देवताओं की मदद करने के लिए भगवान विष्णु ने लिया था कूर्म अवतार, समुद्र मंथन से जुड़ी है कथा
भगवान विष्णु के दस अवतारों का जिक्र शास्त्रों में मिलता है और इनके अवतारों का वर्णन पुराणों में विस्तार से किया गया है। पुराणों के अनुसार विष्णु जी ने दस अवतार लिए थे। इसलिए इन्हें दशावतार के नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु के अवतारों में से एक अवतार कूर्म यानी कि कछुए का भी है। हालांकि इस अवतार के बारे में बेहद ही कम लोग जानते हैं। कूर्म अवतार की कहानी समुंद्र मंथन से जुड़ी हुई है और आज हम आपको इस अवतार की उत्पत्ति कैसे हुई ये बताने जा रहे हैं। Lord Vishnu Koorma avatar Story
कूर्म अवतार की कथा
विष्णु जी ने कूर्म का अवतार लेकर समुद्र मंथन के दौरान देवताओं की मदद की थी। कथा के अनुसार एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवताओं के राजा इंद्र को श्राप दे दिया था। इस श्राप के कारण इंद्र देव श्री हीन हो गए थे। श्राप से मुक्ति पाने के लिए इंद्र देव ने विष्णु जी से मदद मांगी और कहा कि वो उन्हें कोई हल बताएं। इंद्रदेव की मदद करते हुए विष्णु जी ने उन्हें कहा कि वो असुरों के साथ समुद्र मंथन करें।
विष्णु जी की बात मानते हुए इंद्रदेव ने असुरों व देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन शुरू कर दिया। समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और नागराज वासुकी को नेती बनाया गया। मतभेदों को भुलाकर देवताओं और असुरों ने एक साथ मंदराचल को उखाड़ा कर उसे समुद्र में डाल दिया। लेकिन मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं था। जिसके कारण वो समुद्र में डूबने लगा। इस समस्या को हल करने के लिए भगवान विष्णु ने विशाल कूर्म का रूप धारण किया और समुद्र के अंदर जाकर मंदराचल के आधार बन गए। जिसके बाद भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घूमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन शुरू हो गया। तभी से विष्णु जी के इस अवतार की पूजा भी की जाने लगी।
विष्णु जी के कई सारे मंदिर है जहां पर इनके कूर्म अवतार की पूजा भी की जाती है। साथ में ही हिंदू धर्म में कछुए को शुभ माना जाता है। मान्यता है कि घर में कछुआ रखने से धन की कमी नहीं होती है और विष्णु जी की कृपा बन जाती है। यही वजह है कि लोग घर में कछुआ रखते हैं।