पार्थ पवार की सुशांत केस में CBI जांच की मांग के बाद बौखलाई शिवसेना, कहा – राजनीति में…
आखिर किसे बचाना चाह रही है शिवसेना? क्या बेबी पेंगुइन का भी इस केस से है कनेक्शन?
एनसीपी नेता शरद पवार के पौते पार्थ पवार ने कुछ समय पहले सुशांत सिंह राजपूत केस में महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख को लेटर लिख सीबीआई जांच की मांग की थी। अब शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में पार्थ को नसीहत दे डाली। उन्होने अपने संपादकीय में कहा कि पार्थ पवार सोशल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं, इन विचारों पर हमेशा इतना ध्यान दिया जाए यह जरूरी नहीं है। यह बस उनके कुछ विचार हैं जो इतने महत्वपूर्ण नहीं है। मीडिया चैनल इसे मिर्च मसाला लगा बस तूफान खड़ा कर रहे हैं।
पार्थ ने सुशांत केस की सीबीआई जांच का पत्र गृह मंत्री अनिल देशमुख को भेजा। फिर कुछ समय पहले अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन समारोह में शुभकामना वाला पत्र भेज राम नाम का जप किया। इस पर शरद पवार ने भी साफ शब्दों में कहा है ‘मेरे पोते की बात को ज्यादा महत्व मत दो. वो अपरिपक्व है!’ शरद पवार ने अपने राजनीतिक कर्तव्य को निभाया और पोते का मार्गदर्शन किया। उन्होने यह संदेश दिया कि ‘बिना वजह हर मामले में दखल देने की जरूरत नहीं है।’ हालांकि टीवी चैनलों ये दिखाना शुरू कर दिया कि पवार परिवार में कुछ ठीक नहीं चल रहा है, अजीत पवार को भी वार्निंग मिली है, लेकिन यह सब बातें निरर्थक हैं।
सुशांत केस में सीबीआई जांच की मांग बस मूर्खता है। ये सीबीआई की आड़ में महाराष्ट्र के स्वाभिमान और अस्मिता को हानी पहुँचने की एक साजिश है। इसलिए शंका है कि कहीं कम उम्र के पार्थ पवार का कोई इस्तेमाल तो नहीं कर रहा? इंसान की जीभ पर काबू न रहे तो वो कई फटके खाता है। अजीत पवार संग भी ऐसा ही हुआ। वे खुद भी यह बोल चुके हैं कि मैं अब बहुत नापतोल के बोलता हूं। हालांकि पार्थ थोड़े नए हैं इस कारण वेग में आकार बोलने लगते हैं। फिर इस पर लोगों के रिएक्शन आते हैं और यही चीज विवाद भी खड़ा कर देती है।
हालांकि इस विवाद को शरद पवार ने कब का शांत कर दिया है। उन्होने कहा है कि मुंबई पुलिस सुशांत सिंह राजपूत केस की जांच करने में सक्षम है। गृह मंत्री अनिल देशमुख ने भी साफ किया कि शरद पवार को मुंबई पुलिस पर विश्वास है। सुशांत केस में सीबीआई जांच तो ठीक है, लेकिन पहले ये बताओ कि मुंबई पुलिस से गलती कहां हुई? जब पार्थ पवार ने सीधा सीबीआई जांच की मांग की तो यह बात कईयों को खटक गई और उन्होने इस मामले पर ब्रेक लगा दिया। लेकिन इसमें इतना हो हल्ला करने की क्या जरूरत है?
शरद पवार अपने पोते पार्थ पवार के मार्गदर्शक रहे हैं। पार्थ ने लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए। एक जीत या हार आपको न तो शिखर पर ले जाती है और न ही नीचे लाती है। शरद पवार आजीवन लोगों के बीच रहे और जमीनी राजनीति करते रहे। अब उनके बेटे अजीत पवार और सुप्रिया सुले भी ऐसा ही कर रहे हैं। ऐसे में उनकी तीसरी पीढ़ी भी यदि इसी रास्ते पर चले तो कौन सा तूफान खड़ा हो जाएगा।
पार्थ पवार ने राम मंदिर का स्वागत किया जिसमें कुछ गलत नहीं है। ये काम सर्वोच्च न्यायालय की अनुमति से हुआ है। यह मामला एक जनभवना से भी जुड़ा है जिसमें पार्थ ने भी अपने विचार व्यक्त किए थे। पार्थ जिस पार्टी से जुड़े हैं उससे विचार अलग होने पर मतभिन्नता होती है। राहुल और प्रियंका गांधी के साथ भी ऐसा हो चुका है। सीएम उद्धव ठाकरे ने जब अयोध्या दौरा किया था तो कांग्रेस ने इस पर आपत्ति नहीं जताई थी।
राजनीति में नए होने के कारण पार्थ पवार ऊंची कूद न लगा सके। अभी उन्हें थोड़ी मेहनत और करनी पड़ेगी। वे अपने राजनीतिक परिवार से ही बहुत कुछ सीख सकते हैं। दादाजी शरद पवार की सलाह को यदि वे आशीर्वाद के रूप में स्वीकार करें तो उनका मानसिक तनाव कम होगा। जिसके हाथ में पार्टी की लगाम होती है उसे कई बार कड़वा बोलना पड़ता है। खुद शिवसेना प्रमुख ने कई बार अपनों के साथ ऐसा किया है। यहां तक कि महात्मा गांधी, नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और प्रधानमंत्री मोदी ने भी वक्त वक्त पर अपनों को कड़वे बोल के साथ समझाईश दी है। ये पार्टी की सेहत के लिए अच्छी होती है। बड़ो को ऐसा करना पड़ता है। शरद पवार ने भी ऐसा ही किया है।