मरने से पहले महसूस होते हैं ये लक्षण, जाने कितने प्रकार को होती है मौत
मृत्यु इस संसार का अंतिम और अटल सत्य है। ये ऐसा सत्य है, जिससे कई इनकार नहीं कर सकता और ना ही इसे कोई टाल सकता है। भगवत गीता में कहा गया है कि जीवन के समान मृत्यु भी अटल सत्य है और फिर मृत्यु के बाद एक नया शरीर मिलेगा इस सत्य से भी कोई इनकार नहीं कर सकता है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जीवन और मृत्यु एक चक्र है, जिसमें सभी जीवधारियों की आत्मा भटकती रहती है। जैसे इस संसार में सभी अमीर नहीं होते हैं और ना ही सभी गरीब होते हैं, उसी प्रकार मृत्यु भी सबकी अलग अलग होती है। मृत्यु हमेशा कर्मों पर ही निर्भर करती है।
ऐसे लोगों की आत्मा रहती है अशांत
धर्मग्रंथों के अनुसार मृत्यु दो प्रकार की होती है। पहली प्राकृतिक और दूसरी अप्राकृतिक। किसी रोग के होने या वृद्धावस्था होने से आत्मा शरीर को त्याग देती है, ये प्राकृतिक मृत्यु है। इसके अलावा दुर्घटना, सर्पदंश, हथियार या आत्मघात से मृत्यु होना अप्राकृतिक मृत्यु की श्रेणी में आता है। कहा जाता है कि अप्राकृतिक मृत्यु को प्राप्त मनुष्य की आत्मा हमेशा अशांत रहती है, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ऐसे मनुष्यों की भौतिक इच्छाएं पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाती हैं। ऐसे में वो लोग पृथ्वी लोक और परलोक के बीच भटकते रहते हैं।
बता दें कि पितृपक्ष में मरे हुए लोगों के नाम से तर्पण करने से आत्मा को तृप्ति और शांति मिलती है। शिव पुराण, गरूड़ पुराण, कठोपनिषद् सहित कई ग्रंथों में मृत्यु और उसके बाद की होने वाली घटनाओं का वर्णन दिया गया है।
मौत से पहले बदलने लगता है शरीर का रंग
शिव पुराण के अनुसार प्राकृतिक मृत्यु की स्थिति में मृत्यु से कुछ समय पहले ही शरीर में कई तरह के लक्षण दिखने लगते हैं। शरीर का सफेद या पीला पड़ जाना, साथ ही आंखों में लाली नजर आना इस बात का संकेत है कि व्यक्ति का जीवन कुछ ही देर में समाप्त हो जाएगा।
चांद और सूरज दिखते हैं ऐसे…
प्राकृतिक मौत की अवस्था में मृत्यु से कुछ समय पहले इंसान को सूर्य और चंद्रमा के चारों तरफ काली रेखाएं दिखने लगती हैं। यही नहीं जब मनुष्य आग की लपटों को देखता है, तो उसमें से भी काली लपटें नजर आने लगती हैं। अगर ऐसा होता है तो ये मृत्यु के बेहद करीब होने का ही संकेत होता है। ऐसी स्थितियों में मनुष्य को सांसारिक माया मोह का त्याग कर अपनी संतानों को उत्तराधिकारी बनाकर खुद को ईश्वर को समर्पित कर देना चाहिए। कहा जाता है कि इससे मुक्ति की राह आसान हो जाती है।
बांया अंग फड़कना मतलब मृत्यु का सामने होना
जब मृत्यु बेहद करीब होता है, तो शरीर में अनेक प्रकार के परिवर्तन होने शुरू हो जाते हैं। कहा जाता है कि मृत्यु के करीब होने से पूरे शरीर में दर्द होता है और अंगड़ाई आने लगती है। यही नहीं तालु भी सूखने लगता है और शरीर का बांया हिस्सा फड़कने लगता है। ये सब इस बात का संकेत होता है कि आत्मा अब शरीर को छोड़कर जाना चाहती है। लिहाजा जब आत्मा नाभि चक्र को तोड़कर शरीर त्यागने लगती है, तो इससे आंख, नाक और कान की शक्तियां भी कम होने लगती हैं।
साया भी छोड़ देता है साथ
नाक की टिप पर देखने पर नाक का ना दिखना भी मृत्यु के करीब होने का संकेत माना गया है। मनुष्य के साथ जन्म से ही उसकी साया चलती है, लेकिन कहा जाता है कि जब मृत्यु करीब होती है तो साया भी साथ छोड़ देती है। जब मनुष्य को जल में, घी में, दर्पण में और तेल में अपनी साया न दिखे तो माना जाता है कि मृत्यु सम्मुख ही खड़ा है।