सकारात्मक विचार और आत्मविश्वास आपके अन्दर है तो मंदिर जाने की भी जरूरत नहीं है आपको!
एक बार की बात है एक बहुत दुखी आदमी हर रोज मंदिर दर्शन करने जाता, लेकिन मंदिर की सीढ़ियों से ही वापस लौट आता था। घर से मंदिर आते समय वह बहुत उदास हुआ करता था, लेकिन वापस जाते समय वह जोश और उत्साह से भरा होता था। यह देखकर एक दिन पुजारी पुछ ही बैठा कि आप हर रोज भगवान के दर्शन करने आते हैं, लेकिन बिना दर्शन किये ही लौट जाते हैं और जाते समय काफी खुश भी होते हैं।
पुजारी की बात सुनकर व्यक्ति ने कहा कि, “अभी मैं काफी मुश्किल दौर से गुजर रहा हूं, लेकिन जिस दिन सफल हो जाऊंगा, उस दिन भगवान को धन्यवाद बोलने जरूर अन्दर जाऊंगा। व्यक्ति का यह जवाब किसी को भी हैरानी में डाल सकता है। व्यक्ति के इस जवाब में उसका आत्मविश्वास झलकता है। उसे लगता है कि किसी से भी कुछ मांगने वाला हमेशा कमजोर होता है, भले ही वह ईश्वर से ही कुछ क्यों ना मांगना हो।
मुश्किलें हारती हैं हमेशा:
हम तभी मांगते हैं, जब हम बिल्कुल असहाय होते हैं। अगर कोई व्यक्ति मुश्किल में नहीं पड़ता है तो वह आगे का रास्ता भी नहीं खोज पाता है। रॉबर्ट एच. शूलर ने लिखा है, “मुश्किलें हमेशा ही हारती हैं, जो संघर्ष करते हैं, अंत में वही जीतते हैं।” यही संघर्ष है जो व्यक्ति को कुछ भी करने के लिए तैयार करता है।
प्रयास करना होता है जरूरी:
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कोई कितनी बार असफल होता है, यह बात मायने रखती है कि वह हारने के बाद भी प्रयास करना नहीं छोड़ता है। मगर ज्यादातर लोगों को देखा गया है कि अस्थायी असफलता से इतना ज्यादा निराश हो जाते हैं कि आगे के बारे में सोचते ही नहीं हैं।
700 गुना बेहतर समझ है दूसरों से:
एक बार की बात है थॉमस एल्वा एडिसन के दोस्त ने उनसे कहा कि 700 बार एक ही प्रयोग को करने पर भी असफलता ही मिली है। यह सुनकर थॉमस ने कहा कि, यह गलत है। तुम उस विषय के बारे में बाकी लोगों की अपेक्षा 700 गुना ज्यादा बेहतर से जानते हो।
सकारात्मक सोच वाले नहीं होते कभी असफल:
अगर ऐसी ही सकारत्मक सोच और विश्वास किसी भी व्यक्ति के अन्दर हो तो वह जीवन में कुछ भी कर सकता है। आपको अपने मन से सिर्फ असफल होने के डर को निकालना है। यह असफल होने का डर ही आपको कुछ भी करने से रोकता है। मनोवैज्ञानिक तौर पर आपको असुरक्षित कर देता है। इस वजह से आप आगे का रास्ता नहीं ढूंढ पाते हैं।