बचपन से लेकर जवानी तक सिर्फ गम मे गुजरी थी मीना की जिंदगी, अंत समय में ऐसी हो गई थी हालत
मीना कुमारी ने जिंदगी में गम इतने ज्यादा देखे थे कि जब उन्हें मौत आई तो ऐसा लगा कि उनकी रुह को दर्द से आजादी मिल गई
हां, कोई और होगा तूने जो देखा होगा
हम नहीं आग से बच बचके गुजरने वाले
न इंतजार, ना आहट, न तमन्ना, न उम्मीद
जिंदगी है कि यूं बेहिस हुई जाती है….
अपने जिंदगी के गम को शब्दों में पिरो कर शायरी का रुप देने वाली ये अदाकारा थीं मीना कुमारी जिसे दुनिया ट्रेजेडी क्वीन के नाम से जानती है। 1 अगस्त 1933 में जन्मीं मीना कुमारी आज इस दुनिया में नहीं हैं। मीना अपने जमाने की सबसे बेहतरीन अदाकाराओं में से एक मानी जाती थीं। उन्होंने शोहरत देखी, बुलंदी देखी और चाहने वालों का पागलपन भी देखा, लेकिन उनकी जिंदगी से गम ने कभी पीछा ही नहीं छोड़ा। बचपन से लेकर मरते दम तक दुख उनकी जिंदगी का हिस्सा रहा और शायद इसलिए उन्हें बॉलीवुड ने नाम दिया ट्रेजेडी क्वीन। आज उनके जन्मदिन के मौके पर आपको बताते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से।
बचपन में अनाथालय छोड़ आए थे पिता
मीना कुमारी के बचपन का नाम महजबीं बानों था। बताया जाता है कि जब महजबी का जन्म हुआ तो उनके पिता उन्हें एक अनाथालय में छोड़ आए थे क्योंकि उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वो एक लड़की को पाल सके। अनाथालय की सीढ़ियों पर अपनी नन्ही सी बच्ची को छोड़कर वो जब आगे बढ़े तो उसके बिलखते आसुओं ने पिता के पांव रोक दिए। अपनी बेटी के रोने का गम पिता बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्हें उठाकर घर ले आए।
महजबीं जब छोटी थी तभी से उन्होंने फिल्मों में काम करना शुरु कर दिया था ताकी घर का खर्च चल सके। उन्होंने वर्ष 1939 में बाल कलाकार के तौर पर करियर की शुरुआत की थी। वो पहली बार विजय भतरु की फिल्म ‘लेदरफेस’ में दिखाई दी थी। हालांकि मीना कुमारी को असली सफलता मिली फिल्म ‘बैजू बावरा’ से। इसके बाद मीना फिल्मों में अपना करियर बनाने लगीं और छोटी सी महजबी मीना कुमारी बन गईं।
हिट फिल्म कर कहलाईं ट्रेजेडी क्वीन
अपनी फिल्मी सफर में उनकी जोड़ी सबसे ज्यादा अशोक कुमार के साथ जमीं। दर्शको को मीना और अशोक की जोड़ी पर्दे पर पसंद आती थी। अपनी अदाकारी से मीना कुमारी ने 4 बार फिल्मफेयर में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अवॉर्ड जीता। मीना ने अपने करियर में एक से बढ़कर एक फिल्में की जिसमें ‘साहिब बीबी और गुलाम’, ‘दिल अपना प्रीत परायी’, ‘काजल’, ‘कोहीनूर’, ‘मझली दीदी’ जैसी फिल्में शामिल हैं।
मीना का फिल्मी करियर तो अच्छा चल रहा था लेकिन निजी जिंदगी में एक अजीब उधेड़बुन जारी थी। मीना कुमारी को निर्देशक कमाल अमरोही ने फिल्म ‘अनारकली’ के लिए साइन किया था। हालांकि कम बजट के चलत ये फिल्म पूरी नहीं हो पाई। इसी दौरान मीना कुमारी को चोट लग गई और उन्हें अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। अपनी हीरोइन को घायल देख कमाल उनसे मिलने अस्पताल पहुंचे। मीना की छोटी बहन ने कहा कि आपा तो जूस ही नहीं पी रही, लेकिन मीना ने जैसे ही कमाल को देखा एक झटके में जूस पी लिया। इसके बाद से कमाल हर हफ्ते मीना कुमारी को देखने मुंबई से पूना आने लगे।
मोहब्बत में भी नहीं नसीब हुआ सुकून
कमाल और मीना के बीच नजदीकियां बढ़ रही थीं। दोनों एक दूसरे को खत लिखने लगे थे। हालांकि ये बात मीना कुमारी के पिता को अच्छी नहीं लगती थी। कमाल पहले से दो शादी कर चुके थे और उनके तीन बच्चे भी थे, लेकिन मीना को इन सारी बातों से फर्क नहीं पड़ता था। एक्सीडेंट के बाद मीना अपनी बहन के साथ वॉर्डन रोड पर स्थित एक मसाज क्लिनिक पर रोज जाती थीं। उनके पिता कार से दो घंटे के लिए उन्हें छोड़ने जाया करते थे. 14 फरवरी 1952 को दोनों बहने पिता के छोड़ने के बाद कमाल अमरोही के पास पहुंची। वहां काजी पहले से तैयार थे। उन्होंने पहले सुन्नी रवायत से फिर शिया रवायत से निकाह करवाया और इस तरह कमाल और मीना की शादी हो गई।शादी के वक्त मीना 19 की थीं और कमाल 34 के।
हालांकि ये खुशियां मीना की जिंदगी में ज्यादा दिनों तक नहीं टिकी रही। कमाल अमरोही मीना से बेहद प्यार करते थे, लेकिन उन्हें गुस्सा बहुत आता था। वो मीना को लेकर इस कदर दीवाने थे कि उनके मेकअप रुम में किसी गैर मर्द को जाने की इजाजत तक नहीं दी गई थी। कहा जाता है कि शादी के कुछ समय बाद ही इनके रिश्ते में दरार आनी शुरु हो गई।
कमाल से दूर हो गईं मीना कुमारी
एक खबर के मुताबिक 1964 में आई फिल्म ‘पिंजड़े के पंक्षी’ के मुहर्त के समय मीना कुमारी ने राइटर-डायरेक्टर गुलजार को अपने मेकअप रुम में आने की इजाजत दे दी थी। इस बात से खफा होकर कमाल के असिस्टेंट बकर अली ने मीना को थप्पड़ जड दिया था। इसके बाद से मीना ने बकर से कमाल को बता देने के लिए कहा कि वो आज रात घर नहीं आएंगी। इसके बाद वो अपनी बहन और एक्टर महमूद की पत्नी मधु के घर रहने लगीं। कमाल ने उन्हें अपने पास बुलाने की बहुत कोशिश की, लेकिन मीना नहीं लौटी।
1964 में कमाल से अलग होने के बाद मीना ने नींद की गोलियां लेना शुरु कर दिया था।इससे उनकी तबीयत खराब होने लगी। नींद की गोलियों से खुद को दूर रखने के लिए उन्हें सोने से पहले थोड़ी सी ब्रांडी पीने की सलाह दी गई। मीना ने ब्रांडी को एक बार हाथ लगाया और ये लत उनसे कभी नहीं छूटी। वो शराब पीती रहीं और अपने दर्द को शायरी की रुप में कागज पर लिखती रहीं, लेकिन बेरहम दर्द ने मीना का साथ नहीं छोड़ा। 31 मार्च 1971 को मीना कुमारी की लिवर सिरोसिस से मौत हो गई।
बेहद दर्द में जी जिंदगी और दर्द में ही मिली मौत
मीना कुमारी की आखिरी फिल्म ‘पाकीजा’ थी जिससे बनने में काफी वक्त लगा था और रिलीज के एक महीने बाद ही मीना का निधन हो गया था। मीना शराब के नशे में इतना डूब गई थीं कि अंत समय में उनके पास अस्पताल के बिल चुकाने के पैसे भी नहीं बचे थे। मीना महज 39 साल की उम्र में इस दुनिया से चली गई। हालांकि इस अंत के साथ शायद उनके बेहिसाब दर्द का भी अंत हो गया। उन्होंने अपनी जिंदगी के लिए कभी लड़ाई नहीं लड़ी थी वो बस मौत के लिए लड़ा करती थीं और उनके लिए जिंदगी कैसी रही ये उनकी ही लिखी शायरी से समझ लिजिए-
बैठें हैं रास्ते में दिल का खंडहर सजा कर
शायद इसी तरफ से एक दिन बहार गुज़रे
बहती हुई ये नदियां घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतरे कोई तो पार उतरे….