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जब स्वामी विवेकानंद जी ने अलवर के महाराज को समझाया था मूर्ति पूजन का महत्व, पढ़ें ये रोचक कथा

आज स्वामी विवेकानंद जी की जयंती हैं। 12 जनवरी 1863 को इनका जन्म कोलकाता में हुआ था। जबकि 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ, हावड़ा में इन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस ली थी। इनका पूरा नाम नरेंद्र नाथ दत्ता था। हिंदू धर्म को विश्व भर में प्रचलित करने में इनका काफी योगदान रहा है और शिकागो में दिए गए भाषण के लिए इन्हें आज भी दुनिया भर में जाना जाता है। स्वामी विवेकानंद जी ने मूर्ति पूजा की प्रथा को भी प्रचलति किया था और इस संदर्भ से एक कथा भी जुड़ी हुई है।

 

7 फरवरी 1891 को स्वामी विवेकानंद पहली बार अलवर आए थे। इस दौरान इन्होंने कई स्थानों पर जाकर लोगों को प्रवचन दिए और हिंदू धर्मों को प्रचलित किया। ये एक टीले के नीचे बैठकर प्रवचन देते थे और दूर-दूर से लोग इनके प्रवचनों को सुनने के लिए आया करते थे। मेयो कालेज के प्रथम छात्र रहे राजा मंगल सिंह अलवर के पांचवे महाराज थे और इनके दीवान कर्नल रामचंद्र स्वामी विवेकानंद के प्रवचनों को सुनने के लिए आया करते थे। इन्हें स्वामी विवेकानंद के प्रवचन काफी पसंद आए और इन्होंने अपने महाराज को स्वामी विवेकानंद के बारे में बताया। जिसके बाद राजा मंगल सिंह अलवर ने बिना देरी किए स्वामी विवेकानंद जी को अपने राजमहल भोज के लिए बुलाया। स्वामी विवेकानंद जी वक्त निकालकर राजा मंगल सिंह अलवर से मिलने के लिए उनके राजमहल आए।

मुलाकात के दौरान राजा ने स्वामी विवेकानंद जी से एक सवाल किया और उनसे मूर्ति पूजा के बारे में पूछा। राजा ने स्वामी विवेकानंद जी से पूछा कि आखिर हम लोग मूर्ति पूजा क्यों करते हैं। राजा के इस सवाल का जवाब देते हुए स्वामी विवेकानंद जी ने उनसे कहा कि ड्राइंग रूम में लगी तस्वीर किस की है? राजा ने जवाब देते हुए कहा कि ये मेरे पिता राजा श्योदान सिंह की तस्वीर है। स्वामी विवेकानंद जी ने पूछा कि आखिर आपने ये तस्वीरे यहां क्यों लगा रखी है। क्या ये दिवंगत हो चुके हैं या जीवित हैं। इसका उत्तर देते हुए राजा ने कहा कि ये दिवंगत हो चुके हैं। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा कि इस तस्वीर में आज भी आप राजा को देखते हैं। इस तरह से इनका संवाद आगे बढ़ा।

स्वामी विवेकानंद जी ने राजा मंगल सिंह को समझाया की जैसे दिवंगत राजा की तस्वीर उनके होने का अहसास कराती है। वैसे ही हमारे अराध्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी उनके होने का अहसास दिलाती है। राजा स्वामी विवेकानंद जी की बात से राजा मंगल सिंह काफी प्रभावित हुए और मूर्ति पूजा का महत्व समझ गए।

अलवर में स्वामी विवेकानंद जी 31 मार्च 1891 तक रहें और ये यहां के कई स्थान पर गए। वर्तमान में जहां विवेकानंद चौक भी है। इस जगह पर कभी विशाल टीला हुआ करता था। स्वामी विवेकानंद इसी टीले पर बैठकर प्रवचन सुनाते थे। इसके अलावा यहां पर कई सारी स्वामी विवेकानंद से जुड़ी कई स्मृतियां भी हैं।।

वहीं वर्ष 1891 से 1897 के बीच स्वामी विवेकानंद ने यहां के अलग-अलग लोगों को कुल 9 पत्र लिखे थे। कुछ पत्र कर्नल रामचंद्र के पास तो कुछ पत्र लाला गोबिंद सहाय को भेजे थे। लाला गोबिंद सहाय के पौत्र राजाराम मोहन गुप्ता के पास ये पत्र आज भी मौजूद हैं।

अतीत के जिस टीले पर स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा स्थापित है, वो वर्तमान का सुप्रसिद्ध विवेकानंद चौक बन चुका है। राज ऋषि अभय समाज ने इस प्रतिमा का निर्माण करवाया था।

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