एयरहोस्टेस के चक्कर में बीवी को छोड़ बैठे थे फिरोज खान, बेटी लैला ने खोले पिता के सारे राज़.
बीते जमाने के एक्टर फिरोज खान (Feroz Khan) अपनी दमदार पर्सनालिटी और शानदार एक्टिंग के लिए जाने जाते हैं। 25 सितंबर, 1939 को बेंगलुरु में जन्मे फिरोज खान की आज 81वीं बर्थ एनिवर्सरी है। 27 अप्रैल, 2009 को कैंसर के चलते उनका निधन हो गया था।
उन्होंने साल 1959 में ‘दीदी’ फिल्म से बॉलीवुड में एंट्री की थी। वे 1960 से 1980 तक दर्शकों के बीच बेहद पॉपुलर रहे। इस दौरान उन्होंने ‘रिपोर्टर राजू’, ‘सुहागन’, ‘ऊंचे लोग’, ‘आरजू’, ‘औरत’, आदमी और इंसान’, ‘मेला’, ‘खोटे सिक्के’ और धर्मात्मा सहित लगभग 50 फिल्मों में काम किया।
फिरोज खान आखिरी बार साल 2007 में ‘वेलकम’ फिल्म में देखे गए थे। इस फिल्म में उनका डॉन रणवीर धनराज (RDX) का कैरेक्टर बड़ा पसंद किया गया था। उन्होंने एक्टिंग के अलावा डायरेक्शन में भी हाथ आजमाया। बतौर डायरेक्टर उन्होंने ‘अपराध’, ‘धर्मात्मा’, ‘कुर्बानी’, ‘जांबाज’, ‘दयावान’, ‘यलगार’, ‘प्रेमअगन’ और ‘जानशीन’ जैसी फिल्में बनाई।
निजी जिंदगी की बात करें तो फिरोज खान ने 1965 में सुंदरी नाम की महिला से शादी रचाई थी। शादीशुदा होने के बावजूद उनका एयरहोस्टेज ज्योतिका धनराजगिर से लव अफेयर भी चला था। इस प्यार के चक्कर में उन्होंने अपनी बीवी सुंदरी को भी छोड़ दिया था। वे इस एयरहोस्टेज संग लिव इन में रह रहे थे। हालांकि कुछ सालों बाद उनका यह रिश्ता भी टूट गया। वहीं उनकी पत्नी सुंदरी ने भी उन्हें तलाक दे दिया।
फिरोज खान को सुंदरी से तीन बच्चे लैला, फरदीन और सोनिया हुए। सोनिया का साल 2012 में एक कार दुर्घटना में निधन हो गया। फरदीन अपने पिता की तरह ही बॉलीवुड एक्टर हैं लेकिन उनका फिल्मी करियर कोई खास नहीं रहा। उन्होंने मुमताज की बेटी नताशा माधवानी से निकाह किया है।
लैला अपने पिता के बारे में बताती है कि वे एक नो नॉनसेंस पर्सन थे। उनकी इमेज को देख लोग उनके आसपास भी फटकने से डरते थे। उन्होंने अपने बच्चों को कभी नहीं मारा, क्योंकि उनकी सख्त नजर ही काफी होती थी। लैला बताती है कि पापा ने हमे पैसों से ज्यादा लाइफ वैल्यूज को महत्व देना सिखाया। वे कहते थे बड़ों का अदर करो, छोटो से प्यार करो। पैसा आता जाता रहेगा लेकिन संस्कार हमेशा रहेंगे।
फिरोज खान एक बार ‘धर्मात्मा’ फिल्म को ए सर्टिफिकेट मिलने से इतने नाराज हो गए थे कि उन्होंने कांच का दरवाजा तक तोड़ दिया था। लैला बताती है कि पापा ने इस फिल्म के लिए बहुत मेहनत की थी। लेकिन वे सेंसर बोर्ड के रवैये से परेशान थे। इसलिए जब फिल्म को ए सर्टिफिकेट मिला तो उन्होंने अपने हाथ में रखा कांच का ग्लास कांच के दरवाजे पर मार दिया था। हालांकि बाद में उन्हें इसका अफसोस भी हुआ था।