उत्तराखंड में आई आपदा के बाद चमोली जिले में बनीं नई झील, फुटबॉल ग्राउंड से 3 गुण ज्यादा है आकार
उत्तराखंड के चमोली जिले के ऋषिगंगा कैचमेंट एरिया में एक नई झील का पता चला है और इस झील को लेकर एक्सपर्ट लोगों ने चिंता जाहिर की है। एक्सपर्ट लोगों के अनुसार ये झील मौजूदा समय में बड़ा खतरा नहीं है। मगर मार्च के बाद ये झील बड़ी परेशानी की वजह बन सकती है और इससे आपदा आ सकती है। एक्सपर्ट ने इस झील को लेकर कहा है कि जितनी जल्दी हो सके, इसे हटा देना चाहिए।
एनडीआरएफ के जनरल डायरेक्टर एसएन प्रधान ने इस झील के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि इस झील में इस समय 70 करोड़ लीटर पानी जमा हुआ है। रैणी गांव के ऊपर ये झील पाई गई है। ये करीब 350 मीटर लंबी है। यानी एक फुटबॉल फील्ड के साइज से तीन गुना आकार इसका है। वहीं जो प्राकृतिक बांध का निर्माण हुआ है, वो 60 मीटर गहरा है और 10 डिग्री का ढलान है। एनडीआरएफ के जनरल डायरेक्टर एसएन प्रधान के अनुसार इतनी ऊंचाई में बनी ये झील खतरनाक हो सकता है।
एसएन प्रधान ने टाइम्स ऑफ इंडिया से इस झील के बारे में बता करते हुए कहा कि ‘झील का आकार हर दिन बढ़ता जा रहा है। हालांकि कुछ पानी बाहर भी जा रहा है। फिलहाल खतरा नहीं है। वहीं आईआईटी इंदौर के ग्लेशियोलॉजी ऐंड हाइड्रोलॉजी के असिस्टेंट प्रफेसर डॉ. मोहम्मद फारुक आजम ने कहा कि ऊपर से जो मटिरियल आया वो ऋषिगंगा में आया और उस जगह जमा हो गया, जहां पर यह नदी धौली गंगा में मिलती है। इसकी वजह से वहां धीरे-धीरे पानी जमा हो गया।
आशंका जताई जा रही है कि मार्च के बाद इस झील से खतरा हो सकता है। अभी सर्दियां हैं। ऐसे में पानी बहुत जल्दी भरने की संभावना नहीं है। पानी धीरे-धीरे भरेगा। लेकिन ऊपर से जो मलबा आया है, वो मजबूत नहीं है। ऐसे में जैसे ही पानी का प्रेशर पड़ेगा, वह टूट जाएगा। मार्च में गर्मी की वजह से बर्फ तेजी से पिघलेगी और उस झील में पानी बढ़ेगा। मार्च के बाद झील मलबे के साथ तेजी से नीचे आकर आपदा का रूप ले सकती है।
इस तरह से चला पता
देहरादून स्थित वाडिया हिमालयन भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के एक दल को ऋषिगंगा में आई बाढ़ के कारणों का पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इस दल ने ऋषिगंगा के कैचमेंट एरिया का हवाई सर्वेक्षण किया था। इस दौरान टीम को रोंगथी ग्लेशियर के पास एक झील नजर आई।
ऋषिगंगा के मुहाने पर बनी झील का पता लगाने के लिए वाडिया के अलावा टीएचडीसी, एनटीपीसी और आईआईआरएस संस्थान के लोग भी यहां गए थे। एसडीआरएफ की डीआईजी रिद्धिम अग्रवाल ने कहा कि तपोवन क्षेत्र के पास रैणी गांव के ऊपर पानी जमा होने की वास्तविकता का पता करने को कई हवाई सर्वे किए गए हैं। शुक्रवार को आठ सदस्यीय एसडीआरएफ टीम आकलन करने के लिए यहां गई थी। आकलन के बाद ही आगे की कार्रवाई की जाएगी। जियोलॉजिस्ट डॉ. एस पी सती के अनुसार हिमालयी क्षेत्रों में इस तरह की ग्लेशियर लेक बनना कोई नया नहीं है। साल 1998 में रुद्रप्रयाग जिले के राउंलेक में ङी ऐसी ही एक झील बनीं थी।