आज रात 12 बजे इस तरह से करें बाल गोपाल की पूजा, फॉलो करें पूजा करने के ये आसान स्टेप्स
आज कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व है और इस पर्व को धूमधाम से मनाया जा रहा है। गर्ग संहिता और श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि की आधी रात में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। हर साल इस तिथि के दिन जन्माष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन देश के बड़े मंदिरों को सुंदर तरह से सजाया जाता है और लोग रात 12 बजे मंदिर जाकर कृष्ण जी के दर्शन करते हैं। हालांकि इस साल कोरोना के कारण कई सारे मंदिरो को बंद ही रखा गया है और लोगों को इन मंदिरों में आने की अनुमति नहीं है। इसलिए इस वर्ष लोगों को अपने घर में ही ये पर्व मनाना होगा।
घर में रात के 12 बजे कैसे कृष्ण जी की पूजा की जाए और पूजा करते समय उन्हें क्या अर्पित किया जाए? इस चीज की जानकारी हम आपको देने वाले हैं। ताकि आप रात 12 बजे आसानी से अपने घर में कृष्ण जी की पूजा कर सकें
इस तरह से घर में करें कृष्ण जी की पूजा
- सुबह जल्दी उठकर मंदिर की सफाई कर दें और मंदिर को अच्छे से सजाएं। मंदिर में कृष्ण जी के बाल रुप की मूर्ति रख दें।
- कृष्ण जी की पूजा करें और पूजा करते समय हाथ में पानी, फूल और चावल ले लें। इन चीजों को हाथ पर रखते हुए पूजा और व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद मंदिर में धूप-दीप जलाएं।
- रात को 12 बजे फिर से कृष्ण जी की पूजा करें।
- शुभ मुहूर्त के दौरान कृष्ण जी के बाल रुप का सबसे पहले स्नान करवाएं और क्लीं कृष्णाय नम: मंत्र का जाप करें।
- मंत्र का जाप करते हुए श्रीकृष्ण की मूर्ति पर पंचामृत डालें। इससे बाद फिर से उनपर जल अर्पित करें।
- इसके बाद कृष्ण जी को वस्त्र और आभूषण पहनाएं।
- चंदन, चावल, अबीर, गुलाल, अष्टगंध, फूल, इत्र, जनेउ और तुलसी कृष्ण जी को चढ़ाएं और धूप-दीप जलाएं दे।
- कृष्ण जी को माखन-मिश्री का भोग लगाएं। इसके बाद पान चढ़ाकर दक्षिणा अर्पित करें।
- ऊँ कृष्णाय गोविन्दाय नमो नम: मंत्र का जाप करें और कर्पूर जला कृष्ण जी की आरती करें। आरती के बाद परिक्रमा करें।
श्रीकृष्ण की आरती
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की