हनुमान चालीसा पढ़ने के इस गुप्त तरीक से नष्ट हो जाती है समस्त वाधाएं, चमक जाती है किस्मत
हनुमान जी की पूजा करने से किसी भी प्रकार का रोग आपको नहीं लगता है। मान्यता है कि हनुमान जी की पूजा जो लोग करते हैं उनकी रक्षा खुद हनुमान जी करते हैं। हनुमान जी को मंगलवार का दिन समर्पित है। अगर इस दिन हनुमान की पूजा कर ली जाए, तो जीवन की हर बाधा दूर हो जाती है। हनुमान की पूजा करते समय हनुमान चालीसा का पाठ भी जरूर करना चाहिए। वहीं आज हम आपको ऐसे सरल टोटके बताने जा रहे हैं, जिनके तहत अगर आप मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ कर लें, तो आपकी हर परेशानी दूर हो जाएगी।
मंगलवार के दिन इस तरह से करें हनुमान चालीसा का पाठ –
- हनुमान चालीसा का पाठ करते समय अपने पास नारियल और सिंदूर रख लें। पाठ को शुरू करने से पहले एक दीपक जला दें। फिर नारियल और सिंदूर को हनुमाम जी को अर्पित कर दें। इसके बाद हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर दें। मंगलवार को आप ये पाठ कम से कम 11 बार पढ़ें। आपकी परेशानी का हल निकल आएगा। वहीं अगर परेशानी काफी बढ़ी है तो आप इसका पाठ 108 बार करें।
2. पैसे को लेकर अगर कोई समस्या है तो इस टोटके को करें। इसके तहत आप मंगलवार के दिन चन्दन को केले के पेड़ पर बांध दे। इसे बांधने के लिए केवल पीले धागे का प्रयोग करें। ये उपाय करने के बाद मंदिर जाकर हनुमाम चालीसा का पाठ भी जरूर करें। ये उपाय सिर्फ मंगलवार, शनिवार या फिर हनुमान जयंती के दिन ही करें।
3. शास्त्रों के अनुसार हनुमान शिव जी के अंश है और ये इनके 11 वें रुद्र अवतार माने जाते हैं। इसलिए मंगलवार को आप हनुमान चालीसा पढ़ने के बाद शिव की पूजा भी करें।
4. एक चौकी पर आप लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछा दें। इसके बाद आप उस पर हनुमान जी की मूर्ति या फोटो स्थापित कर लें। अब आप 5 लौंग ले और इसे देशी कपूर में डाल दें। इस कपूर को जला दें और हनुमान चालीसा का पाठ शुरू कर दें। पूरे दिन कम से कम 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। ये उपाय करने से मन चाही चीज प्राप्त हो जाएगी। वहीं अगर आप किसी काम के लिए घर से बाहर जा रहे हैं। तो माथे पर देशी कपूर की भस्म लगा लें। कार्य पूरा हो जाएगा।
हनुमान चालीसा इस प्रकार है –
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई :
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।
दोहा
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।