अध्यात्म

मकर संक्रांति को क्यों कहते हैं तिल संक्रांति? जानिए इसका इतिहास

सनातन धर्म में मकर संक्रांति का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है। दरअसल जिस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि मकर में प्रवेश करते है, उस दिन को मकर संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति का पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसे में इस बार यह पर्व 14 जनवरी को है और इस दिन जप, तप, दान और स्नान का विशेष महत्व होता है।

इस बार जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेंगे तो पांच ग्रहों का संयोग बनेगा। जिसमें सूर्य, बुध, गुरू, चंद्रमा और शनि भी शामिल रहेंगे। बहरहाल, इस बार मकर संक्रांति में कई विशेष संयोग बन रहे हैं जिससे इस बार पर्व और भी ज्यादा शुभ माना जा रहा है।

इस बार शनि अपनी ही राशि मकर में हैं, इस वजह से 2021 में मकर संक्रांति का पर्व काफी महत्वपूर्ण और विशेष हो गया है। शास्त्रों की मानें तो इस दिन सूर्य का उत्तरायण हो जाता है और तापमान में धीरे धीरे वृद्धि होने लगती है। बहरहाल, मकर संक्रांति के दिन दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।

ज्योतिषियों के हिसाब से मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य धनु राशि से निकलकर अपने पुत्र शनि के राशि मकर में प्रवेश करते हैं। ज्योतिष शास्त्र की मानें तो सूर्य इस दिन खुद अपने पुत्र शनि से मिलने जाते हैं और इसी वजह से इस दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है। आइये जानते हैं, मकर संक्रांति से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानियों के बारे में…

ये हैं मकर संक्रांति की कुछ ऐतिहासिक कहानियां…

हिंदू धर्म  शास्त्रों में मकर संक्रांति को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। मगर इसके बारे मे सबसे पहले श्रीमद्भागवत और देवी पुराण में बातें बताई गई हैं। इनके अनुसार, शनि महाराज अपने पिता सूर्यदेव से नफरत करते थे। बता दें कि शनिदेव, भगवान सूर्य की पहली पत्नी छाया के पुत्र हैं।

दरअसल एक बार भगवान सूर्य ने पहली पत्नी छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज के साथ भेदभाव करते हुए पकड़ लिया था। इस बात से नाराज  भगवान सूर्य ने अपनी पत्नी छाया और पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया। इसके बाद शनिदेव और छाया ने सूर्य को कुष्ठ रोग का शाप दिया।

सूर्य को कुष्ठ रोग से पीड़ित देख उनके पुत्र यमराज काफी दुखी हुए और उन्होंने अपने पिता को बीमारी से छुटकारा दिलाने के लिए घोर तपस्या की। वहीं सूर्यदेव ने क्रोध वश शनि महाराज का घर जला दिया था। लिहाजा शनिदेव और उनकी मां छाया को इससे काफी कष्ट हुआ। इसके बाद यमराज ने अपनी शौतेली माता और भाई के कष्ट को देखते हुए उनके कल्याण के लिए सूर्यदेव को समझाया।

यमराज की समझाइश पर सूर्यदेव शनि के घर कुंभ में पहुंचे थे और वहां देखा कि सब कुछ जला हुआ था। ऐसे में अपने पिता सूर्य के आगमन से  शनिदेव ने सिर्फ काले तिल से उनकी पूजा की और इससे खुश होकर सूर्य ने ये आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर होगा और वहां मेरे आने से वह धन धान्य से भर जाएगा।

ऐसे में तिल की वजह से ही शनि महाराज को उनका वैभव प्राप्त हुआ और यही कारण है कि मकर संक्रांति के दिन तिल से सूर्य देव और शनि देव की पूजा की जाती है। लिहाजा  मकर संक्रांति को तिल संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है।

इसके अलावा जो दूसरी कथा प्रचलित है वो ये है कि मकर संक्रांति के दिन गंगाजी अपने भक्त भागीरथ के पीछे पीछे कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जाकर मिल गई थीं।माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी धरती पर आई थीं और इसी वजह से इस दिन नदी में स्नान का महत्व है।

मकर संक्रांति को लेकर एक अन्य कथा जो प्रचलति है, वो ये है कि इस दिन पितामह भीष्म ने अपना देह त्यागा था। भीष्म पीतामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था।

उन्होंने अपना देह त्यागने के लिए सूर्य के मकर राशि में आने का इंतजार किया था। मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन देह त्यागने से आत्माएं सीधे देवलोग में पहुंचती हैं।

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