अध्यात्म

अन्न का मन से है सीधा सम्बन्ध इसलिए खाना खाते और बनाते समय ध्यान रखें यह बात!

शास्त्रों में बताया गया है कि हम जैसा खाना खाते हैं हमारा मन वैसा ही बनता है. इसलिए सात्विक भोजन करने पर बल दिया गया है. कहा जाता है कि सात्विक भोजन करने से मनुष्य का मन सात्विक बना रहता है. मन सात्विक बना रहेगा तो मन में शांति बनी रहेगी और काम-काज में मन लगेगा. साथ ही सकारात्मक उर्जा का प्रवाह होगा और हम जो भी करेंगे उसमें तरक्की मिलेगी.

सात्विक भोजन करने के लिए सबसे जरूरी है कि भोजन बनाने वाले व्यक्ति का मन सात्विक हो. इसलिए कभी भी भोजन बनाने वाले को नाराज या दुखी होकर भोजन नहीं बनाना चाहिए. अगर वह नाराज होकर खाना बनाएगा तो उसके साथ वैसी ही तरंगे काम करेंगी और उसके हाथों से तैयार खाना खाकर खाने वाले व्यक्ति पर वैसा ही प्रभाव पड़ेगा, उसे भी गुस्सा आएगा.

इसलिए हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम जो खा रहे हैं वह सात्विक हो और सात्विक माहौल में ही उसे बनाया गया हो. एक हिसाब से देखें तो कोई भी इंसान तीन तरह से अपनी क्षुधातृप्ति करता है.

*_ होटल, रेस्टोरेंट या बाजार में बना खाना खरीद कर

*_घर का बना खाना

*_मंदिर, गुरूद्वारे या भंडारे में

इन तीनों ही तरह का खाना खाने वाले लोगों की वृत्तियां भी वैसी ही हो जाती हैं जैसी इन्हें बनाने वालों की होती हैं. आइये आगे जानते हैं कि इन तीनों तरह के भोजन में कैसा अंतर है.-

 होटल, रेस्टोरेंट या बाजार में बना खाना-

होटल, रेस्टोरेंट या बाजार का खाना पैसा कमाने के उद्देश्य से बनाया जाता है. इसे बनाने वाले का पहला उद्देश्य भोजन के बदले पैसा कमाना होता है. इसलिए अक्सर बाहर रहकर ऐसा खाना खाने वाले लोगों की वृत्तियां पैसा कमाने की होती हैं वह ज्यादातर समय यही सोचते हैं कि किस तरह से और ज्यादा पैसा या मुनाफा कमाया जाये. घर से दूर रहकर नौकरी करने वाले लोगों में यह भावना सबसे ज्यादा भोजन की वजह से आती है.

घर का बना खाना-

घर में बना खाना भी दो तरह का होता है, एक तो मां, बहन या पत्नी के हाथ का बना खाना और दूसरा किसी काम पर रखी गई बाई या कुक के हाथों से बना खाना. इसमें गौर करने वाली बात यह है कि आप जब घर के सदस्य के हाथ से बना खाना खाते हैं तो आपको खाना खाने के बाद संतुष्टि मिलती है और आप खुश रहते हैं, अक्सर आपने देखा होगा कि ऐसे लोग जो घर का बना खाना खाते हैं वह हमेशा अपने जीवन से संतुष्ट होते हैं. दरअसल वो जिन हाथों से बना खाना खा रहे हैं उनका उद्देश खाना खिलाकर संतुष्ट करना होता है और वो खाना अपनी संतुष्टि से बनाती हैं.

वहीँ दूसरी तरफ घर में कुक या रसोइया के हाथ से बना खाना इस कदर संतुष्टिप्रद नहीं होता है, उसके भोजन से पेट तो भर जाता है लेकिन संतुष्टि नहीं मिलती. उसका उद्देश्य भी पैसा कमाना होता है साथ ही उसकी वृत्ति जल्द से जल्द खाना बनाकर आपको खिलाकर अपना काम निपटाना होता है, अक्सर रसोइये से एक्स्ट्रा खाना मांगो तो वह नाक भौंह सिकोड़ता है.

मंदिर, गुरूद्वारे या भंडारे में-

तीसरा भोजन का प्रकार मंदिर गुरूद्वारे या भंडारे का भोजन होता है. आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि प्रसाद हमेशा मन को शांति और संतुष्टि देता है. जो लोग मंदिर, गुरूद्वारे या भंडारे में प्रसाद तैयार करते हैं वो सेवा के भाव से काम करते हैं इसलिए उनका मन शांत होता है और वो संतुष्ट होकर पूरी श्रद्धा के साथ प्रसाद तैयार करते हैं इसलिए भंडारे में खाया गया भोजन हमें हमेशा शांति देता है.

इसलिए खाना बनाते वक्त मानसिक रूप से सात्विक रहना चाहिए इससे बनाने वाले का मन भी शांत रहता है और खाने वाले का मन भी शांत रहता है. हम जैसा खाते हैं उसका हमारे मन और जीवन पर बहुत असर पड़ता है. इसलिए सात्विक रहने से सात्विक खाने से सात्विक तरंगों को प्रवाह होता है और हमारे जीवन में शांति बनी रहती है.

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