राम मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकारेगा मुस्लिम पर्सनल बोर्ड, मगर शरीअत में हस्तक्षेप बर्दास्त नहीं है!
एक तरफ जहां भुवनेशवर में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक सम्पन्न हुयी तो वहीं दूसरी तरफ लखनऊ में आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दो दिवसीय बैठक का आज आखिरी दिन था. दोनों ही बैठकों में मुस्लिम महिलाओं के अधिकार और तीन तलाक जैसे मुद्दे अहम रहे. एक तरफ पीएम मोदी ने मुस्लिम महिलाओं को सामाजिक न्याय दिलाने की अपनी प्रतिबद्धता जताई तो वहीं दूसरी तरफ आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भी मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए लचीला होता नजर आया.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करेंगे :
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने तीन तलाक जैसे अधिकारों का गलत उपयोग करने वालों के सामाजिक बहिष्कार की अपील की लेकिन शरियत कानून में बदलाव या समीक्षा के मुद्दे पर उसका रुख कड़ा रहा. वहीं राम मंदिर के मुद्दे पर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करेंगे. कोर्ट का फैसला उन्हें स्वीकार्य होगा.
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड की इस मीटिंग की अध्यक्षता मौलाना मुहम्मद राबे हसनी नदवी ने की, साथ ही बाबरी एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी, मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, मौलाना कल्बे सादिक, मौलाना वली रहमानी और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी इस मीटिंग का हिस्सा बने. मीटिंग में शरई कानूनों पर सरकारी या कोर्ट के दखल पर बोर्ड का रुख तय किया गया.
बोर्ड ने मुस्लिम महिलाओं को संपत्ति में हिस्सेदारी दिलाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई और तीन तलाक का दुरूपयोग करने वालों के खिलाफ सामाजिक बहिष्कार की नीति पर बल दिया. राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे पर बोर्ड का रुख है कि लम्बे अरसे से बातचीत और कोर्ट के बाहर विवाद को सुलझाने का पप्रयास किया जा रहा है लेकिन यह संभव नहीं हो पाया है ऐसे में सुप्रीम कोर्ट जो निर्णय करेगा बोर्ड उसे स्वीकार करेगा.
वहीं दूसरी तरफ शरई कानूनों की समीक्षा और उनमें जरूरत के अनुरूप बदलाव के मुद्दे पर बोर्ड के रुख कड़ा रहा, इस मामले में बोर्ड ने कोई लचीलापन नहीं दिखाया. बोर्ड का कहना है कि देश भर में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मसले पर इस तरह से चर्चा हो रही है जैसे उनके महत्व पर सवाल उठाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि ज्यादातर मुसलमान मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में कोई बदलाव नहीं चाहते हैं. मुस्लिम लोग दहेज़ के बदले संपत्ति में हिस्सा दें तलाकशुदा महिला की मदद की जाये. लेकिन बोर्ड तीन तलाक पर पाबन्दी के खिलाफ है.
उन्होंने कहा कि भारत का संविधान सभी को अपने धार्मिक मामलों में अमल करने की आजादी डेटा है ऐसे में ज्यादातर मुसलमान शरई कानूनों में हस्तक्षेप के खिलाफ हैं, हाल ही में जिस तरह से शरई कानूनों को नहीं जानने वाले उसपर सवाल उठा रहे हैं ऐसे में बोर्ड की जिम्मेदारी बढ़ गयी हैं. उन्होंने कहा कि शरई मामलों में सरकार का हस्तक्षेप बिल्कुल भी बर्दास्त नहीं किया जायेगा.