Trending

इस कथा से प्राप्त होगा आपको असीमित सुख-शांति का अनुभव, बचे रहेंगे अनेक परेशनियों से!

प्राचीन काल में कहीं एक बहुत बड़े संत हुआ करते थे। उनके पास आश्रम तो था लेकिन वह छोटा था। उन्हें एक भव्य आश्रम बनाने की इच्छा हुई, लेकिन उनके पास धन की कमी थी। वह अपने शिष्यों के साथ धन जुटाने के काम में लग गए। वह हर जगह घूम-घूम कर लोगों से आश्रम बनाने के लिए सहयोग की माँग करने लगे। एक दिन वह घूमते-घूमते सूफी संत राबिया की कुटिया पर पहुँचे।

गहरी नींद में सो गयी राबिया:

राबिया ने उनका अच्छे से स्वागत किया और उनके लिया खाने की व्यवस्था की। खाने के बाद संत को आराम करने के लिए राबिया ने एक तख़्त पर दरी बिछाकर एक तकिया रख दी। राबिया ने खुद के लिए जमीन पर एक टाट बिछायी और उसपर सो गयी। कुछ ही समय में राबिया गहरी नींद में सो गयी जबकि संत को नींद ही नहीं आ रही थी।

उन्हें दरी पर सोने की आदत नहीं थी। वह अपने आश्रम में मोटे गद्दे पर सोया करते थे। राबिया को जमीन पर टाट बिछाकर सोता देख संत सोचने लगे कि यह जमीन पर टाट बिछाकर ही चैन की नींद सो रही है, जबकि मुझे तख़्त पर दरी बिछाकर सोने पर भी नींद नहीं आ रही है। यह बात संत को काफी समय तक परेशान करती रही।

कैसे सो लेती हो चैन की नींद?

सुबह जल्दी उठकर राबिया ने अपनी कुटिया की सफाई की और वहाँ आने वाली सभी चिड़ियों को दाना खिलाया। संत ने राबिया को देखते ही उससे सवाल किया, राबिया तुमने मेरे लिए तख़्त पर दरी बिछायी फिर भी मुझे नींद नहीं आयी, जबकि तुम टाट पर ही चैन की नींद सोती हो। इसकी क्या वजह है?

संत की यह बातें सुनकर राबिया ने सहजता से उत्तर दिया। “हे गुरुदेव जब भी मैं सोती हूँ तो मुझे यह पता नही होता है कि मेरे पीठ के नीचे गद्दा है या टाट। उस समय मैं दिन-भर किये गए सत्कर्मों के बारे में सोचती हूँ। इससे मुझे बहुत आनंद मिलता है और मैं चैन से सुख दुःख भूलकर परम पिता की गोद में सो जाती हूँ। इसलिए मुझे अच्छी नींद आ जाती है।“

संत भी रहने लगे छोटी कुटिया में:

राबिया की बात सुनकर संत बोले, “ में अपने सुख के लिए धन एकत्र करने निकला था। यहाँ आने के बाद मुझे यह पता चला कि संसार का सुख बड़े और भव्य आश्रम में नहीं बल्कि इस छोटी कुटिया में है।“ इसके बाद संत ने एकत्र किया हुआ सारा धन गरीबों में बाँट दिया और सुखी से एक छोटी कुटिया बनाकर रहने लगे।

Back to top button