बंगाल के दौरे पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मिदनापुर जिले में प्रवास के दौरान देश के महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस को उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी। आपको बता दें कि भारत के स्वाधीनता संग्राम का इतिहास महान वीरो और उनके सैकड़ों साहसिक कारनामों से भरा पड़ा है। ऐसे ही क्रांतिकारियों की सूची में एक नाम खुदीराम बोस का है। खुदीराम बोस एक भारतीय युवा क्रांतिकारी थे, जिनकी शहादत ने संपूर्ण देश में क्रांति की लहर पैदा कर दी थी। महज 18 वर्ष की आयु में हाथ में श्रीमद्भगवद लेकर यह फांसी के फंदे पर चढ़ गए थे।
खुदीराम बोस की शहादत से संपूर्ण देश में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी थी। इनके वीरता को अमर करने के लिए गीता लिखे गए और इनका बलिदान लोकगीतों के रूप में भी मुखरित हुआ। खुदीराम बोस ने अपना संपूर्ण जीवन देश को समर्पित कर दिया था। जिस उम्र में युवा अपने करियर और भविष्य को लेकर असमंजस में रहते हैं, उस उम्र में महान क्रांतिकारी खुदीराम बोस ने 18 वर्ष की आयु में देश को ब्रिटिश दासता से मुक्त कराने के लिए संघर्ष किया और हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर लटक गए थे।
आपको बता दें कि खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था। बहुत कम उम्र में ही माता-पिता का साया इनके सर से उतर गया था। माता-पिता के निधन के बाद उनके लालन-पालन की जिम्मेदारी बड़ी बहन के ऊपर आ गई थी। आपको बता दें कि खुदीराम बोस के मन में देशभक्ति की भावना बहुत ज्यादा प्रबल थी। कुछ समय के पश्चात जब 1905 में बंगाल का विभाजन हुआ था, तब खुदीराम बोस आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे।
खुदीराम बोस ने अपना क्रांतिकारी जीवन सत्येन बोस के नेतृत्व में शुरू किया था। आपको बता दें कि खुदीराम बोस अपने स्कूल के दिनों से ही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ नारे लगाते थे। स्कूल के दिनों से ही उन्होंने राजनीति गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था। खुदीराम बोस एक ऐसे युवा थे जो अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए आंदोलन में शामिल होना चाहते थे। खुदीराम बोस प्राय: अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ होने वाले जजलसे-जलूसों में भी शामिल होते थे और नारे लगाते थे। देश के प्रति प्रेम इनके मन में कूट-कूट कर भरी थी। यह देश की आजादी के लिए मर मिटने के लिए तैयार थे।
आपको बता दें कि 6 दिसंबर 1907 को नारायणगढ़ नामक रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर इन्होंने हमला किया था परंतु इस हमले में गवर्नर बच गया था। इसके बाद खुदीराम बोस को एक क्रूर अंग्रेज अधिकारी किंग्सफोर्ड को मारने की जिम्मेदारी दी गई थी, इसमें उनको प्रफुल्ल कुमार चाकी का साथ मिला था। यह दोनों मिली जिम्मेदारी को निभाने के लिए बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में पहुंच गए और एक दिन अवसर देखकर उन्होंने किंग्सफोर्ड की बग्गी में बम फेंक दिया था।
लेकिन उस बग्गी में किंग्सफोर्ड नहीं था बल्कि एक दूसरे अंग्रेज अधिकारी की पत्नी और उसकी बेटी उस बग्गी में थी, जिनकी मृत्यु हो गई थी। इसके बाद क्या था, अंग्रेज पुलिस इनके पीछे हाथ धोकर पीछे पड़ गई। आखिरकार वैनी रेलवे स्टेशन पर उनको घेर लिया गया था। जब अंग्रेजों ने इनको घेर लिया तब प्रफुल्ल कुमार चाकी ने खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी थी परंतु खुदीराम बोस अंग्रेजों द्वारा पकड़े गए थे। उनको पकड़कर मुजफ्फरपुर जेल में मजिस्ट्रेट के आगे पेश किया गया, मजिस्ट्रेट ने उन्हें फांसी पर लटकाने का आदेश सुना दिया था।
खबरों के अनुसार ऐसा बताया जाता है कि जब खुदीराम बोस को फांसी की सजा सुनाई गई थी तब उनकी उम्र महज 18 वर्ष की थी। ऐसा बताया जाता है कि खुदीराम बोस हाथ में गीता लेकर एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फांसी के तख्ते पर खुशी-खुशी लटक गए थे। उनकी निडरता, वीरता और शहादत ने उनको इतना लोकप्रिय कर दिया कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे। उनकी फांसी के बाद नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे जिनके किनारे पर खुदीराम लिखा होता था। आपको बता दें कि उनकी फांसी के बाद विद्यार्थियों तथा अन्य लोगों ने शोक मनाया और कई दिनों तक स्कूल-कॉलेज भी बंद रहे थे।