शनिदेव का लोहे का छल्ला पहनते हैं तो कभी न करें यह ग़लती वरना उठाना पड़ेगा भारी नुकसान
शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है और इनकी पूजा करने से शनि की ढैय्या, साढ़े साती, दशा, महादशा या अन्तर्दशा से रक्षा होती है। मान्यता है कि जीवन में ढैय्या, साढ़े साती, दशा, महादशा या अन्तर्दशा एक बार जरूर आती है। इनकी वजह से जातक के जीवन में परेशानियां आने लग जाती हैं और हर काम बिगड़ जाता है। शनि के कारण जातक का जीवन कष्टों से भर जाता है। इसलिए ये बेहद ही जरूरी है कि आप ढैय्या, साढ़े साती, दशा, महादशा या अन्तर्दशा शुरू होने पर इसे टालने के उपाय करें और शनिदेव की पूजा करें। शनिदेव की पूजा करने से व उपाय करने से ढैय्या, साढ़े साती, दशा, महादशा या अन्तर्दशा से आपकी रक्षा होती हैं।
जरूर धारण करने लोहे का छल्ला
ढैय्या, साढ़े साती, दशा, महादशा या अन्तर्दशा से बचने के लिए व इनको टालने के लिए लोहे का छल्ला धारण करने की सलाह दी जाती है। माना जाता है कि छल्ला धारण करने से ढैय्या, साढ़े साती, दशा, महादशा या अन्तर्दशा से रक्षा होती है और शनिदेव आपके अनुकूल ही फल देते हैं। हालांकि इस छल्ले को धारण करने की एक प्रक्रिया होती है और इस प्रक्रिया के तहत ही इसे धारण करने पर फल की प्राप्ति होती है। कई ऐसे लोग होते हैं जिन्हें लोहे का छल्ला कैसा धारण किया जाए इसके बारे में जानकारी नहीं होती है। जिसके कारण वो गलत तरह से इसे धारण कर लेते हैं और उन्हें छल्ला धारण करने का फल नहीं मिलता है।
छल्ला धारण करने की प्रक्रिया व नियम-
ढैय्या, साढ़े साती, दशा, महादशा या अन्तर्दशा का असर आपके जीवन पर न पड़े इसके लिए आप ये छल्ला धारण करें । शनि देव को लोहे की वस्तु प्रिय होती है। इसलिए लोहे का ही छल्ला धारण करना चाहिए।
ये छल्ला धारण करने से पहले आप पंडित को अपनी कुंडली जरूर दिखाएं और उनकी सलाह पर ही इसे धारण करें। कई लोग बिना पंडित की सलाह लिए छल्ला धारण कर लेते हैं जो कि गलत है। दरअसल अगर आप बिना कुंडली की जांच के छल्ला धारण करते हैं। तो अन्य ग्रहों की स्थिति के कारण आपको इसके विपरीत प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।
ये छल्ला धारण करने से पहले इसे पवित्र कर लें। पवित्र करने के लिए इसे पहले शनिदेव के चरणों में रख दें। फिर शनिदेव का पूजन करें। पूजन करने के बाद इसे धारण कर लें।
शनि का छल्ला केवल माध्यम उंगली में ही धारण किया जाता है। इसलिए आप इस छल्ले को हमेशा दाहिने हाथ की माध्यम उंगली में धारण करें। मान्यता है कि इस उंगली में छल्ला धारण करने से ही फल की प्राप्ति होती है। क्योंकि मध्यमा उंगुली के नीचे शनि पर्वत स्थित होता है।
लोहे का छल्ला केवल सही दिन व नक्षत्र में ही धारण करना चाहिए। लोहे का छल्ला धारण करने के लिए शनिवार को शाम का समय उत्तम रहता है। पुष्य, अनुराधा, उत्तरा, भाद्रपद एवं रोहिणी नक्षत्र में लोहे का छल्ला धारण करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसलिए इस नक्षत्र व दिन को ही ये छल्ला धारण करें।
छल्ले को धारण करने के बाद इसकी सफाई का भी खासा ध्यान रखे। समय-समय पर इसे साफ करते रहें। गंदे छल्ले को धारण करने से ये आपके लिए नुकसान जनक हो सकता है। एक बार छल्ला धारण करने के बाद इसे न निकालें। दरअसल कई लोग छल्ला धारण करने के बाद इसे निकालते रहते हैं। जो कि गलत माना जाता है। छल्ला बार-बार निकालने से इसका असर खत्म हो जाता है और इसे धारण करने का कोई भी फल नहीं मिलता है।
जिन लोगों की कुंडली में शनि शुभ फल प्रदान कर रहे हो उन्हें लोहे का छल्ला धारण नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से शनि ग्रह आपके अनुकूल नहीं रहते हैं। इसलिए केवल वही लोग लोहे का छल्ला धारण करनें जिनकी कुंडली में शनि ग्रह भारी हो।
तो ये थे लोहे के छल्ले को धारण करने से जुड़े कुछ नियम। कोशिश करें की आप इन नियमों के तहत ही इस छल्ले को धारण करें।