अध्यात्म

1 सितंबर को है अनंत चतुर्दशी व्रत, इसे करने से होती है विष्णु लोक की प्राप्ति, जानें व्रत कथा

अनंत चतुर्दशी का व्रत 01 सितंबर को आ रहा है। इस व्रत को बेहद ही मंगलकारी व्रत माना जाता है। हर साल अनंत चतुर्दशी का व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आता है। अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है और अनंत चौदस की कथा सुनी जाती है। मान्यता है कि ये व्रत रखने से सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और हर कामना पूरी हो जाती है। इतना ही नहीं जो लोग लगातार 14 वर्षों तक ये व्रत करते हैं। उनको विष्णु लोक की प्राप्ति भी होती है। इसलिए आप ये व्रत जरूर करें।

अनंत चतुर्दशी का शुभ मुहूर्त

अनंत चतुर्दशी 1 सितंबर को है। पंडितों के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 31 अगस्त दिन सोमवार को सुबह 08 बजकर 49 मिनट से शुरू हो जाएगी। जो कि अगले दिन यानी 1 सितंबर को सुबह 09 बजकर 39 मिनट रहेगी। इसलिए ये व्रत 1 सितंबर को रखा जाएगा। साथ में ही इस व्रत की पूजा सुबह 09 बजकर 39 मिनट से पहले करनी होगी।

इस तरह से करें चतुर्दशी की पूजा

  • चतुर्दशी के दिन सुबह उठकर सबसे पहले स्नान कर लें। उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा घर को अच्छे से साफ कर दें।
  • विष्णु जी की चौकी स्थापित कर दें। इस चौकी पर लाल रंग का वस्त्र बिछा दें। उसके बाद इसे फूलों से सजा दें।
  • चौकी पर विष्णु जी के साथ मां लक्ष्मी जी कि फोटा या मूर्ति भी रख दें।
  • पूजा शुरू करते हुए सबसे पहले व्रत का संकल्प लें। संकल्प लेने हेतु आप थोड़ा सा जल अपने हाथ में लें और व्रत संकल्प का मंत्र पढ़ लें। जो कि इस प्रकार है  ‘ममाखिलपापक्षयपूर्वकशुभफलवृद्धये श्रीमदनन्तप्रीतिकामनया अनन्तव्रतमहं करिष्ये’।
  • अब आप भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष अनंत सूत्र, जिसमें 14 गांठें लगी हों, उसे रख दें। कच्चे सूत को हल्दी लगाकर अनंत सूत्र बनाया जाता है।
  • इसके बाद दीपक जला दें और पूजा करें। पूजा करते समय नमस्ते देव देवेश नमस्ते धरणीधर। नमस्ते सर्वनागेन्द्र नमस्ते पुरुषोत्तम।। मंत्र का जाप करे।
  • इसके बाद अनंत चतुर्दशी की कथा सुनें या विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करें।। कथा पुरी होने के बाद भगवान विष्णु की आरती करें।
  • आरती करने के बाद विष्णु जी के पास रखा गया अनंत सूत्र हाथ में बांध लें।

अनंत चतुर्दशी की कथा

एक तपस्वी ब्राह्मण हुआ करता था। जिसका नाम सुमंत था। सुमंत की एक पत्नी दीक्षा और सुशीला नामक कन्या थी। जब सुशीला बड़ी हुई तो उसकी मां दीक्षा की मृत्यु हो गई। जिसके बाद उनके पिता सुमंत ने कर्कशा नाम की स्त्री से विवाह कर लिया। वहीं कुछ सालों बाद सुमंत ने सुशीला का विवाह ऋषि कौंडिण्य के साथ करवा दिया। सुशीला को विदा करते हुए कर्कशा ने ऋषि कौंडिण्य को ईंट और पत्थर के टुकड़े बांध कर दे दिए। जिससे ऋषि कौडिण्य को बहुत बुरा लगा। घर जाते हुए रात हो गई और जंगल में सुशीला को नदी के तट पर कई स्त्रियां दिखाई दी। जो कि किसी देवता की पूजा कर रही थी। सुशीला इन स्त्रियों के पास चली जाती है और उनसे पूछती है कि वो क्या कर रही हैं। तब ये स्त्रियां उन्हें बताती है कि वो अनंत व्रत की पूजा कर रही है। इन स्त्रियों ने सुशील को पूजा करके चौदह गांठों वाला डोरा भी दे दिया। जिसे सुशीला हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिण्य के पास चले गई। सुशीला ने अपने पति को व्रत के बारे में भी बताया। जिससे की वो क्रोधित हो गए और उन्होंने उस धागे को तोड़ कर अग्नि में डाल दिया। ऐसा करने से भगवान अनंत का अपमान हुआ। परिणामस्वरुप ऋषि कौंडिण्य का जीवन कष्टों से भर गया और वो दुखी रहने लगे। वहीं एक दिन सुशीला ने अपने पति से कहा कि उनके द्वारा भगवान अनंत का अपमान किया गया था। जिसके कारण ये सब हो रहा है। अपनी पत्नी की बात सुनकर ऋषि कौंडिण्य को गलती का अहसास हुआ और वो भगवान विष्णु से क्षमा मांगने लग गए। वहीं एक दिन ऋषि कौंडिण्य को भगवान विष्णु ने दर्शन दिए और माफ कर दिया। साथ में ऋषि कौंडिण्य को 14 सालों तक अनंत व्रत रखने को कहा। जिसके बाद ऋषि कौंडिण्य ने अपनी पत्नी सुशीला के साथ मिलकर 14 साल तक ये व्रत किया। इस व्रत के चलते उनके जीवन में खुशियां फिर से वापस आ गई।

कहा जाता है कि जब पांडव जुए में अपना राज्य हारकर वन चले गए थे। तब उनको भगवान श्रीकृष्ण ने अनंत चतुर्दशी व्रत करने को कहा था। भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर पांडवों ने लगातार 14 सालों तक ये व्रत किया। इसी व्रत के कारण महाभारत युद्ध में पांडवों की विजय हुई। इसके अलावा सत्‍यवादी राजा हरिशचंद्र ने जब अपना राज्य खो दिया था। उसके बाद इनके द्वारा ये व्रत रखा गया। इस व्रत के कारण ही उन्हें अपना राज्य वापस मिला था।

इसलिए आप भी ये व्रत रखें और इस व्रत के दौरान फल और दूध का ही सेवन किया करें। हो सके तो 14 सालों तक ये व्रत लगाताक करें।

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