क्यों मध्यप्रदेश की भील और भिलाल जनजातियां क्यों करती हैं द्रोणाचार्य और अर्जुन से नफ़रत जानिए
हिन्दुओ की सबसे प्रसिद्ध गाथा ‘महाभारत’ में द्रोणाचार्य और अर्जुन (गुरु-शिष्य) की जोड़ी का वर्णन है जिनहे सबसे प्रमुख पात्रों में से माना जाता है. यही कारण है कि भारतीयों के दिल में दोनों के लिए खास स्थान है, लेकिन भील और भिलाल जनजातियों के दिल में इन दोनों का कोई सम्मान नहीं. ये दोनों जनजातियां एकलव्य को पूजती हैं. एकलव्य ऐसा शिष्य था, जिसने गुरु द्रोणाचार्य के मांगने पर अपने दाएं हाथ का अगूंठा गुरुदक्षिणा के तौर पर दे दिया. जबकि उन्होंने कभी उसे अपने शिष्य के तौर पर स्वीकार नहीं किया था.
Hindustan Times में प्रकाशित एक ख़बर के अनुसार, मध्य प्रदेश के जनजाति बहुल अलीराजपुर जिले में रहने वाली भील और भिलाल जनजातियों में एकलव्य के प्रति इतना सम्मान है कि वो धनुष चलाते वक़्त अपने अंगूठों का इस्तेमाल नहीं करते. उनका मानना है कि एकलव्य उन्हीं के कबीले से ताल्लुक रखते थे. इस तरह से धनुष चलाना न केवल एकलव्य के प्रति सम्मान है, बल्कि द्रोणाचार्य और अर्जुन के प्रति इनका सांकेतिक विरोध भी है. आपको बता दें कि अलीराजपुर में ही मशहूर क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का भी जन्म हुआ था.
अलीराजपुर विकास प्रखंड के भिलाल जनजाति के प्रमुख महेश पटेल बताते हैं, ‘धनुष चलाने के लिए अंगूठा, छोटी अंगुली और बीच की अंगुली की ज़रूरत अनिवार्य रूप से पड़ती है, लेकिन भील और भिलाल जनजातियों के लोग पैदा होने से लेकर मरते दम तक दोनों हाथों के अंगूठे का इस्तेमाल नहीं करते’. उन्होंने आगे कहा कि ‘यह परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है. जैसे ही हम लोग तीर और धनुष पकड़ते हैं, वैसे ही हम अपने अंगूठों का इस्तेमाल बंद कर देते हैं.’
भिलाल समुदाय के एक अन्य नेता निहाल पटेल ने बताया, ‘हम एकलव्य का सम्मान करते हैं और द्रोणाचार्य और अर्जुन से नफ़रत. यही कारण है कि हमारे समुदाय में ‘धनुष चलाते वक़्त अंगूठा न इस्तेमाल’ करने की परंपरा है. हमें ऐसा करते हुए कभी भी धनुष चलाने में कोई मुश्किल नहीं हुई और हम अपनी इस परंपरा को तोड़ने के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं’
अलीराजपुर मुख्य रूप से आदिवास बहुल इलाका है. 2011 की जनगणना के अनुसार यहां 91प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है. भिलाल और भीला आबादी यहां का लगभग 95 प्रतिशत है.
भिलाल और भील समुदायों के लिए धनुष का साथ जीवन भर बना रहता है. महेश बताते हैं कि हर भिलाल में पैदा होने के समय से ही धनुष चलाने की कला होती है. वे इसी के द्वारा जंगलों में अपने पालतू पशुओं की जंगली जानवरों से रक्षा करते हैं. मरने के बाद उनके तीर-धनुष को उनके साथ ही जला दिया जाता है.