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IPS विनय तिवारी: संघर्ष को ही बनाया रास्ता, UPSC में यूं लहराया सफलता का परचम

बिहार के आईपीएस अधिकारी विनय तिवारी इस वक्त सुर्खियां बटोर रहे हैं। सुशांत सिंह राजपूत मामले की जांच करने के लिए मुंबई पहुंचने के बाद उन्हें वहां क्वारंटाइन कर दिया गया था, जिसे लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया था। विनय तिवारी को क्वारंटाइन से मुक्त किया जा चुका है और वे बिहार लौट चुके हैं।

अब ऐसी खबरें सामने आ रही हैं कि विनय तिवारी को डेपुटेशन पर सीबीआई में भेजा जा सकता है। विनय तिवारी सोशल मीडिया में सुर्खियां बटोर रहे हैं, लेकिन विनय तिवारी कितने संघर्ष की बदौलत इस मुकाम तक पहुंचे हैं, इसकी जानकारी बहुत ही कम लोगों को होगी।

विनय तिवारी बुंदेलखंड के ललितपुर के रहने वाले हैं। वही बुंदेलखंड जो कि सूखाग्रस्त क्षेत्र के तौर पर जाना जाता है और जहां किसान परिवार की जिंदगी हमेशा संघर्ष के बीच से गुजरती है। विनय तिवारी भी एक ऐसे ही परिवार से नाता रखते हैं।

पिता के मार्गदर्शन में गुजरा बचपन

ज़िंदगी विनय तिवारी की बचपन से ही आसान नहीं रही, लेकिन पिता हमेशा कहते थे कि त्याग को अपनाओ। विनय तिवारी के मुताबिक उनके पिता उनसे कहते थे कि मेहनत बस करते जाओ। कुछ अच्छा ही मिलेगा। इससे कम तो मिलने वाला है नहीं, क्योंकि इस लायक तो तुम हमेशा हो।

विनय तिवारी के पिता ने ऋण लिया और आईआईटी की तैयारी करने के लिए उन्हें कोटा भेज दिया। यहां विनय तिवारी ने जमकर मेहनत करनी शुरू कर दी, क्योंकि उन्हें मालूम था कि उनके पिता ने किस तरह से कर्ज लेकर उनकी तैयारी का इंतजाम किया है। अब तक हिंदी माध्यम से पढ़ाई की थी, मगर अब अंग्रेजी माध्यम में सब पढ़ना पड़ रहा था।

विनय तिवारी बताते हैं कि पिता का संघर्ष हमेशा याद रहता था। इसलिए शनिवार को जब मेस बंद रहता था तो उस दिन एक समोसा ही रात के भोजन के तौर पर खा लेते थे। हालांकि बीच में कुछ कॉलेजों की तरफ विनय तिवारी आकर्षित हो गए और वहां 2 से 3 महीने बिताए, लेकिन उन्हें बहुत जल्द अपनी गलती का एहसास हो गया और वहां से वे लौट गए।

पहुंचे IIT-BHU

विनय तिवारी ने घर पर ही जमकर तैयारी की। आईआईटी-बीएचयू पहुंच गए। यहां उन्होंने सफलतापूर्वक अपनी पढ़ाई पूरी की। अब संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी करने का निश्चय उन्होंने कर लिया। आईआईटी-बीएचयू से एक अच्छी नौकरी उन्हें मिल गई थी। नौकरी करते हुए यूपीएससी की तैयारी करना मुश्किल तो बहुत था, लेकिन वे इसके लिए तैयार थे।

हालांकि, विनय तिवारी के मुताबिक उनके पिता ने फिर से उन्हें कहा कि त्याग करोगे तो अच्छा ही पाओगे। जो सपना देखा है उसे पूरा करने की कोशिश पूरे मन से करनी पड़ेगी। इसलिए विनय तिवारी इसके बाद यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली पहुंच गए। गणित और भौतिक विज्ञान विषय उन्होंने ले लिया। मित्रों ने बोला कि यह उचित नहीं है। फिर भी विनय तिवारी अपने निर्णय पर अडिग रहे। फिर अचानक पाठ्यक्रम में बदलाव हो गया। अब एक वैकल्पिक विषय को चुनना था। आंख बंद करके जिस किताब पर उन्होंने हाथ रखा, वह गणित की किताब थी।

विनय तिवारी का ध्यान एक बार फिर भटका। इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा के लिए उन्होंने 28 दिनों में जमकर तैयारी की थी और उसमें 50वां रैंक भी पाया था। हालांकि, वे सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा भी दे चुके थे। पहला प्रयास उनका नाकामयाब रहा। विनय तिवारी के मुताबिक उनके पिता ने उनसे यही कहा कि दुनिया की सबसे कठिन परीक्षा है ये। पहली कोशिश में कामयाबी नहीं मिलती। परीक्षा देते रहो। अगली कोशिश में सफल हो जाओगे।

अबकी मिली कामयाबी

सिविल इंजीनियरिंग लेकर उन्होंने फिर से यूपीएससी की तैयारी की। निबंध लिखने का भी जमकर अभ्यास किया। प्रारंभिक परीक्षा में चयन हो गया। मुख्य परीक्षा के लिए दो महीने का वक्त बचा था। विनय तिवारी दिल्ली में एक सस्ता किराए का कमरा ढूंढ रहे थे। ऐसे में आईआईटी-बीएचयू के सीनियर और रेलवे में बड़े अधिकारी त्रिलोक बंसल का सहयोग मिला।

आखिरकार विनय तिवारी को मुख्य परीक्षा में कामयाबी मिली। इसके बाद उन्होंने अपने अंदर के डर को दूर भगाया। याद किया कि कैसे 28 दिनों की तैयारी में इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा में 50वां स्थान पाया था। विनय ने इंटरव्यू दिया। फिर रिजल्ट आया और 193 रैंक हासिल हो गया।

विनय तिवारी की अपनी मेहनत, उनके पिता का संघर्ष और मां का हर सोमवार को व्रत रखना सब सफल हो गया। विनय तिवारी के मुताबिक दादा से मिली अनुशासन की सीख भी बड़ी काम आई। सिर्फ 14 साल की उम्र में दामोदर एक्सप्रेस में बैठकर आईआईटी की तैयारी के लिए कोटा निकलने वाले विनय तिवारी अब 23 वर्ष की उम्र में भारतीय पुलिस सेवा का चिन्ह कंधे पर लगाकर प्रशिक्षण के लिए निकल रहे थे। और भी बड़ी चुनौतियां व दायित्व अब उनके इंतजार में थी।

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