70 की उम्र में किन्नू की खेती कर लाखों कमा रहे चौधरी सुमेर राव, अमेरिका से भी आती है डिमांड
ये अपनी जिंदगी के छह दशक देख चुके हैं। नाम है इनका चौधरी सुमेर राव। इन्हें आराम करना जैसे पसंद ही नहीं है। चौधरी सुमेर राव ने एकदम हटकर एक काम को चुना और किन्नू की बागवानी शुरू कर दी। उन्होंने इसके लिए जमकर मेहनत की। इनकी मेहनत का ही नतीजा है जो आज ये हर साल 10 लाख रुपये से अधिक की कमाई कर रहे हैं। इनके किन्नू अमेरिका तक जाते हैं। राजस्थान के झुंझुनू जिले के सिंघाना कस्बे से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर बसे गांव घरड़ाना कलां में दिसंबर, 1950 में चौधरी सुमेर राव का जन्म हुआ था। सुमेर राव बचपन से ही बड़े मेहनती रहे हैं।
2014 में हुई शुरुआत
उन्होंने बताया कि वे श्री गंगानगर से 2014 में अपने एक दोस्त की मदद से सौ पौधे लेकर आए थे। उन्हें प्रति पौधे 30 रुपये की कीमत चुकानी पड़ी थी। अपनी दो बीघा जमीन में उन्होंने इन पौधों को रोप दिया था। आज उनके बगीचे में 500 पौधे लगे हुए हैं। इनमें से 200 पौधे किन्नू के हैं। वहीं डेढ़ सौ मौसमी एवं बाकी अन्य फलों के पौधे हैं।
शुरुआत में चौधरी को एक बड़ी समस्या का सामना करना पड़ा। उनके पौधे मुरझाने लगे थे। धीरे-धीरे ये खत्म होते जा रहे थे। ऐसे में चौधरी ने दिमाग लगाया। उन्होंने नीम के पत्ते और गोबर से जैविक खाद बना लिया। उन्होंने स्प्रे भी तैयार किया। यह जुगाड़ उनका काम कर गया। पौधे फिर से जीवित हो गए।
अन्य किसानों को ट्रेनिंग
अब चौधरी सुमेर राव किन्नू की पैदावार में पारंगत हो चुके हैं। वे अन्य किसानों से भी किन्नू की खेती करवा रहे हैं। चौधरी गुटी विधि से जो पौधे, खाद और स्प्रे तैयार करते हैं, उसे वे इन किसानों को भी उपलब्ध करवा रहे हैं। इन सबके लिए वे फीस भी लेते हैं। राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले में किन्नू की बागवानी होती है। चौधरी सुमेर राव को देखकर अब झुंझुनू में भी किसानों ने किन्नू की बागवानी शुरू कर दी है। चौधरी सूरजगढ़, सिंघाना और मंडावा में 200 से भी अधिक किसानों के किन्नू के बगीचे लगवा चुके हैं।
चौधरी ने 100 पौधे और 2 बीघा जमीन से अपने बगीचे की शुरुआत की थी। आज यहां जमकर किन्नू पैदा हो रहे हैं। खुदरा और थोक दोनों में इनकी बिक्री हो रही है। दिल्ली और जयपुर तो इनके किन्नू जाते ही हैं, अब अमेरिका में भी इनके किन्नू पहुंचने लगे हैं। इस साल भी अमेरिका से उन्हें बड़ा ऑर्डर मिलने की उम्मीद है। चौधरी के मुताबिक वे किन्नू बेचकर सालभर में 7 लाख रुपये कमा लेते हैं। पौधे, खाद और ट्रेनिंग आदि को मिला दिया जाए तो उनकी सालाना आमदनी 10 लाख रुपये से भी अधिक की है।
कैसे अलग हैं किन्नू और संतरे?
किन्नू और संतरे एक जैसे ही दिखते हैं। दोनों के फायदे भी लगभग एक समान ही हैं। हालांकि, संतरे की तुलना में किन्नू में रस ज्यादा होता है। संतरे का विदेशी रूप किन्नू को कहा जा सकता है। किन्नू थोड़ा गहरे रंग का होता है, जबकि संतरा हल्के नारंगी रंग का। संतरे का छिलका बहुत पतला होता है। वहीं, किन्नू का छिलका बहुत मोटा होता है।
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