भगवान शिव ने इस वजह से नंदी बैल को बनाया था अपना वाहक, नंदी ने की थी हजारों वर्ष तक तपस्या
नंदी बैल भगवान शिव के वाहन हैं व द्वारपाल हैं। जो भी भगवान शिव से मिलने के लिए कैलाश पर्वत आता है, उसे नंदी जी से अनुमति लेनी पड़ती है। भगवान शिव ने क्यों नंदी बैल को अपनी सवारी चुना? इससे एक कथा जुड़ी हुई है। जिसका जिक्र स्कन्दपुराण में मिलता है। स्कन्दपुराण के अनुसार एक बार भगवान धर्म की इच्छा हुई कि मैं भगवान शंकर का वाहन बनूं। इसके लिए उन्होंने दीर्घकाल तक तपस्या की। अंत में भगवान शंकर ने उनकी तपस्या को स्वीकार कर लिया और उन्हें अपने वाहन के रूप में स्वीकार किया। इस प्रकार भगवान धर्म ही नन्दी वृषभ के रूप में सदा के लिए भगवान शिव के वाहन बन गए।
कथा के अनुसार शिलाद नामक एक ऋषि हुआ करते थे। जो भगवान की तपस्या में ही लीन रहते थे। ऐसे में इन ऋषि के परिवार वालों को डर था कि कहीं इनका वंश खत्म न हो जाए। परिवार वालों के इस डर को खत्म करने के लिए ऋषि ने इंद्र देव की पूजा की और उनसे पुत्र की प्राप्ति की बात ही। इंद्र देव ने ऋषि को शिव भगवान की तपस्या करने को कहा। शिलाद ऋषि ने भगवान शिव की तपस्या की और एक दिन शिव भगवान ने इनकी तपस्या को स्वीकार कर लिया और इन्हें पुत्र प्राप्ति की वरदान दिया।
शिलाद ऋषि खेत में काम कर रहे थे। तब उन्हें एक पुत्र मिला। जिसे वो अपने घर ले आए और उसे अपना बेटा बना लिया। इस पुत्र को इन्होंने नंदी नाम दिया । शिलाद ऋषि आश्रम में अपने पुत्र नंदी के साथ रहते थे। एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नामक दो संत आए थे। जिनकी सेवा का काम शिलाद ऋषि ने अपने पुत्र नंदी को सौंपा। नंदी ने पूरी श्रद्धा से दोनों संतों की सेवा की। संत ने सेवा से खुश होकर शिलाद ऋषि को दीर्घायु होने का आर्शीवाद दिया पर नंदी को नहीं। इस बात से शिलाद ऋषि को दुख हुआ और वो परेशान हो गए। वो सोचने लगे की क्यों संतों ने उनके बेटे को दीर्घायु होने का आर्शीवाद नहीं दिया। हिम्मत करते हुए शिलाद ऋषि ने संतों से ये सवाल कर दिया। जिसपर संतों ने कहा कि नंदी अल्पायु है। ये सुनकर मानों शिलाद ऋषि हैरान हो गए और चिंता में रहने लगे।
अपने पिता को चिंता में देख नंदी ने उनसे इसकी वजह पूछी। शिलाद ऋषि ने बताया कि संतों ने कहा है कि तुम अल्पायु हो। इसीलिए मेरा मन बहुत चिंतित है। नंदी ने जब पिता की परेशानी का कारण सुना तो हंसे और अपने पिता से कहने लगे भगवान शिव ने मुझे आपको दिया है। मेरी रक्षा करना उनकी जिम्मेदारी है। आप परेशान न हों। इसके बाद भुवन नदी के किनारे नंदी जी ने भगवान शिव की तपस्या करनी शुरू कर दी। नंदी को भगवान शिव ने दर्शन दिए और उनसे वरदान पूछा। नंदी ने कहा, मैं ताउम्र सिर्फ आपके सानिध्य में ही रहना चाहता हूं। नंदी को ये वरदान शिव जी ने दे दिया और उन्हें, बैल का चेहरा दिया और उन्हें अपना वाहन बना लिया।
इसके बाद से ही शिवजी के मंदिर के बाहर नंदी के बैल रूप को स्थापित किया जाने लगा। मान्यता है कि अगर नंदी जी के कान में कोई बात बोली जाए। तो उसे शिव भगवान पूरा कर देते हैं। स्कन्दपुराण के अनुसार गणपति के वाहन मूषक है। कार्तिकेय व पत्नी देवसेना का वाहन मयूर है। भगवती पार्वती का वाहन सिंह है और स्वयं भगवान शंकर के वाहक नंदी हैं।