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कलयुग का श्रवण कुमार: मां तीर्थ कर सके इसलिए छोड़ी नौकरी, 56000 KM स्कूटर से तय किए

सोशल मीडिया पर इन दिनों ‘कलयुग का श्रवण कुमार’ सुर्खियां बटोर रहा है। दरअसल कर्नाटक के मैसूर में रहने वाले 40 वर्षीय कृष्णा कुमार एक स्कूटर पर अपनी 70 साल की मां को सभी तीर्थ स्थलों के दर्शन करवा दिए। इस काम में उन्हें लगभग तीन साल का समय लगा। दिलचस्प बात तो ये थी कि उन्होंने ये सभी तीर्थ मां को बजाज के 2000 मॉडल के स्कूटर पर करवाए। इस दौरान उन्होंने स्कूटर से 56,522 किलोमीटर से अधिक का सफर तय किया।

पिता ने गिफ्ट में दिया था स्कूटर

कृष्णा बताते हैं कि उन्हें यह स्कूटर अपने पिताजी (Dakshina Murthy) से 2001 में गिफ्ट में मिल था। उनके पिताजी का 2015 में देहांत हो गया था। इसलिए उन्होंने फैसला किया कि वे तीनों (कृष्णा, उनकी मां और पिताजी की आत्मा) इस स्कूटर से सभी तीर्थों के दर्शन करेंगे।

अनुभव शब्दों में बयां नहीं कर सकती

कृष्णा की मां बताती है कि इस पूरे सफर में मेरी तबीयत ठीक रही। बेटे ने बहुत ध्यान रखा। हमने पूरे सफर में रुकने के लिए होटल नहीं लिया। हमेशा मंदिर, मठों और धर्मशाला को अपने ठहरने का आश्रय बनाया। मैं इस सफर के अनुभव को शब्दों में बयां नहीं कर सकती।

मां की खातिर छोड़ी नौकरी

मां को पिताजी के स्कूटर पर तीर्थ कराने के लिए कृष्णा ने अपनी बेंगलुरु की एक प्राइवेट कंपनी वाली जॉब छोड़ दी। उन्होंने यह यात्रा 16 जनवरी 2018 को प्रारंभ की थी। इसे उन्होंने ‘मातृ सेवा संकल्प यात्रा’ नाम दिया। 56 हजार किलोमीटेर से ज्यादा के इस सफर को तय करने में उन्हें 2 साल 9 महीने का समय लगा। इस दौरान कृष्णा ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर तीर्थ स्थल के दर्शन मां को करवाए।

कृष्णा ने अपनी पूरी जिंदगी मां के नाम कर दी है। बीते बुधवार को उनका यह सफर पूर्ण हुआ। वे मां के साथ मैसूर लौट आए। कृष्णा बताते हैं कि आगे भी वे अब धर्म-कर्म के रास्ते पर चलना पसंद करेंगे। वे स्वामी विवेकानंद और राम कृष्ण परमहंस को अपना आइडल मानते हैं। जिंदगीभर मां की सेवा करने के उद्देश्य से कृष्णा ने शादी भी नहीं की है।

लोगों ने की तारीफ


सोशल मेडिया पर कृष्णा की बहुत तारीफ हो रही है। एक यूजर लिखता है – माँ के प्रति बेटे का प्यार और समर्पण देखिए। कृष्ण कुमार माँ को स्कूटर पर ले कर निकल पड़े तीर्थयात्रा कराने। स्कूटर दिवंगत पिता की याद दिलाता रहा। 3 साल में 56 हज़ार KM से ज़्यादा की दूरी नापी। होटल नहीं बल्कि मंदिर, मठों और धर्मशाला में ठहरे। इनको प्रणाम।

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