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क्यों किया जाता है कन्यादान, भगवान श्री कृष्ण ने बलराम को बताया था इस का महत्व

हिंदू धर्म  शास्त्रों में कन्यादान को महादान कहा गया है, यही वजह है कि विवाह की रस्मों में कन्यादान सबसे अहम रस्म होता है। एक पिता के लिए उसके जीवन का ये सबसे कठिन समय माना जाता है, जब वो अपनी बेटी का हाथ उसके जीवनसाथी के हाथों में सौंप देता है।

माना जाता है कि कन्यादान करने का सौभाग्य कुछ ही लोगों को मिलता है। ऐसे में कन्यादान के सही अर्थ को समझना जरूरी है। जिसके बारे में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत में बताया है। तो आइये जानते हैं, कन्यादान से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें..

कन्यादान को लेकर श्रीकृष्ण ने कही थी ये बड़ी बात..

वैसे तो कहा जाता है कि कन्यादान के बाद एक पिता का जीवन सफल हो जाता है, लेकिन महाभारत के दौरान श्रीकृष्ण ने कन्यादान की पूरी परिभाषा बताई है। दरअसल ये बात भगवान ने अर्जुन और सुभद्रा के विवाह के समय कही थी।

बता दें कि पहले के जमाने में गंधर्व विवाह हुआ करते थे, जिसमें लड़का और लड़की अपनी मर्जी से भगवान के समक्ष विवाह करते थे। ऐसे ही अर्जुन और सुभद्रा का विवाह भी गन्धर्व विवाह था, जो भगवान श्रीकृष्ण ने करवाया था।

वहीं श्रीकृष्ण के बड़े भैय्या बलराम ने इस विवाह का विरोध किया था और श्रीकृष्ण से कहा था कि जिस विवाह में कन्यादान ना हो वो विवाह पूर्ण नहीं होता। इस पर कृष्ण ने कहा था, ‘प्रदान मपी कन्याः पशुवत को नुमन्यते?’ यानी पशु की भांति कन्यादान का कौन समर्थन करता है?

प्राचीन धर्मशास्त्रों में भी कई जगहों पर कन्यादान का विरोध किया गया है। वहीं आधुनिक भारत में संविधान और कानून भी बिना कन्यादान के ही कोर्ट मैरिज को मान्यता देती है।

ये है कन्यादान का सही अर्थ

1. कन्यादान का सही अर्थ है कन्या का आदान करना है ना कि कन्या को दान में दे देना। विवाह के रस्म में जब कन्यादान होता है, तो पिता यही कहता है कि आज तक मैंने अपनी बेटी का पालन पोषण किया है और आज से मैं इसकी जिम्मेदारी आपको सौंपता हूं। इसका अर्थ ये कतई नहीं है कि अब से पिता का बेटी पर कोई हक नहीं है।

2. दान उस चीज का किया जाता है, जिसे आप अर्जित करते हैं। जैसे पैसे, जमीन जायदाद। मगर बेटी ईश्वर की दी हुई धरोहर है जो अनमोल है। अर्थात जिसे आपने अर्जित ही नहीं किया उसका दान भी नहीं हो सकता।

3. शादी के समय कन्यादान नहीं बल्कि सात फेरे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि कन्यादान हो जाए और सात फेरे न हो तो विवाह पूरा नहीं माना जाता। यही वजह है कि जब शादी में तलाक की बात आती है तो कोर्ट भी सात फेरे के बारे में पूछता है ना कि कन्यादान के बारे में।

जानिए कहां से शुरू हुई थी कन्यादान की परंपरा 

पौराणिक कथाओं की मानें तो दक्ष प्रजापति ने अपनी बेटियों की शादी करने के लिए सर्वप्रथम कन्यादान किया था। आपको बता दें कि सभी 27 नक्षत्रों को दक्ष प्रजापति की पुत्री कहा गया है, जिनका विवाह चंद्रमा के साथ हुआ था। दक्ष ने ही अपनी कन्याओं का सर्वप्रथम आदान किया था, ताकि संसार आगे बढ़ सके।

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