चाणक्य नीति, विदुर नीति और गीता में छिपा है सफल और अमिर बनने का राज, जाने क्या करना होगा
जीवन में सफलता का स्वाद चखने के लिए चखने के लिए ज्ञान का भंडार होना आवश्यक होता है। जिस व्यक्ति में भरपूर ज्ञान होता है उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है। बीते जमाने के फेमस विद्वान आचार्य चाणक्य ने भी अपनी चाणक्य नीति में लोगों को ज्ञान के प्रति गंभीर रहने की सलाह दी है।
ज्ञान से आकर्षित होती है मां सरस्वती
चाणक्य नीति के अनुसार जो व्यक्ति ज्ञान हासिल करने के लिए हमेशा रेडी रहता है उसे ज्ञान की देवी सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है। जब आप ज्ञान की देवी मां सरस्वती को प्रसन्न कर देते हैं तो धन की देवी लक्ष्मीजी भी अपने आप खुश हो जाती है। आसान शब्दों में कहे तो धन और ज्ञान दोनों आपस में जुड़े हुए होते हैं। जिसके पास ज्ञान का भंडार होता है उसके घर धन का भी भंडार होता है। ऐसे लोग समाज के हित में कार्य कर दूसरों का मान सम्मान हासिल करते हैं।
ज्ञान करता है दुखों का खात्मा
सिर्फ चाणक्य नीति ही नहीं बल्कि विदुर नीति में भी ज्ञान की महत्ता पर जोर दिया गया है। महाभारत के प्रभावशाली पात्र विदुर भगवान श्रीकृष्ण के भी प्रिय थे। उन्होंने अपनी नीति में बताया है कि जिस व्यक्ति के पास ज्ञान होता है उसके पास दुख अधिक समय तक नहीं टिकता है। वह अपने ज्ञान से दुखों का खात्मा कर देता है। यही ज्ञान वाली बात गीता के उपदेशों में भी बताई गई है। इसका जिक्र भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन से किया था।
ज्ञान का दिखावा है हानिकारक
कई विद्वानों का मानना है कि जो व्यक्ति अपने ज्ञान का दिखावा (शो-ऑफ) करता है उसका अंत अच्छा नहीं होता है। ज्ञान का इस्तेमाल अपने अहंकार या झूठी शान के लिए करना उचित नहीं होता है। ऐसा करने वाले जीवन में कभी सफल नहीं होते हैं। ज्ञान आते ही कुछ लोगों में ऐसा तेज उत्पन्न हो जाता है कि वे दूसरों को अपने ज्ञान से आकर्षित किए बिना नहीं रह पाते हैं। ऐसे लोगों की समाज में इज्जत नहीं होती है।
ज्ञान बांटने से बढ़ता है
‘ज्ञान बांटने से बढ़ता है’ यह कहावत आप ने भी कई बार सुनी होगी। इसमें शत प्रतिसत सच्चाई भी है। यदि आप अपने ज्ञान को छिपाकर रखेंगे या इसका इस्तेमाल सिर्फ दिखावे के लिए करेंगे तो इसकी सीमा और दायरा कम होता जाएगा। एक तरह से आप समय के साथ आधा अधूरा या अपूर्ण ज्ञान वाले व्यक्ति बन जाएंगे। ऐसे व्यक्ति के पास मां सरस्वती आना पसंद नहीं करती है। वहीं कुछ समय के बाद लक्ष्मीजी भी इनसे दूरी बना लेती हैं।