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इंदिरा गांधी ने अपने छोटे बेटे संजय गांधी की लाश को पहली बार देखा तो यह था उन का रिएक्शन

गांधी परिवार के बेटे और कांग्रेस नेता संजय गांधी का जन्म 14 दिसंबर 1946 को हुआ था। संजय गांधी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे थे, लेकिन राजनीति का ज्ञान अपनी मां से भी ज्यादा रखते थे। संजय गांधी का नाम सबसे ज्यादा इमरजेंसी के लिए याद किया जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणी की तो पूरे देश में हड़कंप मच गया। इस दिन को देश के इतिहास का सबसे काला दिन माना गया जो करीब दो साल तक रहा। कहा जाता है कि अगर उस दौरान सत्ता संजय गांधी के हाथों होती तो वो 35 सालों तक इमरजेंसी लगे रहने देते। हालांकि इमरजेंसी के दौरान जितने फैसले लिए गए उन पर संजय गांधी का ही प्रभाव था।

हवा में कलाबाजियों का शौक रखते थे संजय गांधी

इमरजेंसी के ज्यादतियों के चलते 1977 में कांग्रेस की बुरी तरह से हार हुई और उन्हें पहली बार सत्ता से बाहर होना पड़ा। हालांकि साल 1980 में फिर से कांग्रेस की सरकार वापस आ गई क्योंकि जनता को समझ आ गया था कि जनता पार्टी के नाम पर जो लोग एकट्ठा हुआ थे वो सरकार चलाने के काबिल नहीं थे। 1980 में कांग्रेस को जो जीत मिली थी वो संजय गांधी की रणनीति का ही नतीजा था। संजय गांधी ने खुद अपनी पसंद के लोगों को चुनाव में खड़ा किया था। 1980 में इंदिरा ने घोषणा कर दी कि संजय अब से कांग्रेस के महासचिव होंगे।

संजय गांधी राजनीति में माहिर थे साथ ही उन्हें गाड़ी चलाने का भी बेहद शौक था। इसके अलावा उन्हें हवा में चार्टर प्लेन से कलाबाजियां करना भी बेहद पसंद था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के योग गुरु धीरेंद्र ब्रह्मचारी उस वक्त इंदिरा के यहां रहते थे। संजय गांधी रोज की तरह चार्टर प्लेन की तरफ जा रहे थे तभी उनको धीरेंद्र ब्रह्मचारी मिले। संजय ने उनसे साथ चलने को कहा तो उन्होंने बोला- मैंने तुम्हारी रफ्तार के किस्से सुने है मुझे छोड़ दो। कुछ ही दिन पहले एक नया चार्टर प्लेन आया था पिट्स-एस- 2ए जो आसमान में गुलाटियां खा सकता था।

फ्लाइंग ट्रेनर सुभाष संग चार्टर प्लेन में कर रहे थे इंतजार

एक बार संजय गांधी अपनी पत्नी मेनका गांधी को उसी चार्टर प्लेन में ले गए। संजय गांधी की कलाबाजी देखकर मेनका गांधी चीखती रहीं। घर पहुंचकर उन्होंने अपनी सास इंदिरा से कहा कि आप संजय को इस विमान को उड़ाने से मना कर दीजिए। इंदिरा ऐसी बातें पहले भी सुन चुकी थीं। उस वक्त आरके धवन आये और उन्होंने कहा कि- ये मर्दों का जहाज है और मेनका औरत हैं इसलिए घबरा गई।उन्हें संजय गांधी ने प्लेन में साथ चलने को कहा और वो उनके प्रलोभन में आ गए। इसके बाद शाम को वो उन्हें चार्टर प्लेन में ले गए। कई कलाबाजियां देखने को बाद जब आरके धवन घर पहुंचे तो उन्होंने इंदिरा गांधी से कहा कि – मैडम प्राइम मिनिस्टर मैं आज के बाद से कभी संजय गांधी के साथ नहीं जाऊंगा।

23 जून 1980 को संजय गांधी सुबह सुबह प्रधानमंत्री आवास 1, सफदरजंग से हरे रंग की गाड़ी से निकले। संजय गांधी वहां से सफदरजंग एयरपोर्ट पहुंचे जहां पहले से फ्लाइंग ट्रेनर सुभाष सक्सेना उनका इंतजार कर रहे थे। सुभाष सक्सेना संजय गांधी के साथ उसी पिट्स एस-2ए पर सवार हुए और उड़ान भरी। कुछ मिनटों में ये चॉर्टर प्लेन कलाबाजियां करने लगा।

जब संजय की लाश को तत्कालीन पीएम इंदिरा ने देखा

कुछ समय बाद संजय का चार्टर प्लेन से नियंत्रण छूट गया। थोड़ी देर बाद प्लेन आवाज करते हुए नीचे गिरा। संजय गांधी का प्लेन क्रैश हो गया और एक पेड़ के बीच फंस गया। कुछ देर में वहां भीड़ जुट गई और एंबुलेंस और फायरब्रिगेड भी आ गई। पेड़ की शाखाओं को काटा गया और प्लेन को नीचे उतारा गया। उसमें से दो लाशें निकाली गई एक सुभाष सक्सेना की और एक संजय गांधी की। संजय गांधी की लाश को रखा गया और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का इंतजार होने लगा।

सबकी आंखें देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर टिकी थीं जिन्हें अपने बेटे की मौत की खबर मिल चुकी थी। इंदिरा गांधी अपने निजी सचीव आरके धवन के साथ पहुंची। जैसे ही इंदिरा गांधी ने संजय की लाश को देखा अपना आपा खो बैठीं। उनकी आंखों से आंसू निकलने लगे और वो फफक कर रोने लगीं। ये पहला मौका था जब देश ने प्रधानमंत्री को रोते देखा। कहते हैं कि इंदिरा गांधी ने अपने पति और पिता के मौत पर भी वो आंसू नहीं बहाए थे जितने उन्होंने अपने बेटे की मौत पर बहा दिए।

दो दिन बाद हुआ था अंतिम संस्कार

हालांकि कुछ देर बाद ही वो संभली। उन्हे ध्यान आया कि वो सिर्फ एक मां नहीं हैं, बल्कि देश की प्रधानमंत्री है। संजय गांधी के शव को दो दिन तक रखा गया क्योंकि संजय गांधी के बड़े भाई राजीव गांधी अपने परिवार संग इटली में छुट्टियां मना रहे थे। दो दिन बाद राजीव गांधी अपने परिवार संग भारत लौटे और संजय गांधी का अंतिम संस्कार किया गया।

संजय गांधी की मौत के बाद ये सवाल उठा कि कांग्रेस को कौन आगे ले जाएगा संजय के बड़े भाई या उनकी पत्नी मेनका गांधी। दरअसल उन दिनों इंदिरा गांधी विदेशी मामले और राज्य के बड़े बडे़ मामले देखती थीं और संगठनों और राज्यों की सियासत पूरी तरह से संजय गांधी के कब्जे में आ चुकी थी। हालिया चुनाव में जिन 8 राज्यों में कांग्रेस जीती थी वहां के मुख्यमंत्री संजय गांधी ने चुने थे। दूसरी तरफ राजीव गांधी को राजनीति में दिलचस्पी नहीं थी और उन्होंने सोनिया गांधी से इसी शर्त पर शादी की थी कि वो कभी राजनीति में नहीं उतरेंगे। हालांकि इंदिरा गांधी ने बेटे राजीव गांधी को चुना और कांग्रेस की बागडोर संभाली।

संजय गांधी कार बनाने का सपना देखा करते थे। उनके इस सपने को पूरा करने के लिए उस वक्त इंदिरा सरकार ने अपना खजाना तक खोल दिया था। हालांकि अपने जीते जी संजय गांधी वो सपना पूरा नहीं कर पाए।  संजय गांधी जो कार बनाना चाहते थे उसका नाम मारुति था जिसे आज हम मारुति सुजुकि के रुप में जानते हैं। संजय गांधी को कुछ लोग देश के खलनायक के रुप में याद करते हैं तो वहीं कुछ लोगों का मानना था कि संजय गांधी जिंदा होते तो देश और ज्यादा तरक्की कर गया होता।

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