रावण संहिता में लिखे इन मंत्रों को पढ़ने से खुल जाता है धन प्राप्ति का मार्ग, जानें जाप विधि
रावण संहिता में बेहद ही ताकतवर मंत्रों का उल्लेख किया गया है और जो लोग इन मंंत्रों का जाप करते हैं, उन लोगों का भाग्य चमक जाता है। रावण संहिता को रावण द्वारा लिखा गया था और इसमें रावण ने अनगिनत मंत्रों को लिखा है। कथाओं के अनुसार रावण ने रावण संहिता में लिखे गए मंत्रों का जाप करके ही भगवान शिव को प्रसन्न किया था।
आज हम आपको रावण संहिता में लिखे गए कुछ मंत्रों के बारे में बताने जा रहे हैं। इन मंत्रों का जाप करने से किसी की भी किस्मत खुल सकती है। इसलिए आप इन मंत्रों का जाप जरूर करें।
कुबरे देवता को प्रसन्न करने का मंत्र
कुबरे को धन का देवता कहा जाता है और मान्यता है कि कुबरे देवता की कृपा जिन लोगों पर बन जाती है, उनका भाग्य चमक जाता है।कुबरे देवता को प्रसन्न करने के लिए आप ‘ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवाणाय, धन धन्याधिपतये धन धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।’ मंत्र का जाप करें। इस मंत्र का जाप करते हुए सबसे पहले अपने पास एक कौड़ी रखें लें। तीन महीने तक इस मंत्र का जाप करें और तीन महीने बाद कौड़ी को उस स्थान पर रख दें जहां आप अपना धन रखते हैं।
बंद मार्गों को खोलने के लिए
धन प्राप्ति के मार्गों को खोलने के लिए आप प्रातःकाल ‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नम: ध्व: ध्व: स्वाहा’ मंत्र का जाप करें। इस मंत्र को 1100 बार पढ़ें। मंत्र पढ़ने से पहले स्नान जरूर करें। उसके बाद किसी बड़गद के पेड़ के नीचे आसन बिछाकर ये मंत्र पढ़ लें। जप के लिए रुद्राक्ष की माला का ही उपायोग करें। ये मंत्र 21 दिनों तक पढ़ें।
मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए
मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए ‘ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी, महासरस्वती ममगृहे आगच्छ-आगच्छ ह्रीं नम:।’ मंत्र का जाप करें। ये मंत्र आप अक्षय तृतीया और दीपावली की रात को पढ़ें।
धन-दौलत बढ़ाने के लिए
अपनी धन दौलत बढ़ाने के लिए ‘ॐ नमो विघ्नविनाशाय निधि दर्शन कुरु कुरु स्वाहा।’ मंत्र का जाप करें। रावण द्वारा लिखे गए इस मंत्र का जाप करने से धन में वृद्धि होने लग जाती है और धन हानि होना बंद हो जाती है। इस मंत्र का जाप आप दस हजार बार करें।
आमदनी बढ़ाने के लिए जपें यह मंत्र
अपनी आय बढ़ाने के लिए संध्या के समय ‘ॐ सरस्वती ईश्वरी भगवती माता क्रां क्लीं, श्रीं श्रीं मम धनं देहि फट् स्वाहा।’ मंत्र का जाप करें। इस मंत्र को 40 दिनों तक पढ़ें। ऐसा करने से आपकी आय में वृद्धि होने लग जाएगी।
शिव जी को प्रसन्न करने के लिए
शिव जी को प्रसन्न करने के लिए नीचे बताए गए स्तोत्र –
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥
धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥
जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥
ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम् ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥
कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥
नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥
प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥
अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम्॥13॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥15॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥