पिता की जान बचाने खातिर एक बेटी ने किडनी तो दूसरी ने लीवर किया डोनेट, जाने पूरा मामला
आजकल के समय में बेटियां बेटों से बिल्कुल भी कम नहीं हैं। चाहे देश की बात हो या फिर समाज की सुरक्षा की। हर तरफ बेटियां सबसे आगे हैं। यहां तक की पढ़ाई और खेलकूद के मैदान में भी बेटियों ने अपने आपको साबित कर दिखाया है। इन सबके बावजूद भी कुछ लोग ऐसे हैं जो बेटियों को किसी और नजर से देखते हैं। लोग हमेशा बेटों को ही प्राथमिकता देते हैं, जबकि बेटियां भी आजकल के समय में हर वह काम कर रही हैं जो एक बेटा कर सकता है। बेटियां भी लड़कों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। अब आपके मन में यह सवाल उत्पन्न हो रहा होगा कि आखिर हम बेटियों की बात क्यों करने लगे? आपको बता दें कि कहीं ना कहीं बेटों से बेहतर बेटियों के मजबूत उदाहरण सामने आ ही जाते हैं। एक ऐसा ही उदाहरण रामपुर का है, जहां पर दो बेटियों ने पिता की जान बचाने के लिए अपनी किडनी और लीवर डोनेट किया है।
प्रिया ने अपने पिता को लीवर का एक हिस्सा दिया
वर्ष 2002 में हरीश कुमार को लीवर की समस्या हुई थी। आपको बता दें कि हरीश कुमार एक इंश्योरेंस कंपनी में डेवलपमेंट अधिकारी हैं और यह रामपुर सिविल लाइंस के निवासी हैं। शुरुआती दिनों में इन्होंने अपना इलाज कराया और चिकित्सकों की सलाह पर यह दवाइयां लेते रहें और खानपान में भी सुधार किया, लेकिन समय के साथ-साथ इनकी बीमारी और गंभीर होती गई। वर्ष 2012 में चिकित्सकों ने हरीश कुमार के परिजनों को यह कहा कि यह क्रॉनिक लिवर सिरोसिस से पीड़ित हैं, जिसकी वजह से लिवर ट्रांसप्लांट करने की आवश्यकता पड़ेगी।
हरीश कुमार जी का लिवर ट्रांसप्लांट कराने में बहुत मुश्किल हुई थी। परिवार के ज्यादातर सदस्य इसमें अनफिट साबित हुए थे। परिवार के लोगों ने लिवर ट्रांसप्लांट जल्द से जल्द कराने की बेहद कोशिश की परंतु कुछ भी नहीं हो पा रहा था। आखिर में हालात को देखते हुए वर्ष 2013 में हरीश कुमार जी की छोटी बेटी प्रिया ने अपने लीवर का एक हिस्सा अपने पिता को दिया। बेटी ने अपने पिता के लिए ट्रांसप्लांट कराया। अब हरीश जी बिल्कुल स्वस्थ हैं और प्रिया अब इंडियन बैंक में सहायक प्रबंधक के पद पर कार्य कर रहीं हैं। हरीश कुमार जी का ऐसा कहना है कि उनके पास दो बेटे नहीं बल्कि दो बेटियां हैं। इनको अपनी बेटियों पर गर्व है। बेटियों ने जो किया शायद बेटा होता तो ऐसा कर पाता।
शिल्पी अग्रवाल ने किडनी डोनेट करके पिता की बचाई जान
रामपुर के सिविल लाइंस थाना क्षेत्र के कैलाश कॉलोनी में रहने वाले आयकर अधिवक्ता अशोक अग्रवाल को वर्ष 2008 से किडनी की समस्या चल रही थी। इनके परिवार वालों ने इनका हर संभव इलाज करवाया। पहले अशोक अग्रवाल जी का बरेली में इलाज करवाया, इसके बाद यह गुरुग्राम मेदांता अस्पताल में ले गए। परिजनों ने इनके इलाज में कोई भी कसर नहीं छोड़ी। वर्ष 2012 में डॉक्टरों ने अशोक अग्रवाल को कहा कि आपकी किडनी का ट्रांसप्लांट होगा। अगर आपको अपना जीवन बचाना है तो यही आखरी रास्ता है।
किडनी ट्रांसप्लांट को लेकर परिवार के सभी सदस्य काफी चिंतित हो गए। परिवार के सभी सदस्य अपनी किडनी देने को तैयार थे परंतु सदस्यों में किसी की उम्र नहीं तो किसी को स्वास्थ्य संबंधित परेशानी थी, जिसकी वजह से यह अपनी किडनी नहीं दे सकते थे। परिवार के सभी लोग परेशान हो गए, इसी बीच एक बेटी शिल्पी अग्रवाल ने अपनी किडनी देने का फैसला लिया। वर्ष 2012 में शिल्पी अग्रवाल ने अपनी एक किडनी पिता को डोनेट की, जिससे इनके पिता को एक नई जिंदगी मिली थी। आपको बता दें कि शिल्पी अग्रवाल आज पूरी तरह से स्वस्थ हैं। यह एक निजी स्कूल में पढ़ाती हैं। अशोक अग्रवाल जी का ऐसा कहना है कि उनको भगवान के रूप में बेटी मिली है। मैं चाहता हूं कि ऐसी संतान सभी माता-पिता को मिले।