हथियाना चाहते थे असुर भगवान शिव से उनका घर कैलाश, मगर इस वजह से नहीं मिल पाई विजय
कैलाश पर्वत (Kailash Mountain) को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महादेव अपने पूरे परिवार के साथ कैलाश में रहते हैं। यही वजह है कि कैलश पर्वत को सबसे पवित्र पर्वत माना जाता है और कैलश पर्वत की पूजा की जाती है। हालांकि अभी तक कोई भी व्यक्ति कैलश पर्वत की चढ़ाई नहीं कर पाया है। हर वर्ष होने वाली कैलश पर्वत की यात्रा के दौरान भक्त दूर से ही खड़े होकर इस पर्वत के दर्शन करते हैं। दरअसल पौराणिक कथा के अनुसार कई बार असुरों और नकारात्मक शक्तियों ने कैलाश पर्वत को भगवान शिव से छीनने का प्रयास किया था। लेकिन वो कभी भी कैलश पर्वत पर चढ़ नहीं पाएं और आज भी कोई पर्वतारोही कैलाश पर्वत की चढ़ाई नहीं कर पाया है। वहीं जो भी इस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करता है, या तो वो चढ़ नहीं पाता है या उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है।
आखिर क्यों कोई नहीं कर पाया चढ़ाई
दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर 7000 से ज्यादा लोग चढ़ाई कर चुके हैं। जिसकी ऊंचाई 8848 मीटर है। लेकिन कैलाश पर्वत पर कोई नहीं चढ़ पाया है और इसकी ऊंचाई 6638 मीटर ही है। कहा जाता है कि कई पर्वतारोहियों ने इस पर चढ़ने की कोशिश की थी। लेकिन इसपर चढ़ाई करना असंभव रहा। क्योंकि जब भी कोई पर्वतारोही इसकी चढ़ाई करता तो उसके शरीर के बाल और नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं और वो दिशाहीन हो जाता।
कैलाश पर्वत पर चढ़ाई करने को ले कर कई कहानियां जुड़ी हुई है। कुछ लोगों का मानना है कि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव का निवास है, इसलिए कोई जीवित इंसान इस के ऊपर नहीं पहुंच सकता है। इस पर्वत पर मरने के बाद जाया जा सकता है या केवल वो ही इंसान जा सकता है, जिसने अपने जीवन में कोई पाप ना किए हों।
चीन सरकार के कहने पर कुछ पर्वतारोहियों का दल कैलाश पर चढ़ने गया था। लेकिन उन्हें भी सफलता नहीं मिल सकी। वहीं एक बार रूस की एक टीम भी इस पर्वत पर चढ़ाई करने के लिए गई थी। साल 2007 में रूसी पर्वतारोही सर्गे सिस्टिकोव ने अपनी टीम के साथ माउंट कैलास पर चढ़ने की कोशिश की थी। लेकिन कुछ दूर चढ़ने पर उनके और पूरी टीम के सिर में भयंकर दर्द होने लग गया। पैरों ने जवाब दे दिया और जबड़े की मांसपेशियां खिंचने लगीं। जिसके कारण इन्होंने चढ़ाई को बीच में रोक दिया और वापस उतरना शुरू कर दिया।
शिव पिरामिड के नाम से है प्रसिद्ध
सन् 1999 में रूस के वैज्ञानिकों की टीम एक महीने तक कैलाश पर्वत के नीचे रही और इसके आकार के बारे में शोध किया। तब वैज्ञानिकों ने पाया कि इस पहाड़ की तिकोने आकार की चोटी एक पिरामिड है। जो कि बर्फ से ढकी रहती है। जिसकी वजह से इसे शिव पिरामिड के नाम से भी जाना जाता है।
हर वर्ष होने वाली कैलाश यात्रा के दौरान हजारों भक्त कैलश पर्वत जाते हैं और इस पर्वत की परिक्रमा करके वापस आ जाते हैं। कैलाश मानसरोवर यात्रा करने में 3 हफ्तों से ज्यादा का समय लगता है और ये यात्रा काफी कठिन होती है।