जैसे को तैसा : कश्मीर में ‘पत्थरबाजी’ के जवाब में होगी जवानों की ‘गुलेलबाजी’!
नई दिल्ली – पत्थरबाजों ने देश की जन्नत को जहन्नुम बना रखा है। पत्थरबाजों पर सेना के पेलेट गन और आंशु गैस के गोलों का कोई असर नहीं पड़ रहा। सराकर भी इन पत्थरबाजों से निपटने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही। हालांकि, सरकार ने पेलेट गन और प्लास्टिक की गोलियों के इस्तेमाल का आदेश दिया है लेकिन इनका भी कोई असर नहीं पड़ रहा है। इन पत्थरबाजों को कंट्रोल में करने के लिए मोदी सरकार अगर ठोस कदम उठा भी ले तो मामला और गंभीर हो जाएगा। और इससे भारत की छवि भी खराब होगी। इसलिए सरकार भी संयम बरत रही है। Slingshot to fight stone pelters.
पत्थरबाजों से निपटने के लिए सेना तैयार करेगी ‘गुलेलबाजी’ –
सरकार की इसी दुविधा को देखते हुए मध्य प्रदेश के गुलेलबाजों ने कश्मीर के पत्थरबाजों को खुली चेतावनी दी है। गुलेलबाजी में महारथ रखने वाले यहां के आदिवासी समूह ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि वे कश्मीर के पत्थरबाजों के पत्थर का जवाब पत्थर से देने के लिए तैयार हैं।
दरअसल, मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के आदिवासियों की ओर से पीएम को एक पत्र मिला है जिसमें उन्होंने कश्मीर के पत्थरबाजों से निपटने के लिए उनके पारंपरिक हथियार गुलेल का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया है। आदिवासी समुदाय की ओर से मिले इस पत्र से जाहिर है कि वे कश्मीर की शांति को अशांत कर रहे पत्थरबाजों और सेना के जवानों के साथ हुए दुर्व्यवहार से आहत हैं।
गुलेलबाजी : आदिवासी समुदाय के सुझाव पर पीएमओ ने पूछे सवाल –
पीएमओ को जो पत्र मिला है उससे पहले भी झाबुआ के ही केंद्रीय विद्यालय में 10वीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्र राज राजेश्वर यादव ने 18 फरवरी 2017 को पीएमओ हाउस की वेबसाइट पर सुझाव भेजा था कि – सशस्त्र बलों द्वारा कश्मीर के पत्थरबाजों से निपटने के लिए पैलेट गन, प्लास्टिक की बुलेट आदि के इस्तेमाल के बजाय गोफन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
आदिवासी लोगों का गोफन इसके लिए सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है। यह एक पारंपरिक उपयोगी हथियार है जो रस्सी का बना होता है। सशस्त्र बलों द्वारा गोफन के इस्तेमाल से पत्थरबाजों पर आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है। पत्थबाजों को काबू में करने के लिए आदिवासियों के पारंपरिक हथियार गोफन के उपयोग के सुझाव पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने उनसे दो सवाल भी पूछे।
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