क्या सच में गंगा नदी में नहाने से स्वर्ग नसीब होता है? स्वयं शिवजी से जाने इसकी सच्चाई
कहते हैं कि गंगा स्नान करने से सभी पाप धूल जाते हैं। इसमें स्नान करने वाले को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या सच में ऐसा होता है? इस बात का खुलासा स्वयं भगवान भोलेनाथ ने किया था। उन्होंने माँ पार्वती को बताया था कि किस तरह के लोगों को गंगा स्नान के बाद स्वर्ग नसीब होता है।
सोमवती स्नान का त्योहार था। गंगा नदी के किनारें लाखों श्रद्धालु स्नान को आए थे। इस दौरान शिव पार्वती टहलने निकले थे। तभी गंगा तट पर खड़ी भीड़ को देख माँ पार्वती ने शिवजी से इसके बारे में पूछा। तव शिवजी ने बताया कि ये सभी लोग आज सोमवती पर्व पर गंगा स्नान करने आए हैं। यहां स्नान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
इस पर पार्तवीजी के मन में सवाल उमड़ा कि यदि गंगा में स्नान करने वाले ये सब लोग स्वर्ग चले जाएंगे तो स्वर्ग का क्या होगा? क्या वहां इतनी जगह रहती है? और पिछले लाखों वर्षों से जिन लोगों ने गंगा स्नान किया वे स्वर्ग में क्यों नहीं है? इस पर भोलेनाथ ने कहा कि सिर्फ शरीर गीला कर धो लेना ही काफी नहीं होता है, मन की मलिनता धोने की भी जरूरत होती है। तब पार्वतीजी ने पूछा कि ये कैसे पता चलेगा कि किस व्यक्ति ने सिर्फ शरीर धोया और किसने अपना मन पवित्र कर लिया?
पार्वतीजी के इस सवाल का जवाब देते हुए शिवजी ने कहा कि मैं तुम्हें यह बात एक उदाहरण से समझाता हूं। मैं एक कुरूप कोढ़ी का रूप ले रहा हूं और तुम एक सुंदर कन्या बन जाओ। फिर हम दोनों गंगा स्नान के लिए जाने वाले मार्ग पर बैठ जाएंगे। कोई कुछ पूछे तो मेरी बताई कहानी सुना देना। पार्वतीजी ने ऐसा ही किया।
अब शिवजी कुरूप कोढ़ी बन लेट गए और पार्वती सुंदर स्त्री बन उनके बगल में बैठ गई। गंगा स्नान के लिए जाने वाले सभी लोग उन्हें घूर घूर के देखने लगे। इस अजीब जोड़ी पर किसी को यकीन नहीं हुआ। सभी ने यही सोचा कि एक सुंदर कन्या इस कुरूप कोढ़ी के पास क्या कर रही है। कइयों ने तो माँ पार्वती को अपने कुरूप पति को छोड़ अपने साथ चलने के लिए भी कहा। इस पर माँ पार्वती को गुस्सा भी आया लेकिन शिवजी को दिए वचन के तहत वे शांत रही।
जब भी कोई पार्वतीजी से पूरा माजरा पूछता तो वह शिवजी के बताए शब्द दोहरा देती। ‘ये कोढ़ी मेरा पति है। इसकी गंगा में स्नान करने की इच्छा है। इसलिए इसे मैं अपने कंधे पर लादकर लाई हूं।’ यह कहानी सुन गंगा स्नान की ओर जाने वाले अधिकतर लोगों ने पार्वतीजी की मदद करने की बजाय उन्हें पति को छोड़ देने की बात कही। वहीं बहुत सो ने उन्हें नजरअंदाज कर अपने काम से काम रखा।
फिर एक सज्जन आया और वह यह कहानी सुन रो पड़ा। उसने माँ पार्वती को प्रणाम किया और बोला कि आप जैसी स्त्री धन्य है जो पति की ऐसी हालत में भी पत्नी का धर्म निभा रही है और उनकी इच्छापूर्ति के लिए उन्हें गंगा स्नान करने ले जा रही हैं। उस सज्जन पुरुष ने पार्वतीजी को मदद करने का प्रस्ताव भी रखा। उसने खुद कुरूप रूप धारण किए शिवजी को कंधे पर उठा लिया और गंगा तट तक छोड़ने की इच्छा जताई। इतना ही नहीं उसने अपने पास रखा सत्तू भी दोनों को खिलाया।
इस तरह माँ पार्वती के मन का कोतूहल शांत हुआ। उन्हें समझ आ गया कि गंगा में स्नान करने वैसे तो कई लोग आते हैं लेकिन मन की शुद्धि कर सिर्फ कुछ ही लौटते हैं। शिवजी ने भी कहा कि गंगा स्नान का महत्व तभी है जब आप मन की शुद्धि भी कर लें। बस ऐसे लोगों को ही गंगा स्नान बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है।