16 सितंबर को है विश्वकर्मा पूजा, पढ़ें भगवान विश्वकर्मा की रोचक पौराणिक कथा व पूजा विधि
हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन विश्वकर्मा पूजा की जाती है। मान्यता है कि इसी दिन ऋषि विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। इस साल विश्वकर्मा पूजा 16 सितंबर को है। विश्वकर्मा पूजा के दिन कारखानों और फैक्ट्रियों में खास तरह का पूजन किया जाता है। यहां तक की कई लोग तो अपने औजारों की भी पूजा इस दिन किया करते हैं।
विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त
विश्वकर्मा पूजा का आरंभ चतुर्दशी तिथि यानी 15 सितंबर को 11 बजकर 1 मिनट से हो जाएगा। जो कि चतुर्दशी तिथि समाप्त यानी 16 सितंबर 7 बजकर 56 मिनट तक रहेगा। पंडितों के अनुसार पूजा करने के लिए 16 सितंबर सुबह 10 बजकर 9 मिनट से 11 बजकर 37 मिनट तक का समय सबसे उत्तम रहेगा। इसलिए आप इसी दौरान पूजा करें।
क्यों की जाती है विश्वकर्मा पूजा
विश्वकर्मा पूजा करने से पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने ये जगत बनाने के बाद इसे सजाने की जिम्मेदारी विश्वकर्मा को सौंपी थी। विश्वकर्मा को ब्रह्मा जी का ही वंशज माना जाता है और इनकी कला को ब्रह्मा जी अच्छे से जानते थे। इसलिए संसार को सजाने की जिम्मेदारी ब्रह्मा जी ने इन्हें सौंपी थी और ब्रह्मा जी की और से दी गई जिम्मेदारी को इन्होंने अच्छे से निभाया।
पौराणिक कथा के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि का निर्माण किया, तो ये एक विशालकाय अंडे के आकार में थी। इसे ब्रह्मा जी ने शेषनाग की जीभ पर रखा था। हालांकि शेषनाग के हिलने से सृष्टि को नुकसान पहुंचता था। बार-बार सृष्टि के हिलने से ब्रह्मा जी परेशान रहते थे। इस समस्या को हल करने के लिए ब्रह्मा जी ने भगवान विश्वकर्मा से मदद मांगी और उन्हें कोई उपाय बताने को कहा। ब्रह्मा जी की इस समस्या को हल करने के लिए भगवान विश्वकर्मा ने वल मेरू पर्वत को जल में रखवा कर सृष्टि को स्थिर कर दिया। ऐसा करने से धरती का हिलना बंद हो गया।
माने जाते हैं दुनिया के पहले इंजीनियर
विश्वकर्मा जी ने इस संसार में काफी सुंदर चीजों का निर्माण किया है। माना जाता है कि विश्वकर्मा जी ने कई सारे देवताओं का घर भी बनाया है। भगवान विश्वकर्मा की निर्माण क्षमता और शिल्पकला का उदाहरण हमें कई सारे मंदिरों में भी देखने को मिलता है। इतना ही नहीं इन्हें दुनिया का पहला इंजीनियर और वास्तुकार भी कहा जाता है। विश्वकर्मा जी के जन्मदिवस पर इनकी पूजा की जाती है। छोटी से छोटी दुकान में इनकी मूर्ति भी रखी जाती है।
विश्वकर्मा पूजा का लाभ
विश्वकर्मा की पूजा करने से व्यापार में तरक्की होती है। इसलिए जन लोगों का व्यापार सही से नहीं चल रहा है वो लोग विश्वकर्मा की पूजा किया करें। विश्वकर्मा पूजा करने से आपकी कला में निखार भी आता है। इसके अलावा व्यापार में धन हानि भी नहीं होती है और बरकत बनीं रहती है।
इस तरह से करें पूजा
- विश्वकर्मा जी की पूजा करना बेहद ही सरल है। इनकी पूजा व्यापार स्थल या दुकान में की जाती है।
- विश्वकर्मा पूजा करने के लिए दुकान पर एक चौंकी रख दें। उसके बाद इसपर लाल रंग का वस्त्र बिछा दें और इसपर विश्वकर्मा जी की मूर्ति को रख दें।
- अगर आपके व्यापार से कोई विशेष औजार जुड़ा है। तो उसे साफ करके आप चौंकी के पास रख दें।
- अब विश्वकर्मा जी को फूल व फल अर्पित करें और औजार पर भी फूल चढ़ाएं।
- दीपक जलाकर पूजा शुरू करें और नीचे बताए गए मंत्रों को पढ़ें
‘ॐ आधार शक्तपे नम:
ॐ कूमयि नम:,
ॐ अनंतम नम:,
पृथिव्यै नम:’
“ॐ विश्वकर्मणे नमः”
- ऊपर बताए गए मंत्रों में से आप कोई सा भी मंत्र पढ़ सकते हैं। इन मंत्रों का जाप आप ग्यारह सौ, इक्कीस सौ, इक्यावन सौ या ग्यारह हजार बार करें। वहीं जाप पूरा करने के बाद विश्वकर्मा की आरती भी पढ़ें।
- आरती पूरी होने के बाद प्रसाद लोगों में बांट दें। साथ में ही इस बात का ध्यान रखें की जिस औजार की पूजा आपने की है। उसका प्रयोग इस दिन ना करें।
विश्वकर्मा की आरती इस प्रकार –
ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥1॥
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥2॥
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥3॥
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥4॥
जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥5॥
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥6॥
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥7॥
श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥8॥
अगर आप किसी कारण से विश्वकर्मा की पूजा नहीं कर पाते हैं। तो आप इनके 108 नामों का जाप कर लें। इनके 108 नामों का जाप करने से आपको पूजा जीतना ही फल प्राप्त होगा।