अध्यात्म

गणेश विसर्जन के लिए  शुभ चौघड़िया मुहूर्त, विसर्जन का महत्व एवं पूजा विधि

इस महूर्त पर करेंगे गणेश जी का विसर्जन तो घर में आएगी सुख शांति और समृद्धि

प्रथम पूज्य भगवान गणेश की 10 दिवसीय स्थापना के बाद 11वें दिन उनका विसर्जन किया जाता है। हिंदू धर्म में गणपति बप्पा के स्थापना और विसर्जन का काफी बड़ा महत्व है। खैर इस साल 2020 में भगवान गणेश की स्थापना 22 अगस्त को हुई थी और 10 दिनों बाद यानी 1 सितंबर को भगवान का विसर्जन किया जाएगा। बहरहाल अगर आप भी जानना चाहते हैं कि कब है गणेश विसर्जन का शुभ मुहूर्त और क्या है गणेश विसर्जन की पूजा विधि? तो चलिए हम आपको इस आर्टिकल में बताएंगे गणेश विसर्जन से संबंधित सभी जानकारी…

तिथि के अनुसार 1 सितंबर 2020 को अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति बप्पा का विसर्जन किया जाना है। बता दें कि 10 दिनों तक हर रोज सुबह-शाम भगवान गणेश की विधिवत पूजा की जाती  है और उनका मनपसंद भोग लगाया जाता  है। इसके बाद 11वें दिन पूरे विधि विधान से धूमधाम के साथ श्री गणेश का विसर्जन किया जाता है। साथ ही ये प्रार्थना की जाती है कि अगले वर्ष भगवान जल्दी आएं।

गणेश विसर्जन के लिए  शुभ चौघड़िया मुहूर्त

सुबह मुहूर्त : (चर, लाभ, अमृत) – सुबह 9 बजकर 10 मिनट से दोपहर 1 बजकर 56 मिनट तक (1 सितंबर 2020)

अपराह्न मुहूर्त : (शुभ) – दोपहर 3 बजकर 32 मिनट से शाम 5 बजकर 7 मिनट तक (1 सितंबर 2020)

सायं मुहूर्त : (लाभ) – 8 बजकर 7 मिनट से रात 9 बजकर 32 मिनट तक (1 सितंबर 2020)

रात्रि मुहूर्त : (शुभ, अमृत, चर)  –  रात 10 बजकर 56 मिनट से सुबह 3 बजकर 10 मिनट तक (1 सितंबर 2020 – 2 सितंबर 2020)

चतुर्दशी तिथि आरंभ – सुबह 8 बजकर 48 मिनट से (31 अगस्त 2020)

चतुर्दशी तिथि समाप्त – सुबह 9 बजकर 38 मिनट तक (1 सितंबर 2020)

गणेश विसर्जन का महत्व

गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की स्थापना का जितना महत्व है, उससे कहीं अधिक महत्व अनंत चतुर्दशी के दिन श्री गणेश के विसर्जन का होता है। बता दें कि गणेश चतुर्थी के दिन से ही भगवान भक्तों के घर पांच, सात या ग्यारह दिनों तक विराजमान होते हैं। और भक्त पूरे विधि विधान के साथ उनकी आराधना करते हैं। शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश की स्थापना कर उनकी विधिवत पूजा अर्चना करके विसर्जन करने से मनुष्य के कष्टों का निवारण होता है। साथ ही जीवन में सुख समृद्धि आती है।

गणेश विसर्जन पूजा विधि

1. भगवान गणेश का विसर्जन चतुर्दशी तिथि के दिन किया जाता है, विसर्जन से पहले श्री गणेश का तिलक करना काफी शुभ माना जाता है।

2. तिलक करने के बाद उन्हें फूलों का हार, फल, मोदक, लड्डू आदि चढ़ाए जाते हैं।

3. श्री गणेश के मंत्रों का उच्चारण किया जाता है और उनकी आरती की जाती है।

4. इसके बाद भगवान को जो भी चीज पूजा में चढ़ाई जाती है, उसे एक पोटली में बांध दिया जाता है।

5. इस पोटली में सामानों के साथ एक सिक्का जरूर रखना चाहिए। और इस पोटली को भगवान गणेश के साथ विसर्जित करना चाहिए।

गणेश विसर्जन की कथा

पौराणिक कथाओं की मानें तो भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी तिथि यानी गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक श्री वेदव्यास जी ने भगवान गणेश को महाभारत की कथा सुनाई थी, इस कथा को श्री गणेश लगातार लिखते रहे। 10 दिन बाद जब महर्षि वेदव्यास जी ने अपनी आंखें खोलीं, तो भगवान गणेश का शरीर बहुत गर्म हो गया था। इसके बाद वेदव्यास ने पास के एक सरोवर के जल से गणेश जी के शरीर को ठंडा किया। यही वजह है कि भगवान गणेश को 10 दिनों बाद चतुर्दशी तिथि को जल में प्रवाहित किया जाता है।

कथा के अनुसार महर्षि वेदव्यास जी ने सुगंधित मिट्टी से भगवान का लेप भी किया था, ताकि तापमान और अधिक न बढ़े। इसके बाद जब यह मिट्टी का लेप सूखा, तो श्री गणेश का शरीर अकड़ गया था और फिर मिट्टी भी झड़ने लगी थी, इसके बाद उन्हें सरोवर के पानी में ले जाकर शीतल किया गया था। कहा जाता है कि उन दस दिनों में वेदव्यास जी ने भगवान को उनका मनपसंद खाना खिलाया था, यही वजह है कि गणेश उत्सव में दस दिनों तक गणेश जी के पसंद का भोजन भोग लगाया  जाता  है।

एक अन्य कथा के अनुसार चतुर्थी तिथि पर जब भगवान गणेश की स्थापना की जाती है, तो इस समय भगवान के कान में उनके भक्त अपनी मनोकामनाएं कहते हैं, इन मनोकामनाओं को सुनकर गणेश जी का तापमान बढ़ जाता है। इसी तापमान को कम करने के लिए उन्हें जल में प्रवाहित किया जाता है। इसके साथ एक दूसरी मान्यता यह भी है कि ईश्वर को कोई बांधकर नहीं रख सकता है।

एक दूसरी मान्यता ये भी है कि जब भक्त गणेश चतुर्थी पर भगवान को विराजित करते हैं, तो उन्हें भूलोक ले आते हैं। जबकि उनका स्थान स्वर्गलोक है। यही वजह है कि भगवान को चतुर्दशी तिथि पर विसर्जित कर उन्हें स्वर्ग लोक भेज दिया जाता है। ताकि वो स्वर्गलोक जाकर अन्य देवी देवताओं को बता सकें कि भूलोक का क्या हाल है।

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