देवकी-यशोदा के अलावा श्रीकृष्ण जी की तीन और थीं माताएं, यह रहस्य नहीं जानते होंगे आप
शास्त्रों-पुराणों के अनुसार देखा जाए तो भगवान विष्णु जी का आठवां अवतार भगवान कृष्ण जी थे। जब-जब धरती पर दुष्टजनों ने किसी भी प्रकार की हानि पहुंचाने की कोशिश की है, तब-तब भगवान विष्णु जी किसी ना किसी रूप में धरती पर आए हैं, और पापियों का नाश करके सृष्टि की रक्षा की है। विष्णुजी का आठवां अवतार श्री कृष्ण जी संसार के सभी दुखों को हरने वाला माना गया है। कृष्ण जी ने गीता के रूप में बहुत सी ज्ञान की बातें बताईं हैं। भगवान कृष्ण जी के सिर पर मोर मुकुट, होठों पर मुरली श्री कृष्ण जी के जीवन की संपूर्ण कलाओं से भरा हुआ है। श्री कृष्ण जी ने पृथ्वी पर मानव कल्याण के लिए जन्म लिया था और इन्होंने हर किसी की मनोकामना पूरी की थी। जब कृष्णजी बाल अवस्था में थे तब इन्होंने बहुत सी लीलाएं की थीं। उन्होंने अपनी लीलाओं से हर किसी का मन मोह लिया था।
आज हम आपको जन्माष्टमी के पावन पर्व पर भगवान कृष्ण जी की पांच माताओं के बारे में जानकारी देने वाले हैं। आप सभी लोग भगवान श्रीकृष्ण जी की माता देवकी और यशोदा के बारे में तो जानते ही हैं, लेकिन बहुत कम लोग होंगे जिनको इस बात का पता होगा कि श्रीकृष्ण जी की कुल 5 माताएं थीं। जी हां, देवकी-यशोदा के अलावा भी इनकी तीन और माताएं थीं, जिनको कृष्ण जी ने मां का दर्जा दिया था।
देवकी
जैसा कि हम सभी लोग जानते हैं कि भगवान कृष्ण जी देवकी और वासुदेव जी के पुत्र थे। देवकी भगवान कृष्ण जी की सगी मां थीं। देवकी माता की कोख से कृष्ण जी का जन्म भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को मथुरा की जेल में हुआ था।
यशोदा
भले ही भगवान कृष्ण जी देवकी माता के पुत्र थे, परंतु सगी मां से भी बढ़कर लालन-पोषण माता यशोदा जी ने किया था। यशोदा माता भगवान कृष्ण जी को बहुत ज्यादा प्रेम करतीं थीं। एक बार बाल रूप में भगवान कृष्ण जी को मिट्टी खाते हुए यशोदा माता ने पकड़ लिया था। यशोदा माता ने कहा कि कान्हा तुम अपना मुंह खोलो, तुमने मिट्टी खाई है। भगवान कृष्ण जी ने अपना मुंह खोलकर यशोदा माता को ब्रह्मांड के दर्शन करा दिए थे।
रोहिणी
आप लोगों में से बहुत कम लोग होंगे जिनको इस बात की जानकारी होगी कि भगवान कृष्ण जी के पिता वासुदेव की पहली पत्नी रोहिणी उनकी सौतेली मां थीं। देवकी की सातवीं संतान को रोहिणी के गर्भ में रख दिया था, जिससे बलराम जी ने जन्म लिया था। रोहिणी अपने पुत्र-पुत्रियों के साथ माता यशोदा के यहां ही रहा करतीं थीं
गुरुमाता
शास्त्रों के अनुसार देखा जाए तो गुरु की पत्नी को भी माता का दर्जा दिया गया है। आपको बता दें कि भगवान कृष्ण जी, बलराम और सुदामा के गुरु ऋषि सांदीपनि के पुत्र को शंखासुर नामक राक्षस ने अपने कब्जे में ले लिया था। तब गुरुमाता ने गुरु दक्षिणा में भगवान कृष्ण जी से अपने पुत्र को मांगा था। तब भगवान कृष्ण जी ने उनके पुत्र को शंखासुर राक्षस के कब्जे से छुड़ाकर उनको वापस लौटा दिया था। अपने पुत्र को देखकर गुरुमाता अत्यधिक प्रसन्न हुईं थीं। तब इन्होंने भगवान कृष्ण जी को यह आशीर्वाद दिया था कि तुम्हारी माता तुमसे कभी भी दूर नहीं जाएगी।
राक्षसी पूतना
भगवान कृष्ण जी को मारने के लिए कंस ने पूतना को भेजा था। पूतना ने भगवान कृष्ण जी को मारने के लिए अपने स्तनों पर भयंकर विष लगा लिया था, ताकि जब श्री कृष्ण जी को वह दूध पिलाएं, तब साथ में जहर भी उनके शरीर में प्रवेश कर जाए, जिससे कृष्ण जी की जान चली जाए। लेकिन पूतना का यह सोचना बिल्कुल गलत था। जब पूतना भगवान कृष्ण जी को अपना दूध पिला रही थी तब कृष्ण जी दूध के साथ-साथ उसका खून भी पी गए थे, जिससे पूतना मर गई थी। जब पूतना का अंतिम संस्कार किया जा रहा था तो पूरे वातावरण में चंदन की खुशबू फैल गई थी। भगवान कृष्ण जी ने पूतना को मां का दर्जा देकर मुक्ति प्रदान की थी।