रत रखते हैं व भगवान सूर्य का पूजन करते हैं, उनपर सूर्य देव की कृपा बन जाती है।

अचला सप्तमी का शुभ मुहूर्त

अचला सप्तमी 19 फरवरी शुक्रवार के दिन है। रथ सप्तमी के दिन स्नान का मूहूर्त- सुबह 5.14 बजे से 6.56 बजे तक रहेगा। यानी 1 घंटा 42 मिनट की अवधि का होगा। अचला सप्तमी के दिन सूर्योदय सुबह 6.56 बजे पर हो जाएगा। सप्तमी तिथि प्रारंभ वैसे तो 18 फरवरी, गुरुवार सुबह 8.17 बजे से होगी। लेकिन सप्तमी तिथि समाप्ति 19 फरवरी, शुक्रवार सुबह 10.58 बजे को होगी।

भविष्य पुराण के अनुसार जो लोग किसी गंभीर रोग से ग्रस्त होते हैं। उन्हें अचला सप्तमी का व्रत जरूर रखना चाहिए और रथ पर सवार भगवान भास्कर यानी सूर्य देव का पूजन करना चाहिए। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, जिन जातकों की कुंडली में सूर्य नीच राशि का हो या शत्रु घर में विराजमान में हो। उन लोगों को इस दिन विशेष रूप से सूर्य देव का पूजन करना चाहिए। ऐसा करने से सूर्य देव आपके अनुकूल बन जाते हैं और आपको शुभ फल देते हैं।

दरअसल जिन लोगों की कुंडली में सूर्य की स्थिति सही नहीं होती है वो लोग बीमारियों से घिरे रहते हैं। उनकी सेहत बार-बार खराब हो जाती है। शिक्षा में बाधाओं का सामना करना पड़ता है और संतान प्राप्ति में भी रुकावट आती है। इसलिए ये बेहद ही जरूर है कि सूर्य देव आपके अनुकूल बनें रहें। अचला सप्तमी का व्रत रखने के साथ-साथ इस दिन नीचे बताई गई कथा को जरूर पढ़ें। ये कथा इस प्रकार है।

अचला सप्तमी व्रत कथा के अनुसार एक गणिका इन्दुमती ने वशिष्ठ मुनि के पास जाकर मुक्ति पाने का उपाय पूछा। मुनि ने उनसे कहा कि वो माघ मास की सप्तमी को अचला सप्तमी का व्रत करें। गणिका ने मुनि की बात को मानते हुए ये व्रत किया। इस व्रत के कारण उन्हें पुण्य मिला और जब उसने देह त्यागी, तब उसे इन्द्र ने अप्सराओं की नायिका बना दिया।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर बहुत अभिमान था। शाम्ब ने अपने इसी अभिमान के चलते दुर्वासा ऋषि का अपमान कर दिया था। जिसके कारण दुर्वासा ऋषि ने शाम्ब की कुष्ठ हो जाने का श्राप दे दिया। अपने पुत्र को इस श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें भगवान सूर्य नारायण की उपासना करने के लिए कहा। शाम्ब ने भगवान कृष्ण की बात को मानते हुए सूर्य भगवान की पूजा शुरू कर दी और अचला सप्तमी का व्रत रखा। जिसके फलस्वरूप सूर्य नारायण की कृपा उनपर बन गई और उन्होंने कुष्ठ रोग से मुक्ति पा ली।

इस तरह से करें पूजा

  • अचला सप्तमी की पूजा विधि बेहद ही सरल है। इस दिन आप सुबह नहाने के बाद सूर्य देव का पूजन करें। एक चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछा दें। उसपर सूर्य देव की मूर्ति रख दें। पास में ही एक तांबे का लौटा भी रखें जिसमें जल व चावल हो।
  • सूर्य देव की पूजा शुरू करते हुए सबसे पहले एक दीपक जला दें। फिर सूर्य देव को लाल रंग का फूल और फल अर्पित करें। पूजा करते हुए सूर्य देव के इन मंत्रों का जाप करें और अचला सप्तमी कथा को पढ़ें।

1.ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः।

2. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।

3. ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।

4. ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ।

5. ऊं घृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य:।

  • पूजा पूरी होने के बाद सूर्य देव की आरती गाएं। फिर तांबे के लौटे के जल से सूर्य देव को अर्घ्य दें और सूर्य देव से जुड़े हुए मंत्र का जाप कर दें। हो सके तो इसके बाद गरीब लोगों को लाल रंग की वस्तुओं का दान भी करें।

सूर्य देव की आरती –

श्री सूर्यदेव की आरती

ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

सारथी अरुण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी। तुम चार भुजाधारी।।
अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटि किरण पसारे। तुम हो देव महान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते। सब तब दर्शन पाते।।
फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा। करे सब तब गुणगान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते। गोधन तब घर आते।।
गोधूलि बेला में, हर घर हर आंगन में। हो तव महिमा गान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
देव-दनुज नर-नारी, ऋषि-मुनिवर भजते। आदित्य हृदय जपते।।
स्तोत्र ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी। दे नव जीवनदान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

तुम हो त्रिकाल रचयिता, तुम जग के आधार। महिमा तब अपरम्पार।।
प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते। बल, बुद्धि और ज्ञान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

भूचर जलचर खेचर, सबके हों प्राण तुम्हीं। सब जीवों के प्राण तुम्हीं।।
वेद-पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें माने। तुम ही सर्वशक्तिमान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
पूजन करतीं दिशाएं, पूजे दश दिक्पाल। तुम भुवनों के प्रतिपाल।।
ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी। शुभकारी अंशुमान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।

ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।स्वरूपा।।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।

Back to top button