9 जनवरी : सफला एकादशी का व्रत रखने से पूर्ण हो जाते हैं सारे रुके काम, पढ़ें इस एकादशी से जुड़ी
पौष मास कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी आती है। इस साल ये एकादशी 9 जनवरी को आ रही है। सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। सफला एकादशी के व्रत को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। मान्यता है कि ये व्रत रखने से भक्तों के सभी मनोरथों की पूर्ति हो जाती है और विष्णु लोक में स्थान मिल जाता है। पद्म पुराण में एकदाशी का जिक्र करते हुए कहा गया है कि एक बार भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी तिथि का महत्त्व समझाते हुए बताया था कि सभी व्रतों में एकादशी व्रत श्रेष्ठ है।
मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने जनकल्याण के लिए अपने शरीर से पुरुषोत्तम मास की एकादशियों सहित कुल 26 एकादशियों को उत्पन्न किया था। इसलिए एकादशी तिथि पर नारायण की पूजा की जाती है और भगवान विष्णु के लिए व्रत रखा जाता है। जो लोग इस दिन पूजा-आराधना करते हैं उन्हें जीवन में कभी भी कोई पीड़ा नहीं होती है।
सफला एकादशी व्रत से जो भी रुके हुए कार्य होते हैं वो पूर्ण हो जाते हैं। पुराणों में इस एकादशी के सन्दर्भ में कहा गया है कि हजारों वर्ष तक तपस्या करने से जिस पुण्य की प्राप्ति होती है। वो पुण्य सफला एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है। सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी की पूजा करने के अलावा दीपदान करने का भी काफी महत्व होता है। दीपदान करने से हर कामान पूर्ण हो जाता है। कई लोग इस एकादशी के दिन व्रत भी रखा करते हैं।
सफला एकादशी व्रत कथा
पुराणों में सफला एकदाशी व्रत कथा का उल्लेख किया गया है। कथा के अनुसार राजा माहिष्मत का ज्येष्ठ पुत्र हमेशा गलत काम ही किया करता था और देवी-देवताओं की निंदा करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता है। अपने पुत्र के ऐसे रुप को देख राजा ने उसका नाम लुम्भक रख दिया और उसे अपने राज्य से निकाल दिया। राज्य से निकलने के बाद लुम्भक जंगलों में रहने लगा और मांस और फल खाकर अपना जीवन निर्वाह करने लगा। लुम्भक ने एक पीपल के पेड़ को अपना विश्राम स्थल बना ली और रोज इस पेड़ के नीचे आकर ही ये सोया करता था।
पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन लुम्भक ठंड के कारण सोता रहा और अगले दिन सफला एकादशी की दोपहर में सूर्य देव के ताप से उसकी आंख खुली। जागने के बाद उसे काफी भूख लगी और वो फल एकत्रित करके लग गया। फल खोजते हुए सूर्य अस्त हो गया। शाम होने पर वो फल लेकर पीपल के पेड़ के पास आया। यहां आकर उसने पीपल के वृक्ष की जड़ पर फलों को रख दिया और कहा कि ‘इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों’। अनायास ही लुम्भक से इस व्रत का पालन हो गया। जिसके कारण लुम्भक का भाग्य पूरी तरह से बदल गया और वो दिव्य रूपी राजा बन गया।
इस तरह से करें पूजा
1. सफला एकादशी के दिन अपने पूजा घर में एक चौकी स्थापित कर दें। इस चौकी पर विष्णु जी की मूर्ति रखें और उन्हें पील रंग के वस्त्र अर्पित करें। ये करने के बाद आप एक दीपक जला दें और फल, भोग और इत्यादि चीजें विष्णु जी को अर्पित करें।
2. इसके बाद विष्णु जी की पूजा करें और उनसे जुड़े मंत्रों का जाप करें।
3. इस दिन दीपदान का भी महत्व है। इसलिए शाम को घर पर दीपक जरूर जलाएं। ये दीपक आप तुलसी के पौधे के पास भी जला सकते हैं।